मैं देखूं जिस ओर सखी री ,सामने मेरे सांवरिया ..! "भजन"

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प्रेम ने जोगन मुझको बनाया...! "भजन" Must read Yatharth Gita for complete knowledge.

Ashram is a suitable place for Bhajan Sadhana.



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Must read Yatharth Gita for complete knowledge.


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1. श्रीकृष्ण- एक योगेश्वर थे।

2. सत्य - आत्मा ही 'सत्य' है ।

3. सनातन- आत्मा सनातन है, परमात्मा 'सनातन' है।

4. सनातन धर्म - परमात्मा से मिलानेवाली क्रिया है।

5. युद्ध - दैवी एवं आसुरी सम्पदाओं का संघर्ष 'युद्ध' है। ये अन्तःकरण की दो प्रवृत्तियाँ हैं । इन दोनों का मिटना परिणाम है।

6. युद्ध-स्थान- यह मानव शरीर और मनसहित इन्द्रियों का समूह - 'युद्धस्थल' है।

7. ज्ञान- परमात्मा की प्रत्यक्ष जानकारी 'ज्ञान' है ।

8. योग- संसार के संयोग-वियोग से रहित अव्यक्त ब्रह्म के मिलन का नाम 'योग' है।

9. ज्ञानयोग- आराधना ही कर्म है। अपने पर निर्भर होकर कर्म में प्रवृत्त होना' ज्ञानयोग' है।

1०. निष्काम कर्मयोग - इष्ट पर निर्भर होकर समर्पण के साथ कर्म में प्रवृत्त होना 'निष्काम कर्मयोग' है।

11. श्रीकृष्ण ने किस सत्य को बताया ?- श्रीकृष्ण ने उसी सत्य को बताया, जिसको तत्त्वदर्शियों ने पहले देख लिया था और आगे भी देखेंगे।

12. यज्ञ - साधना की विधि-विशेष का नाम ' यज्ञ' है।

13. कर्म - यज्ञ को कार्यरूप देना ही 'कर्म' है ।

14. वर्ण- आराधना की एक ही विधि, जिसका नाम कर्म है। जिसको चार श्रेणियों में बाँटा है, वही चार वर्ण हैं। यह एक ही साधक का ऊँचा- नीचा स्तर है, न कि जाति ।

15. वर्णसंकर- परमात्म-पथ से च्युत होना, साधन में भ्रम उत्पन्न हो जाना 'वर्णसंकर' है।

16. मनुष्य की श्रेणी - अन्तःकरण के स्वभाव के अनुसार मनुष्य दो प्रकार का होता है- एक देवताओं जैसा, दूसरा असुरों जैसा । यही मनुष्य की दो जातियाँ हैं, जो स्वभाव द्वारा निर्धारित हैं और यह स्वभाव घटता- बढ़ता रहता है।

17. देवता - हृदय- देश में परमदेव का देवत्व अर्जित करानेवाले गुणों का समूह है। बाह्य देवताओं की पूजा मूढबुद्धि की देन है।

18. अवतार - व्यक्ति के हृदय में होता है, बाहर नहीं ।

19. विराट् दर्शन- योगी के हृदय में ईश्वर के द्वारा दी गयी अनुभूति है । भगवान साधक में दृष्टि बनकर खड़े हों, तभी दिखायी पड़ते हैं।

20. पूजनीय देव 'इष्ट'- एकमात्र परात्पर ब्रह्म ही 'पूजनीय देव ' है । उसे खोजने का स्थान हृदय- देश है। उसकी प्राप्ति का स्रोत उसी अव्यक्त स्वरूप में स्थित 'प्राप्तिवाले महापुरुष' के द्वारा है।

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