Ashok Ashtmi : अशोक अष्टमी व्रत का महत्व और पूजन विधि की जानकारी

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हैलो दोस्तों मैं सनी गुप्ता आपको इस वीडियो में अशोक अष्टमी व्रत के महत्व और पूजन विधि के इस व्रत की सम्पूर्ण जानकारी देने वाला हूं
हिन्दू धर्म में अशोक अष्टमी के व्रत को बहुत ही पुण्य प्रदान करने वाला बताया गया है अशोक अष्टमी का व्रत करने से सभी प्रकार के शोक खत्म हो जाते हैं और साथ ही धन संपत्ति की भी प्राप्ति होती है। अशोक अष्टमी के दिन अशोक के वृक्ष की पूजा की जाती है।
महिलाओं के जीवन में पति को लेकर किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता है। तो उन महिलाओं को अशोक अष्टमी का व्रत करना चाहिए।
अशोक अष्टमी का महत्व अशोक अष्टमी का व्रत चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन किया जाता है यदि अशोक अष्टमी के दिन पुनर्वसु नक्षत्र पड़ रहा हो तो यह व्रत और भी अधिक शुभ माना जाता है। शास्त्रों में अशोक अष्टमी के दिन अशोक वृक्ष की पूजा करने का विधान बताया गया है। इस व्रत में अशोक कलिका प्राशन की प्रधानता होती है इसी वजह से इस व्रत को अशोक अष्टमी कहा जाता है। गरुड़ पुराण के अनुसार अशोक अष्टमी व्रत का वर्णन भगवान ब्रह्मा जी के मुखारविन्द से हुआ है इसलिए इस व्रत को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। आइए जानते हैं अशोक अष्टमी व्रत की पूजन विधि
चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को प्रातः काल में उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। अगर आपके घर के आस पास कोई पवित्र नदी नहीं है तो आप अपने नहाने के पानी में थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर भी स्नान कर सकते हैं।स्नान करने के पश्चात व्रत करने का संकल्प लेना चाहिए।
संकल्प लेने के बाद विधिवत अशोक के वृक्ष का पूजन करके उसकी परिक्रमा करनी चाहिए। अशोक वृक्ष की पूजा करने के बाद पूरा दिन व्रत करना चाहिए। अशोक अष्टमी का उपवास करके अशोक वृक्ष की पूजा करने तथा अशोक के आठ पत्तों को ताम्र पात्र के कलश में जल में डालकर उसका जल पीने से मनुष्य के सभी दुख दूर हो जाते है। जो भी मनुष्य अशोक अष्टमी का व्रत करता है उसे प्रातःकाल उठकर नित्यक्रियाओं से निवृत होने के पश्चात् स्नान करके अशोक वृक्ष की पूजा करनी चाहिए। आइए जानते हैं अशोक अष्टमी व्रत के लाभ अशोक वृक्ष को शोक का नाश करने वाला माना जाता है जो भी व्यक्ति अशोक अष्टमी का व्रत करता है उसका जीवन हमेशा शोकमुक्त रहता है। मान्यताओं के अनुसार अशोक अष्टमी के दिन ही
लंका में अशोक वाटिका में अशोक के वृक्ष के नीचे रहने वाली माता सीता को हनुमानजी द्वारा श्रीराम का संदेश एवं मुद्रिका मिले थी।
इसी वजह से अशोक के वृक्ष के नीचे माता सीता के साथ हनुमानजी की मूर्ति की स्थापना करके विधिवत पूजन करना चाहिए। अशोक अष्टमी के दिन अशोक के वृक्ष की पूजा करके व्रत कथा सुनने से स्त्रियों को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। अशोक अष्टमी के दिन अशोक के वृक्ष की कलिकाओं यानी पत्तियों का रस निकालकर पीने से सभी प्रकार के रोगों का नाश हो जाता है। अशोक अष्टमी के दिन अशोक वृक्ष के नीचे बैठने से सभी प्रकार के शोक दूर हो जाते हैं। अशोक के वृक्ष को एक दिव्य औषधि माना जाता है। संस्कृत भाषा में अशोक के वृक्ष को हेम पुष्प व ताम्र पल्लव भी कहा जाता है। आइए जानते हैं अशोकाष्टमी की व्रत कथा एक बार ब्रह्माजी ने कहा कि चैत्र माह में पुनर्वसु नक्षत्र से युक्त अशोकाष्टमी का व्रत होता है। इस दिन अशोक मंजरी की आठ कलियों का पान जो भी व्यक्ति करते हैं वे कभी दुख को प्राप्त नहीं होते है। न ही उनको कोई मानसिक कष्ट होता है अशोकाष्टमी के महत्व से जुड़ी कथा कहानी रामायण में भी मिलती है जिसके अनुसार रावण की लंका में सीताजी अशोक के वृक्ष के नीचे बैठी थी अशोक अष्टमी के दिन ही वहीं उन्हें हनुमानजी मिले थे। और भगवान श्रीराम की मुद्रिका और उनका संदेश उन्हें यहीं प्राप्त हुआ था। तथा उस दिन ही उनको इनके मानसिक दुखो तथा शोक का अंत हुआ था

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