Naath Sahitya | Gorakhnath | Aadikaal | नाथ साहित्य | गोरखनाथ | हठ योग | आदि काल

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सिद्धों के महासुखवाद के विरोध में नाथ पंथ का उदय हुआ। नाथों की संख्या नौ है। इनका क्षेत्र भारत का पश्चिमोत्तर भाग है। इन्होंने सिद्धों द्वारा अपनाये गये पंचमकारों का नकार किया। नारी भोग का विरोध किया। इन्होंने बाह्याडंबरों तथा वर्णाश्रम का विरोध किया और योगमार्ग तथा कृच्छ साधना का अनुसरण किया। ये ईश्वर को घट-घट वासी मानते हैं। ये गुरु को ईश्वर मानते हैं। नाथ में सर्वाधिक महत्वपूर्ण गोरखनाथ हैं। इनकी रचना गोरखबाणी नाम से प्रकाशित है।

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नाथ साहित्य की विशेषताएँ
1. इसमें ज्ञान निष्ठा को पर्याप्त महत्व प्रदान किया गया है,
2. इसमें मनोविकारों की निंदा की गई है,
3. इस साहित्य में नारी निन्दा का सर्वाधिक उल्लेख प्राप्त होता है,
4. इसमें सिद्ध साहित्य के भोग-विलास की भर्त्सना की गई है,
5. इस साहित्य में गुरु को विशेष महत्व प्रदान किया गया है,
6. इस साहित्य में हठयोग का उपदेश प्राप्त होता है,
7. इसका रूखापन और गृहस्थ के प्रति अनादर का भाव इस साहित्य की सबसे बड़ी कमजोरी मानी जाती है,
8. मन, प्राण, शुक्र, वाक्, और कुण्डलिनी- इन पांचों के संयमन के तरीकों को राजयोग, हठयोग, वज्रयान, जपयोग या कुंडलीयोग कहा जाता है।इसमे भगवान शिव की उपासना उदात्तता के साथ मिलती है।

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