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  • LIMTY KHARE
  • 2025-09-10
  • 52
जानिए, क्या महिलाएं भी तर्पण अथवा पिण्डदान करने की हैं अधिकारी!
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Описание к видео जानिए, क्या महिलाएं भी तर्पण अथवा पिण्डदान करने की हैं अधिकारी!

माता सीता ने भी किया था राजा दशरथ का पिण्डदान जानिए विस्तार से . . .
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हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि से आश्विन मास की अमावस्या तिथि तक पितृ पक्ष माना जाता है। अक्सर आपने पुरुषों द्वारा ही श्राद्ध कर्म करते देखा होगा। क्या कभी आपके मन में यह सवाल आया है कि महिलाएं भी श्राद्ध कर्म कर सकती हैं? इस तरह का प्रश्न लोगों के मानस पटल पर कौंधना स्वाभाविक ही है। जब भी पितृपक्ष आते हैं, तब एक सवाल बार-बार लोगों के सामने सिर उठाता है। क्या महिलाएं श्राद्ध, तर्पण या पिंडदान कर सकती हैं या नहीं? यह परेशानी उन परिवारों में सबसे ज्यादा आती है, जहां ज्येष्ठ पुत्र या कोई पुरुष न हो या घर का पुरुष सदस्य कहीं दूर रहता हो। आमतौर पर तर्पण, श्राद्ध आदि का कार्य घर के पुरुष ही करते हैं। लेकिन, ऐसे किसी पूर्वज का श्राद्ध कैसे हो, जिसके पुत्र ही न रहा हो। क्या ऐसी स्थिति में घर की महिलाएं श्राद्ध, तर्पण आदि कर सकती हैं? आईए जानते हैं इस बात के बारे में विस्तार से . . .
पितर पक्ष अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी, मार्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, ओम नमः शिवाय, जय श्री कृष्ण, जय श्री राम, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
विद्वान ज्योतिषाचार्यों का मत है है कि प्रसिद्ध धार्मिक ग्रंथों में से एक गरुड़ पुराण के अनुसार जिस घर में पुत्र नहीं होते उस घर की महिलाएं श्राद्ध कर्म और पिंडदान कर सकती हैं। जिस घर में श्राद्ध कर्म और पिंडदान के समय पुत्र उपस्थित ना हों, तो उनकी गैर मौजूदगी में महिलाएं श्राद्ध कर्म और पिंडदान कर सकतीं हैं।
जानकार विद्वानों के मत के अनुसार सबसे पहले माता सीता ने पिंडदान किया था। इस बात का उल्लेख मिलता है कि जब भगवान राम और लक्ष्मण अपने पिता दशरथ के श्राद्ध की सामग्री लेने गए थे, उस समय उन्हें वापस लौटने में काफी देर हो गई थी। उनकी गैर मौजूदगी में माता सीता ने ही पूरे विधि विधान के साथ अपने ससुर महाराज दशरथ का श्राद्ध कर्म संपन्न किया था।
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विद्वानों के अनुसार श्राद्ध कर्म पुत्रियां भी कर सकती हैं इस संबंध में वाल्मीकि रामायण में उल्ल्ेख मिलता है। वनवास के दौरान जब श्रीराम भगवान, लक्ष्मण और माता सीता के साथ पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने के लिए गया धाम पहुंचे तो श्राद्ध के लिए कुछ सामग्री लेने के लिए नगर की ओर गए। उसी दौरान आकाशवाणी हुई कि पिंडदान का समय निकला जा रहा है। इसी के साथ माता सीता को दशरथ जी महाराज की आत्मा के दर्शन हुए, जो उनसे पिंड दान के लिए कह रही थी। इसके बाद माता सीता ने फाल्गू नदी, वटवृक्ष, केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाकर फाल्गू नदी के किनारे श्री दशरथ जी महाराज का पिंडदान कर दिया। इससे उनकी आत्मा प्रसन्न होकर सीता जी को आर्शीवाद देकर चली गई।
पुत्रियां भी श्राद्ध कर सकती हैं इस संबंध में गरुड़ पुराण में भी उल्लेख मिललता है। इसकी श्लोक संख्या 11, 12, 13 और 14 में इसका उल्लेख किया गया है कि कौन-कौन श्राद्ध कर सकता है।
पुत्राभावे वधु कूर्यात, भार्याभावे च सोदनः।
शिष्यों वा ब्राम्हणः सपिण्डो वा समाचरेत।।
ज्येष्ठस्य वा कनिष्ठस्य भ्रातृः पुत्रश्चः पौत्रके।
श्राध्यामात्रदिकम कार्य पुत्रहीनेत खगः।।
इसका भावार्थ है कि सबसे बड़े अथवा सबसे छोटे बेटे या बेटी के अभाव में पत्नी या बहू द्वारा भी श्राद्ध किया जा सकता है। लेकिन पत्नी जीवित नहीं हो तो सगा भाई, भतीजा, भांजा भी श्राद्ध कर सकता है। वहीं इनमें से कोई भी नहीं हो तो किसी शिष्य, मित्र या रिश्तेदार द्वारा भी श्राद्ध किया जा ...
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