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Скачать или смотреть ईसाई धर्म की सच्चाई | ईसा मसीह की भक्ति छोड़ दी | आए संत रामपाल जी महराज की शरण मे

  • Adesh Sharma Vlog
  • 2024-07-21
  • 126
ईसाई धर्म की सच्चाई | ईसा मसीह की भक्ति छोड़ दी | आए संत रामपाल जी महराज की शरण मे
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ईसाई धर्म की सच्चाई | ईसा मसीह की भक्ति छोड़ दी | आए संत रामपाल जी महराज की शरण मे
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1 गरीब, अनंत कोटि ब्रह्मंड का एक रति नहीं भार। सतगुरू पुरूष कबीर हैं कुल के सृजनहार।।
कबीर, दण्डवत् गोविन्द गुरू, बन्दू अविजन सोय।
पहले भये प्रणाम तिन, नमो जो आगे होय।।नानक गुरु समानि तीरथु नहीं कोई साचे गुरु गोपाल।
सतगुरु मिले तो इच्छा मेटै, पद मिल पदे समाना।
चल हंसा उस लोक पठाऊँ, जो आदि अमर अस्थाना।।
इच्छा को केवल सतगुरु अथार्त् तत्वदर्शी संत ही समाप्त कर सकता है तथा यथार्थ भक्ति मार्ग पर लगा कर अमर पद अथार्त् पूर्ण मोक्ष प्राप्त कराता है।
कबीर, सतगुरु शरण में आने से, आई टले बलाय।
जै मस्तिक में सूली हो वह कांटे में टल जाय।।
सतगुरु अथार्त् तत्वदर्शी संत से उपदेश लेकर मर्यादा में रहकर भक्ति करने से प्रारब्ध कर्म के पाप अनुसार यदि भाग्य में सजाए मौत हो तो वह पाप कर्म हल्का होकर
सामने आएगा। उस साधक को कांटा लगकर मौत की सजा टल जाएगी।
बिन सतगुरू पावै नहीं खालक खोज विचार।
चौरासी जग जात है, चिन्हत नाहीं सार।।
सतगुरू के बिना खालिक (परमात्मा) का विचार यानि यथार्थ ज्ञान नहीं मिलता। जिस कारण से संसार के व्यक्ति चौरासी लाख प्रकार के प्राणियों के शरीरों को प्राप्त करते हैं क्योंकि वे सार नाम, मूल ज्ञान को नहीं पहचानते।
कबीर, गुरू गोविंद दोनों खड़े, किसके लागूं पाय। बलिहारी गुरू आपणा, गोविन्द दियो बताय।।
बिन गुरू भजन दान बिरथ हैं, ज्यूं लूटा चोर। न मुक्ति न लाभ संसारी, कह समझाऊँ तोर।।
कबीर, गुरू बिन माला फेरते, गुरू बिन देते दान। गुरू बिन दोनों निष्फल हैं, चाहे पूछो बेद पुरान।।
श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 15 श्लोक 1 - 4, 16, 17 में कहा गया है जो संत इस संसार रूपी उल्टे लटके हुए वृक्ष के सभी विभाग बता देगा वह पूर्ण गुरु/सच्चा सद्गुरु है।
यह तत्वज्ञान केवल संत रामपाल जी महाराज ही बता रहे हैं।
जब तक सच्चे गुरु (सतगुरू) की प्राप्ति नहीं होती है तब तक गुरु बदलते रहना चाहिए।
जब तक गुरु मिले ना सांचा। तब तक करो गुरु दस पांचा।।
आज कलियुग में भक्त समाज के सामने पूर्ण गुरु की पहचान करना सबसे जटिल प्रश्न बना हुआ है। लेकिन इसका बहुत ही लघु और साधारण–सा उत्तर है कि जो गुरु शास्त्रो के अनुसार भक्ति करता है और अपने अनुयाईयों अर्थात शिष्यों द्वारा करवाता है वही पूर्ण संत है।
जैसे कुम्हार कच्चे घड़े को तैयार करते समय एक हाथ घड़े के अन्दर डाल कर सहारा देता है। तत्पश्चात् ऊपर से दूसरे हाथ से चोटें लगाता है। यदि अन्दर से हाथ का सहारा घड़े को न मिले तो ऊपर की चोट को कच्चा घड़ा सहन नहीं कर सकता वह नष्ट हो जाता है। यदि थोड़ा सा भी टेढ़ापन घड़े में रह जाए तो उस की कीमत नहीं होती। फैंकना पड़ता है। इसी प्रकार गुरूदेव अपने शिष्य की आपत्तियों से रक्षा भी करता है तथा मन को रोकता है तथा प्रवचनों की चोटें लगा कर सर्व त्राुटियों को
निकालता है।
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