#चाँद

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#Dr Aruna sitesh
डा. अरुणा सीतेश जानी-मानी कथाकार थी।

अरुणाजी की रचनाएँ हमारे आस- पास जीते विचरते पात्रों को ऐसे सहज रूप में कथासूत्र में पिरोती हैं कि पाठक को मात्र पढ़ने का नहीं, अपने जाने -पहचाने समाज को नितांत नए अनुभव एवं नई दृष्‍ट‌ि के साथ पुन: जानने – समझने का सुख भी प्राप्‍त होता है । ये कहानियाँ नसि मन की बूझी अनबूझी पहेलियों पर प्रकाश डालने में विशेष रूप से सक्षम हैं । नारी-जीवन की व्यथा-कथा तथा आशाओं- अपेक्षाओं का चित्रण अरुणाजी के लेखन की विशेषता है । नारी मन की गहन संवेदनाओं को, बिना नारी-मुक्‍त‌ि का मुखौटा लगाए वे बड़े ही सहज भाव से चित्रित करती हैं । ये सभी कहानियों समय-समय पर धर्मयुग, साप्‍ताहिक हिंदुस्तान, सारिका आदि में प्रकाशित होकर चर्चित हुई थीं ।इस संग्रह में, जीवन के सांध्य काल में लिखी उनकी कहानी ‘ तीसरी धरती ‘ भी है, जिसे ‘ वागर्थ ‘ में पढ़ते ही स्व. कमलेश्‍वर ने अपने द्वारा संपादित तथा साहित्य अकादेमी से प्रकाशनाधीन, हिंदी लेखिकाओं की कालजयी कहानियों के संग्रह के लिए चुना था ।

19 नवंबर 2007 को सुप्रसिद्ध लेखिका डा. अरुणा सीतेश का निधन हो गया।

अंग्रेज़ी की प्राध्यापिका और प्रख्यात शिक्षाविद डॉ. अरुणा सीतेश पिछले 10 वर्षों से दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित इन्द्रप्रस्थ महिला कालेज में प्रधानाचार्या के पद पर कार्यरत थी।

वे सुप्रसिद्ध साहित्यकार सीतेश आलोक की पत्नी थीं।

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