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Скачать или смотреть क्यों गांधारी ने अपने सगे भाई शकुनि को दिया ऐसा कठोर श्राप?जिसे आज भी भुगत रहीहै अफगानिस्तान की धरती

  • हिंदू व्रत कथा Hindu Vrat Katha
  • 2025-07-08
  • 2098
क्यों गांधारी ने अपने सगे भाई शकुनि को दिया ऐसा कठोर श्राप?जिसे आज भी भुगत रहीहै अफगानिस्तान की धरती
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Описание к видео क्यों गांधारी ने अपने सगे भाई शकुनि को दिया ऐसा कठोर श्राप?जिसे आज भी भुगत रहीहै अफगानिस्तान की धरती

आखिर क्यों गांधारी ने अपने ही सगे भाई शकुनि को दिया ऐसा कठोर श्राप? जिसे आज भी भुगत रही है अफगानिस्तान की धरती

गांधारी ने अपने भाई शकुनि को अपने पुत्र दुर्योधन को समझा-बुझाकर युद्ध रोकने की सलाह दी थी लेकिन शकुनि विनाश के लिए आतुर था और उसने गांधारी की बात नहीं मानी। इस कारण से गांधारी ने क्रोधित होकर शकुनि को ऐसा शाप दिया, कि जिस तरह शकुनि ने हस्तिनापुर में अंशाति फैलाई है, उसी तरह उसके राज्य में भी कभी शांति का वास नहीं रहेगा। यही कारण है कि वर्तमान में अफगानिस्तान बन चुके गांधार देश में आज भी किसी न किसी कारण से तनाव और युद्ध की स्थिति बनी रहती है।
महाभारत के युद्ध में कौरवों की हार हुई और पांडव जीत गए लेकिन युद्ध के बाद भी कुछ ऐसे योद्धा थे, जिन्हें युद्ध के नतीजों को भुगतना पड़ा। जैसे, स्वंय श्रीकृष्ण को गांधारी से शाप मिला, जिसके कारण यदुंवश का नाश हुआ और एक के बाद एक ऐसी घटनाएं होती गईं, जिससे कि कलियुग का आगमन हुआ। लेकिन क्या आप जानते हैं कि गांधारी ने केवल श्रीकृष्ण को ही नहीं बल्कि अपने भाई शकुनि को भी शाप दिया था। सौ पुत्रों की मृत्यु के बाद गांधारी इतनी क्रोधित और दुखी थी कि उन्होंने अपने भाई शकुनि तक को शाप दे दिया क्योंकि गांधारी मानती थी कि अगर शकुनि ने दुर्योधन सहित बाकी कौरवों को पांडवों के विरुद्ध नहीं उकसाया होता, तो दुर्योधन के मन में पांडवों के प्रति इतनी नफरत नहीं पनपती। गांधारी के इस शाप का असर आज भी अफगानिस्तान की धरती भुगत रही है। आइए, जानते हैं शकुनि को मिले शाप की पूरी कहानी।
महाभारत काल में अफगानिस्तान को गांधार देश नाम से जाना जाता था। गांधारी और शकुनि गांधार नरेश सुबल के पुत्र-पुत्री थे। महाभारत की कहानी के अनुसार राजा सुंबल के शकुनी सहित 100 पुत्र और थे। वहीं, पुत्री गांधारी जब विवाह योग्य हो गई, तो उसके विवाह की बात करने के लिए राजा सुंबल कई ज्योतिषी से मिले। एक ज्योतिषी ने राजा सुंबल सेे कहा कि "गांधारी की कुंडली में ऐसा योग बन रहा है, जिससे वो विवाह के बाद विधवा हो जाएगी, इसलिए अपनी पुत्री का विवाह पहले एक बकरे से कर दीजिए।" ज्योतिषी की बात मानकर राजा सुंबल ने बकरे से गांधारी का विवाह करा दिया और इसके बाद बकरे की बलि दे दी, जिससे गांधारी का दुर्भाग्य हट गया। उधर राजा सुंबल के विरोधियों ने उनकी पुत्री के विरुद्ध इस बात की अफवाह फैला दी कि गांधारी का विवाह हुआ और कुछ ही घंटो में उसका पति मर गया।
