upsarghar stotra with perfect and clear pronounciation

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श्री उपसर्ग हर स्तोत्र | Shree Upsarg har stotra

उवसग्गहरं पासं, पासं वंदामि कम्मघण-मुक्कं |
विसहर-विस-निन्नासं, मंगल-कल्लाण-आवासं ||१||
विसहर-फुलिंगमंतं, कंठे धारेइ जो सया मणुओ |
तस्स गह-रोग-मारी, दुट्ठ-जरा जंति उवसामं ||२||
चिट्ठउ दूरे मंतो, तुज्झ पणामो वि बहुफलो होइ |
नर-तिरिएसु वि जीवा, पावंति न दुक्ख-दोहग्गं ||३||
 तुह सम्मत्ते लद्धे, चिंतामणि-कप्पपायव-ब्भहिए |
पावंति अविग्घेणं, जीवा अयरामरं ठाणं ||४||
इह संथुओ महायस! भत्तिब्भर निब्भरेण हियएण |
ता देव! दिज्ज बोहिं, भवे भवे पास जिणचंद ||५||

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