सवाई भोज बगड़ावत कथा सरल शब्दों में 🔥 // कैसे हो गया था बगड़ावत भाइयों का विनाश 🤯

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कथा के अनुसार जब बाघ सिंह बाथ भरते हैं उनकी बाहों में 13 लड़कियां समा जाती है । जिससे बाघ सिंह शादी करने को तैयार हो जाते है । 12 लड़कियों से स्वयं शादी कर लेते हैं और एक लड़की अपने ब्राह्मण मित्र को दे देते है । उन्ही बारह औरतों से बाघ जी की 24 पुत्र होते हैं, वही 24 भाई बगड़ावत कहलाते हैं ।

24 बगड़ावत भाई अपने ग्वालों के साथ गायें चराते थे । एक बार सवाई भोज ने ध्यान दिया कि उनकी गायों में एक गाय ऐसी होती है जो रोज सुबह उनकी गायों के साथ शामिल हो जाती थी और शाम को लौटते समय वह अलग चली जाती है । यह देख सवाई भोज अपने भाई नियाजी को कहते हैं कि इस गाय के पीछे जाओ और पता करो की यह गाय किसकी है और कहां से आती हैं ? और इसके मालिक से अपनी ग्वाली का मेहनताना लेकर आना ।

नियाजी उस गाय के पीछे-पीछे जाते हैं । वह गाय एक गुफा में प्रेवेश कर जाती हैं । नियाजी भी पीछे पीछे वहां पहुंच जाते हैं और देखते है कि गुफा में एक साधु धूनी के पास बैठेकर साधना कर रहे हैं । नियाजी साधु से पूछते हैं कि महाराज यह गाय आपकी है ? साधु कहते है, हां गाय तो हमारी ही है । नियाजी कहते है आपको इसकी गुवाली देनी होगी । यह रोज हमारी गायों के साथ चरने आती है । हम इसकी देखरेख करते हैं ।

साधु कहता है कोई बात नहीं बेटा ग्वाली भी दे देंगे, चलो अपनी झोली फैलाओ । नियाजी अपनी कम्बल की झोली फैलाते हैं । बाबा रुपनाथजी धूणी में से धोबे भर धूणी की राख नियाजी की झोली में डाल देते हैं और कहते है" बेटा मेरे पास तो यही है देने के लिए ।"

भोज से कहते हैं कि मैं तेरी सेवा से प्रसन्न हुआ । आज मैं तेरे को एक विद्या सिखाता हूं । सवाई भोज से एक बड़ा कड़ाव और तेल लेकर आने के लिये कहते हैं । सवाई भोज बाबा रुपनाथ के कहे अनुसार एक बड़ा कड़ाव और तेल लेकर पहुंचते हैं । वह विद्या पूरी होने के बाद भोज को सोने का पोरसा मिलता और बाबा उन्हें अपना शिष्य बना लेते हैं ।
तभी अचानक आकाश से आकाशवाणी होती है कि सवाई भोज तुम्हारी बारह वर्ष की काया है और बारह वर्ष की ही माया है ।
सवाई भोज को बाबा रुपनाथ की गुफा से भी काफी सारा धन मिलता है दुर्लभ चीजें लेकर सवाई भोज घर आ जाते हैं
रुपनाथ व सोने के पोरसे की सारी घटना अपने भाइयों को बताते हैं और इस अथाह सम्पत्ति का क्या करें ? इस बात पर विचार करते हैं ।
सवाई भोज अपने बसाये गांव का नाम गोठां रखते हैं । इसके अलावा बगड़ावत उस धन से काफी धार्मिक और जनहित के काम भी करते हैं, तालाब, बावड़ियां और कुवों का निर्माण करवाते हैं । तामेसर कि बावड़ी उन्ही के द्वारा बनवाई गई थी जिसमें आज भी पानी समाप्त नहीं होता ।

अधिक धन के साथ व्यसन भी आ ही जाते हैं, बगड़ावतों के पास अथाह धन होने से वो शराब खरीदने पर भी बेइंतहा खर्च करते हैं और अपने घोड़ो तक को भी शराब पिलाते हैं ।