हस्तिनापुर में धृतराष्ट्र के विवाह के लिए एक सुकन्या ढूंढ़ी जा रही थी। किसी परिचित ने भीष्म को गांधारी के बारे में बताया, तो भीष्म गांधार देश जाकर राजा सुंबल से उनकी पुत्री का हाथ मांगने लगे। राजा सुंबल शुरुआत में यह नहीं जानते थे कि धृतराष्ट्र नेत्रहीन है, इसलिए उन्होंने गांधारी के विवाह के लिए अपनी स्वीकृति दे दी लेकिन कुछ दिनों बाद जब सुंबल को इस सच पता चला तो उन्होंने विवाह के लिए इंकार कर दिया। अपने वचन से पीछे हट जाने के लिए भीष्म को गांधार नरेश पर बहुत गुस्सा आया और उन्होंने गांधारी का अपहरण करके धृतराष्ट्र से गांधारी का विवाह करा दिया।
गांधारी यह बात नहीं जानती थी कि लेकिन जब वो हस्तिनापुर पहुंचकर धृतराष्ट्र से मिली, तो उन्हें समझ आ गया कि उनके साथ छल हुआ है। वहीं, भीष्म और धृतराष्ट्र ने इस अफवाह को सच मान लिया कि गांधारी का विवाह एक बार हो चुका है। वहीं, शकुनि धृतराष्ट्र से अपनी बहन का विवाह नहीं होने देना चाहता था। भीष्म और धृतराष्ट्र ने राजा सुंबल को सबक सिखाने के लिए उन्हें और उनके 100 पुत्रों को कारागार में डाल दिया। कारागार में राजा सुंबल और उनके 100 पुत्रों को एक मुट्ठी अनाज दिया जाता। एक मुट्ठी अनाज में 100 पुत्रों को केवल एक दाना ही मिल पाता था। ऐसे में सभी ने निश्चय किया कि वे अपना हिस्सा भी शकुनि को दे देंगे, जिससे कि शकुनि हस्तिनापुर के शासकों से बदला ले सके। अन्न न मिलने के कारण राजा सुंबल और उनके पुत्र धीरे-धीरे मरते गए। अंत में शकुनि बच गया। शकुनि के मन में हस्तिनापुर के राज्य को बर्बाद करने की भावना ने जन्म ले लिया।
चौसर का खेल खेलने में माहिर शकुनि ने दुर्योधन की रुचि चौसर के खेल में जगाई। शकुनि दुर्योधन के साथ घंटों चौसर का खेल खेलता रहता था। यह चौसर का खेल ही था, जिसने महाभारत के युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और चौसर का खेल हारकर पांडव अपना सब कुछ गवां बैठे। शकुनि ने दुर्योधन को उकसाकर हर वो काम कराया, जो उसके खुद के मन की इच्छा थी। दुर्योधन को अति स्नेह करके शकुनि ने जैसे उसे अपना सेवक ही बना लिया था। यही कारण था कि दुर्योधन शकुनि के कहे अनुसार चलता था और उसने अंत तक अपने पांडव भाइयों को राजकाज नहीं दिया। जिसके कारण महाभारत का युद्ध हुआ और युद्ध में दुर्योधन सहित सभी कौरव मारे गए।
गांधारी का शाप अफगानिस्तान की धरती झेल रही है
जब कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर एक-एक करके कौरव मरते जा रहे थे, तो गांधारी को इस बात का आभास हो चुका था कि अब उसका कोई पुत्र नहीं बचेगा। गांधारी ने अपने भाई शकुनि से कहा था कि वे युद्ध रुकवा दे, जिससे कि और विनाश न हो पाए लेकिन शकुनि ने गांधारी की बात नहीं मानी। इस कारण से गांधारी ने दुखी होकर शकुनि को शाप दिया था कि जिस तरह शकुनि ने उसके गृह राज्य हस्तिनापुर में आकर द्वेष और क्लेश फैलाया है। उसी तरह गांधार नरेश शकुनि के गृह राज्य गांधार में भी कभी शांति नहीं रहेगी। वहां हमेशा गृह युद्ध चलता रहेगा। शकुनि की धरती पर कभी भी शांति और समृद्धि नहीं पनप सकेगी। गांधारी के शाप के कारण ही वर्तमान में अफगानिस्तान बन चुके गांधार में कभी भी शांति नहीं रहती। वहां किसी न किसी कारण से युद्ध और अंशाति की स्थिति बनी ही रहती है। कुछ पौराणिक मान्यताएं यह भी कहती हैं कि शकुनि ने अपने मृत भाइयों का बदला धृतराष्ट्र और भीष्म से लिया था।

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