Is Gulzar the heir to Meena Kumari's will?

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Is Gulzar the heir to Meena Kumari's will?
Did circumstances make Meena Kumari a poet
Is Gulzar the heir to Meena Kumari's will?
बैजू बावरा, परिणीता, साहिब बीवी और ग़ुलाम और पाकीज़ा जैसी फ़िल्मों में अपनी अदाकारी से हिंदी सिनेमा की 'ट्रेजडी क्वीन' का ख़िताब पाने वाली अभिनेत्री मीना कुमारी असल ज़िंदगी में भी हमेशा ग़मों और तक्लीफ़ों से दो चार रहीं। सिनेमा के पर्दे पर जहां उन्होंने किरदारों के दुखों को जिया, तो वहीं अपने दर्द के इज़हार करने के लिए मीना कुमारी ने शायरी का सहारा लिया।
मीना कुमारी का एक बहुत दिलचस्प पहलू है कि वे अभिनेत्री के अलावा एक शायरा (कवयित्री) भी थीं। मीना कुमारी की शायरी उनके 'ट्रेजडी क्वीन' होने के एहसास को और पुख़्ता करती हैं। उन्होंने अपनी शायरी में अपनी ज़िंदगी की तन्हाईयों को बख़ूबी बयां किया है। मीना कुमारी ने कभी नहीं चाहा कि उनकी नज़्में या ग़ज़लें कहीं छपें। हालांकि, उनकी मौत के बाद उनकी कुछ शायरी 'नाज़' के नाम से छपी। मीना कुमारी की शायरी को गुलज़ार ने 'तन्हा चाँद' के नाम से संकलित किया है -
चांद तन्हा है आसमां तन्हा
दिल मिला है कहां कहां तन्हा

बुझ गई आस, छुप गया तारा
थरथराता रहा धुआं तन्हा

ज़िन्दगी क्या इसी को कहते हैं
जिस्म तन्हा है और जां तन्हा

हमसफ़र कोई गर मिले भी कभी
दोनों चलते रहें कहां तन्हा

जलती बुझती सी रौशनी के पर,
सिमटा सिमटा सा एक मकां तन्हा

राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जाएंगे ये जहां तन्हा
एक अगस्त 1932 को मुंबई में पैदा हुईं मीना कुमारी का मूल नाम महजबीं बानो था। उन्होंने अपनी ज़िंदगी में बहुत पहले ही दुनियावी परेशानियों से जूझने का सलीक़ा सीख लिया था। वह चार साल की उम्र से ही अपने परिवार की आर्थिक मदद करने के लिए बतौर बाल कलाकार फ़िल्मों में काम किया करती थीं। इसकी वजह से उनकी पढ़ाई मुकम्मल नहीं हो पाई। उनके पिता अली बख़्श पारसी थिएटर के एक मंझे हुए कलाकरा थे, लेकिन फ़िल्मी दुनिया में उन्हें शोहरत नहीं मिली।
उनकी मां एक मशहूर नृत्यांगना और अदाकारा थीं और उनका संबंध टैगोर ख़ानदान से था। घर के माहौल की वजह से अदाकारी मीना कुमारी को विरासत में मिली। इसी अदाकारी को उन्होंने अपने परिवार की तंगी दूर करने का ज़रिया बनाया और इसमें वह कामयाबी भी रहीं। आर्थिक तंगी से तो मीना कुमारी का परिवार उबर गया, लेकिन वह ख़ुद ज़िंदगी भर दुखों की गिरफ़्त से नहीं निकल पाईं। अपनी ज़िंदगी में वह जितनी कांटों और दर्द भरी राहों से गुज़रीं उसे ही उन्होंने शायरी में ढाल दिया -
आगाज़ तॊ होता है अंजाम नहीं होता
जब मेरी कहानी में वो नाम नहीं होता

जब ज़ुल्फ़ की कालिख़ में घुल जाए कोई राही
बदनाम सही लेकिन गुमनाम नहीं होता

हंस हंस के जवां दिल के हम क्यों न चुनें टुकड़े
हर शख़्स की क़िस्मत में ईनाम नहीं होता

बहते हुए आंसू ने आंखों से कहा थम कर
जो मय से पिघल जाए वो जाम नहीं होता

दिन डूबे हैं या डूबे बारात लिये क़श्ती
साहिल पे मगर कोई कोहराम नहीं होता
SPECIAL THANKS TO
DHEERAJ BHARDWAJ JEE (DRAMA SERIES INDIAN),
THANKS FOR WATCHIN GOLDEN MOMENTS WITH VIJAY PANDEY

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