Mori Mela (Fair is a cultural heritage) pandaw vartagarhwali dhol damau NAMO NAND 17,701111

Описание к видео Mori Mela (Fair is a cultural heritage) pandaw vartagarhwali dhol damau NAMO NAND 17,701111

Song - चला रे पंडो ( Chala Re Pando)
गायक - नरेंद्र सिंह नेगी (नरी) # Narendra Singh Negi (Nari)
गीतकार - प्रदीप रावत (खुदेड़) # Pardeep Rawat (Khuded)
संगीत - विनोद पांडे # Vinod Panday
आर्ट निदेशक - अतुल गुसाईं & नरेंद्र रावत # Atul Gusain & Narendra Rawat
छायांकन - संजय सिंह ग्राम गुमाई, और संजीव कोटमहादेव
निर्माता - सुरेंद्र चौहान
संपादन - ख़ुशी चौहान
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NAMO NAND
Web. http://www.garhwalibrothers.com/
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उत्तरखंड में धार्मिक मेले हर साल लगते है। क्योंकि यहाँ पग-पग पर देवी देवताओं का वास है। जिस कारण इस प्रदेश को देव भूमि के नाम से भी जाना जाता है इसके अलावा उत्तराखंड को बिभिन्न और नामो से भी जाना जाता है। ऋषि मुनियों के घोर तप के कारण इस भूमि का नाम तपस्थली पड़ा। हिमालय पर्वत होने के कारण इस प्रदेश को हिमवंत प्रदेश के नाम से पुकारा जाता है बाबा केदार के वास के कारण इसे केदारखंड के नाम से भी जाना जाता है| वैसे तो यहाँ पर लोगों कि अपनी अपनी कुल देवियाँ होती है जिसकी लोग समय समय पर पूजा करते रहते है। इसके आलावा भी पूरे गढ़ कुमौ में धार्मिक मेले शुभ घडी और लगन के अनुसार लगते रहते है। पर इन धार्मिक मेलों में लगने वाले तीन प्रमुख मेले जिनका आयोजन १२ साल के बाद होता है। कुम्भ मेला, नन्दा राज जात,और मौरी मेला, इन तीनों धार्मिक मेलों अपना एक बिशष्ट महत्व है।
कुम्भ मेला का आयोजन हरिद्वार में गंगा तट पर होता है। और माँ नन्दा काआयोजन चमोली जिले के नॉटी गाँव से शुरू होकर यह यात्रा कुमौ के कुछ भूभागों से होते हुए हिमालय पर्वत पर जाकर पूर्ण होती है।
मौरी मेले का आयोजन पौड़ी जिले में गगवाड़स्यूँ पट्टी के अंतर्गत पड़ने वाले ग्राम सभा तमलाग में किया जाता है। अगर इस मेले को समय के खांचे में मापा जाये तो यह पूरे विश्व का सबसे ज्यादा दिनों तक चलने वाला धार्मिक मेला है इस धार्मिक मेले कि अवधि छः महीने तमलाग गाँव में और समापन के बाद अगले छः महीने सबदरखाल के कुण्डी गाँव में है, इसमें हर रोज दिन और रात के कुछ पहर पांडव का अवाहन किया जता है। इस मेले का शुभारम्भ २२ गते
मर्गशीर्ष में होता है, तथा इसकी समापन तिथि २२ गतै अषाढ़ है। इन छः महीनों के मध्य पूर्वजों द्वारा ग्राम के मध्य एक सुंदर भैरव मंदिर के परागण में दिब्य शाक्तियों व ग्राम वासियों द्वारा पांडव नृत्य होता रहता है। इस अवधि काल में इस मेले में लाखों लोग सिरकत करके पुण्य कमाते है यह मेला पांडव से सम्बधित है।
मौरी क्या है यह क्यों मनाई जाती है? मौरी का अर्थ क्या होता है? और इसका नाम मौरी क्यों पड़ा? इसका आयोजन ग्राम सभा तमलाग और कुण्डी में ही क्यों किया जाता है?
''मौरी'' शब्द माहौरू'' शब्द का अपभ्रश रूप है मौरी शब्द माहौरू से बना है इस शब्द का जिक्र एक जागर में बड़े स्पष्ट रूप से होता है।
दिशा कूs माहौरू, माहौरू लगाण
बांझू माहौरू, माहौरू लगाण
भैजी चल्दू बणाण, माहौरू लगाण
इस मेले कि समाप्ति इस माहौरू शब्द की ब्याख्या को पूर्णता प्रदान करती है। मौरी शब्द का अर्थ होता है दान देकर किसी बंजर इलाके को हरा-भरा करके समृद बनाना।
मौरी कौथिग के बारे में अधिक जानकारी के लिए इस ब्लॉग को क्लिक करें
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