बगड़ावतों की दानवीरता के किस्से राण के राव दुर्जनसार तक भी पहुंचते हैं । इस कारण राण का राजा बगड़ावतों को राण में आने का निमंत्रण भेजता है, निमंत्रण मिलने पर सवाई भोज अपने भाइयों के साथ अपने राजा से मिलने जाने की योजना बनाते हैं ।
। श्रृंगार करके बगड़ावत, छोछू भाट के साथ राण की तरफ निकल पड़ते हैं, रास्ते में उन्हें पनिहारियाँ मिलती हैं और बगड़ावतों के रुप रंग को देखकर आपस में चर्चा करने लगती हैं ।
राण में प्रवेश करने से पहले ही बगड़ावतों को एक बाग दिखाई देता है जिसका नाम नौलखा बाग था । वहां रुक कर सभी भाईयों की विश्राम करने की इच्छा होती है ।

यह नौलखा बाग राव दुर्जनसार की जागीर होती है, और बाग का माली इन अनजान राहगीरों को बाग में रुकने से मना कर देता है । जिससे नियांजी को गुस्सा आ जाता है और माली को पीटकर वहां से भगा देते हैं । उसके बाद नौलखा बाग का फाटक तोड़कर उसमें घुस जाते हैं ।
इधर बाग का माली मार खाकर राव दुर्जनसार के पास पहुंचता है और बगड़ावतों की शिकायत करता है ।

इधर बगड़ावतों को नौलखा बाग के पास दो शराब से लबालब भरी हुई झीलों सावन-भादवा का पता चलता हैं । ये शराब की झीलें पातु कलाली की होती है जो दारु बनाने का व्यवसाय करती थी ।


पातु उन्हें देखकर कहती है कि मेरी दारु मंहगी है । पूरे मेवाड में कहीं नहीं मिलेगी । केसर कस्तूरी से भी अच्छी है यह, तुम नहीं खरीद सकोगे ।

नियाजी अपने घोड़े के सोने के जेवर उतारकर पातु को देते हैं और दारु देने के लिये कहते हैं । पातु सोचती हैं कि ये ठग है जो पीतल के जेवरों को सोने के बताकर उसे मूर्ख बना रहे हैं इसलिए दारु देने से पहले सोने के जेवर सुनार के पास जांचने के लिए भेजती है । सुनार सोने की जांच करता है और बताता है कि जेवर बहुत कीमती है । जेवर की परख हो जाने के बाद पातु नौलखा बाग में बैठाकर बगड़ावतों को दारु देती है ।

इधर माली की शिकायत सुनकर रावजी अपने सेनापति नीमदेवजी को नौलखा बाग में भेजते हैं । रास्ते में उन्हें नियाजी मिलते हैं और अपना परिचय देते हैं ।

नियाजी से मिलकर नीमदेवजी वापिस राव दुर्जनसार के पास जाकर कहते हैं कि ये तो बाघजी के बेटे बगड़ावत हैं । ये शर्त रखते है कि अगर पातू मेरे इस बीडे को दारू से पूरा भर देगी तो मैं पी सकता हूँ । यह सुनकर पातु शर्त के लिये तैयार हो जाती है और सवाई भोज के पास जाती है और अपनी सारी दारु सवाई भोज की हथेली में रखे बीडे में उडेलती है । पातु की सारी दारु खतम हो जाती है, उसकी दोनों दारु की झीलें सावन-भादवा भी खाली हो जाती है, मगर सवाई भोज का बीडा नहीं भरता ।

यह चमत्कार देखकर पातु सवाई भोज के पांव पकड़ लेती है और कहती है कि आप मुझे अपनी राखी डोरा की बहन बना लीजिये, और सवाई भोज को राखी बान्ध कर अपना भाई बना लेती है ।

सवाई भोज नौलखा बाग से वापस आते समय मेघला पर्वत पर अपना दारु का बीड़ा खोलते हैं । बीड़े से इतनी दारु बहती है कि तालाब भर जाता है, धोबी उसमें अपने कपड़े धोने लगते है, वह शराब रिस कर पाताल लोक में जाने लगती है और पृथ्वी को अपने शीश पर धारण किये शेषनाग के सिर पर जाकर टपकती हैं, उससे शेषनाग कुपित हो जाते है,

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