मऊ जिले का इतिहास।। history of Mau Uttar Pradesh।। सन् 1028 से लेकर वर्तमान परिस्थिति तक।💯🔥🔥🔥

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मऊ जिले का इतिहास।। history of Mau Uttar Pradesh।। सन् 1028 से लेकर वर्तमान परिस्थिति तक।💯🔥🔥🔥

मऊ भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश के मऊ जिले में एक क़स्बा और इस ज़िले का मुख्यालय है। इसका पूर्व नाम मऊनाथ भंजन था। यह शहर लखनऊ के दक्षिण-पूर्व से 282 किलोमीटर और आजमगढ़ के पूर्व से 56 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह शहर तमसा नदी (टोंस नदी) के किनारे बसा है। तमसा नदी शहर के उत्तर से निकलती है।[

मान्यताओं के अनुसार पांडवो के वनवास के समय वो मऊ ज़िले से होकर गुजरे थे, आज वो स्थान खुरहट के नाम से जाना जाता है। ज़िले की उत्तरी सीमा पर सरयू नदी के तीर पर बसे छोटे से दोहरीघाट के बारे में मान्यता है कि यहाँ श्रीराम और परशुराम जी मिले थे। दोहरीघाट से दस किलोमीटर पूर्व सूरजपुर नामक गाँव है, जहां पर श्रवणकुमार का समाधिस्थल है, और मान्यता अनुसार यहीं श्रवणकुमार राजा दशरथ के शब्दवेधी बाण का शिकार हुए थे।


सामान्यत: यह माना जाता है कि 'मऊ' शब्द तुर्किश शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ गढ़, पांडव और छावनी होता है। वस्तुत: इस जगह के इतिहास के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है। माना जाता है प्रसिद्ध शासक शेर शाह सूरी के शासनकाल में इस क्षेत्र में कई आर्थिक विकास करवाए गए। वहीं मिलिटरी बेस और शाही मस्जिद के निर्माण में काफी संख्या में श्रमिक और कारीगर मुगल सैनिकों के साथ यहां आए थे।

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कुछ विवरणों के अनुसार जब यह समूचा इलाका घोर घना जंगल था। यहाँ बहने वाली नदी के आस-पास जंगली व आदिवासी जातियाँ निवास करती थीं। यहाँ के सबसे पुराने निवासी नट माने जाते है। इस इलाके पर उन्हीं का शासन भी था। उन दिनों इस क्षेत्र में मऊ नट का शासन था और तमसा तट पर हजारों वर्ष पूर्व बसे इस इलाके में सन् 1028 के आस-पास बाबा मलिक ताहिर का आगमन हुआ जो एक सूफी संत थे और अपने भाई मलिक क़ासिम के साथ फौज की एक टुकड़ी के साथ यहाँ आये थे। इन लोगों का तत्कालीन हुक्मरान सैय्यद सालार मसऊद ग़ाज़ी ने इस इलाके पर कब्जा करने के लिये भेजा था। ग़ाज़ी उस समय देश के अन्य हिस्सों पर कब्जा करता हुआ बाराबंकी में सतरिक तक आया था और वहाँ से उसने विभिन्न हिस्सों में कब्जे के लिये फौजी टुकडि़याँ भेजी थी। कब्जे को लेकर मऊ नट एवं मलिक बंधुओं के बीज भीषण युद्ध हुआ जिसमें मऊ नट का भंजन (मारा गया) हुआ और इस क्षेत्र को मऊ नट भंजन कहा गया जो कालान्तर में मऊनाथ भंजन हो गया।


मऊनाथ भंजन के इस नामकरण को लेकर अन्य विचार भी है। कुछ विद्वान इसे संस्कृत शब्द ‘‘मयूर’’ का अपभ्रंश मानते हैं। मऊ नाम की और भी कई जगहें हैं, लेकिन उनके साथ कुछ न कुछ स्थानीय विशेषण लगे हुए हैं; जैसे- फाफामऊ, मऊ-आईमा, जाज-मऊ आदि है।


स्वतंत्रता आन्दोलन के समय में भी मऊ की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। 3 अक्टूबर 1939 ई. को महात्मा गांधी इस शहर से होकर गुजरे थे।




मुक्तिधाम दोहरीघाट - मऊ जिले के दोहरीघाट नगर मे घाघरा नदी के तट पर मुक्तिधाम स्थित है। ऐतिहासिक दृष्टि से इस स्थान पर दो देवताओं राम और परशुराम का मिलन हुआ है इसी के आधार इस स्थान का नाम दोहरीघाट (दो हरि घाट) पड़ा है।

मस्जिद और मदरसे - यहाँ पर मुसलमानों की अच्छी खासी तादाद है, इसी वजह से यहाँ सैकड़ों मस्जिदें और मदरसे भी हैं, जिनमें कुछ मशहूर मदरसों और मस्जिदों के नाम यह हैं, मिर्ची मस्जिद, शाही कटरा मस्जिद और मदरसों में मदरसा हनफिया अहले सुन्नत बहरूल ओलूम और दारुल उलूम मऊ मुख्य रूप से प्रसिद्ध है!

यहीं पर खीरीबाग का प्रसिद्ध मैदान है जहां पर ईद और बक्राईद के शुभ अवसर पर वर्ष में दो बार मेले का आयोजन किया जाता है जो पूरे देश में प्रसिद्ध है। मऊ जिले में बड़ी संख्या में बुनकर हैं। यहां की साड़ियां पूरे देश में बेची जाती हैं। इसलिए इस शहर को बुनकर की नगरी भी कहा जाता है।

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मुस्लिम धर्मगुरु- मौलाना हबीबुर्रहमान आज़मी इसी शहर के रहने वाले थे जो पुरे विश्व में प्रसिद्ध थे मऊ के लोग उनको बड़े मौलाना के नाम से जानते हैं!

मुस्लिम धर्मगुरु - प्रसिद्ध मुस्लिम धर्मगुरु मोहद्दीस सना उल्लाह अमजदी आज़मी इसी शहर में पैदा हुए थे जो मदरसा बहरुल ओलूम के संस्थापक और मऊ ज़िले के प्रसिद्ध मोहद्दीस थे!

वनदेवी मंदिर - मऊ जनपद के लगभग 12 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में वनदेवी मंदिर प्रकृति के मनोरम एवं रमणीय परिवेश मे स्थित है। यह सीतामाता का मंदिर है।[कृपया उद्धरण जोड़ें] आज यह स्थान श्रद्धालओं के आकर्षण का केन्द्र बिंदु है। जनश्रुतियों एंव भौगोलिक साक्ष्यों के आधार पर यह स्थान महर्षि वाल्मीकि के साधना स्थलि के रूप मे विख्यात रहा है। माता सीता ने यहीं पर अपने पुत्रो लव व कुश को जन्म दिया था।


भाषा - यहां पर सबसे ज्यादा हिंदी भाषा का प्रयोग होता है।

इसके अलावा अवधी भाषा और थोड़ा भोजपूरी का भी समावेश देखने को मिलता है। यहां पर संगीत में उर्दू,अरबी,फ़ारसी, हिंदी,अंग्रेज़ी और पंजाबी भाषायें पढ़ी,लिखी या बोली जाती हैं।


कृषि - यहां 60% जनसंख्या कृषि व्यवसाय और 25% निजी व्यवसाय और 15% सरकारी कर्मचारी हैं।

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