श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्र अर्थ है:
1. निशुम्भ शुम्भ गर्जनी, प्रचण्ड मुण्ड खण्डिनी।
बनेरणे प्रकाशिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥
• निशुम्भ और शुम्भ का नाश करने वाली, प्रचण्ड और मुण्ड जैसे राक्षसों को मारने वाली, युद्ध में प्रकाश देने वाली देवी को मैं भजता हूँ।
2. त्रिशूल मुण्ड धारिणी, धरा विघात हारिणी।
गृहे-गृहे निवासिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥
• त्रिशूल और मुण्ड धारण करने वाली, पृथ्वी के कष्टों को हरने वाली, हर घर में निवास करने वाली देवी की मैं आराधना करता हूँ।
3. दरिद्र दुःख हारिणी, सुताम् विभूति कारिणी।
वियोग शोक हारिणी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥
• दरिद्रता और दुःख का नाश करने वाली, संतान को समृद्धि प्रदान करने वाली, वियोग और शोक का नाश करने वाली देवी की मैं वंदना करता हूँ।
4. लसत्सुलाल लोचनं, लतासनं वरप्रदं।
कपाल-शूल धारिणी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥
• लाल नेत्रों वाली, लता आसन पर बैठी हुई, वरदान देने वाली, कपाल और शूल धारण करने वाली देवी की मैं उपासना करता हूँ।
5. कारौ मुदा गदाधरा, शिव शिवः प्रदायिनी।
वरा-वरातना शुभां, भजामि विन्ध्यवासिनी॥
• गदा धारण करने वाली, शिव को आनंद देने वाली, श्रेष्ठ वर देने वाली और शुभ देवी को मैं प्रणाम करता हूँ।
6. अशींद्र जामिनी प्रदम्, त्रिवास्य रूप धारिणी। जले-थले निवासिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥
• रात्रि को प्रकाश देने वाली, तीन मुखों का रूप धारण करने वाली, जल और थल में निवास करने वाली देवी को मैं भजता हूँ।
7. विशिष्ट शिष्ट कारिणी, विशाल रूप धारिणी। महोदरे विलासिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥
• विशिष्ट गुणों को प्रकट करने वाली, विशाल रूप धारण करने वाली, महोदरी (बड़े पेट वाली) में विलास करने वाली देवी की मैं वंदना करता हूँ।
8. पुंरदरादि सेवितां, सुरारि वंश खण्डिता।
विशुद्ध बुद्धिकारिणीं, भजामि विन्ध्यवासिनीं॥
• इंद्र और अन्य देवताओं द्वारा सेवित, दानवों के वंश का नाश करने वाली, शुद्ध बुद्धि प्रदान करने वाली देवी की मैं आराधना करता हूँ।
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