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Скачать или смотреть विष्णु बैकुंठ में नहीं, यहाँ जागते हैं! 'भाव' के बिना भक्ति क्यों है व्यर्थ?

  • SCG News
  • 2025-07-18
  • 213
विष्णु बैकुंठ में नहीं, यहाँ जागते हैं! 'भाव' के बिना भक्ति क्यों है व्यर्थ?
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Описание к видео विष्णु बैकुंठ में नहीं, यहाँ जागते हैं! 'भाव' के बिना भक्ति क्यों है व्यर्थ?

नमस्कार! 'पते की बात नरेंद्र के साथ' के इस एपिसोड में हम उस आध्यात्मिक रहस्य पर बात कर रहे हैं जो हर वर्ष हमारे जीवन में लौटकर आता है: चातुर्मास। बचपन से हम सुनते आए हैं कि इन चार महीनों में भगवान विष्णु क्षीर सागर में शयन करते हैं, जिससे मंदिरों में शयनोत्सव मनाया जाता है।

लेकिन क्या सचमुच कोई ईश्वर सो सकता है?

चतुर्मास का वास्तविक अर्थ
विष्णु कौन हैं?: विष्णु कोई देवता नहीं, बल्कि वह हैं जो व्याप्त हैं—जो हर कण, हर स्पंदन, हर सांस में बसते हैं।

बैकुंठ एक मनःस्थिति: बैकुंठ कोई जगह नहीं, बल्कि एक मनःस्थिति है, जहाँ कोई कुंठा न हो, प्रेम निष्कलंक हो, और प्रार्थना बिना बनावट के हो।

भगवान का संदेश: परम पुरुष योगियों से नहीं, बल्कि सूखे वैराग्य से नाराज हैं। विष्णु का निवास वहीं है जहाँ उनके भक्त गाते हैं: "ना हम बैकुंठ में रहता हूँ, ना योगियों के हृदय में, जहाँ मेरे भक्त गाते हैं, वहीं मैं रहता हूँ।"

सोती है हमारी चेतना: जब कोई कहे कि भगवान सो गए हैं, तो हमें रुककर सोचना चाहिए कि कहीं हम बाहरी कर्मकांडों और प्रदर्शन में डूबकर खुद ही तो नहीं सो गए हैं।

भक्ति के तीन स्तर
यह चर्चा भक्ति के तीन स्तरों को स्पष्ट करती है, जिसमें गोपियों की भक्ति प्रेम की चरम अवस्था है:

सामाजिक भक्ति: भगवान सबके हैं, तो मेरे भी हैं।

समत्व की भक्ति: भगवान मेरे हैं, पर औरों के भी हैं।

पूर्ण समर्पण की भक्ति: "भगवान सिर्फ़ मेरे हैं, और मैं सिर्फ़ उनका हूँ।" यह समर्पण की वह पराकाष्ठा है जहाँ नियम नहीं, केवल भाव होता है।

जहाँ भी कोई भक्त नाचते हुए गाता है, या जहाँ भी कोई हृदय प्रेम में काँपता है, वहीं विष्णु जागते हैं और वहीं परम पुरुष मिलते हैं।

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वीडियो लिंक:    • चातुर्मास: क्या सच में भगवान विष्णु सो जात...  

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