One Actor's movie COFFEE WITH ALONE ♥️Ft. Sunil Pal 💯 True Review By Film Critic Shaami M Irfan

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One Actor's movie YAAdEIN #COFFEEWITHALONE♥️ Sunil Dutt v/s Sunil Pal💯 Latest Release Bollywood Film


केवल एक एक्टर के साथ ही बनाई गई थी पूरी फिल्म, जिसका नाम 'गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स' में दर्ज है। उस फिल्म में एक ही एक्टर था और वो एक्टर थे सुनील दत्त, उनकी फिल्म 'यादें' 1964 में प्रदर्शित हुई थी। अब एक और सुनील नाम के एक्टर काॅमेडियन सुनील पाल ने एक किरदार वाली फिल्म बनाने का साहस दिखाया है, जिसका नाम है "काॅफी विद अलोन"। यह फिल्म 22 नवम्बर 2024 को सिनेमाघरों में प्रदर्शित हो रही है। क्या यह फिल्म 'गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स' में दर्ज होगी। बाॅक्स ऑफिस पर कमाई करेगी? क्या सुनील पाल की फिल्म पब्लिक के दिलों में अपनी जगह बना पाएगी?
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हैलो एवरीवन, अस सलामुआलैकुम, नमस्कार, इस वक्त आप देख रहे हैं वाॅलीवुड सर्जन। आज हम 'काॅफी विद अलोन' फिल्म का करे॔गे पोस्टमार्टम।
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इस फिल्म में दिखाया गया है कि, आनन्द सोलंकी एक डिस्प्रेशन में जी रहा अभिनेता है। वह कुछ फिल्मों में बहुत ही यादगार अभिनय कर,चुका है लेकिन आजकल उसके पास काम नहीं है। वह मुम्बई के किराए के फ्लैट में अकेले रहता है। एक डाॅक्टर से उसका इलाज चल रहा है। डॉक्टर ने उसको कुछ दिन अकेला घर में रहकर समय से दवा खाते रहने की सलाह दे रखी है। डिस्प्रेशन, फ्रस्ट्रेशन और अकेलेपन का अहसास दिखाने की कोशिश है आवाज और डायलॉग के जरिए। क्या- क्या होता है आनन्द सोलंकी के किरदार के साथ, कैसे- कैसे लोगों उसकी किस तरह की बात होती है और वह किस तरह से रि-ऐक्ट करता है। यह सब देखने को मिलेगा।
इस फिल्म में आनन्द सोलंकी का किरदार सुनील पाल ने निभाया है। उन्होने अपने किरदार के साथ न्याय किया है। पूरी फिल्म को अपने कंधे पर रख कर दर्शक को अपने साथ जोड़े रखना एक बड़ी चुनौती होती है। इस चुनौती को बहुत ही सहजता से पार किया है। दर्शक कहीं भी बोर नहीं होते। उनके किरदार को आगे बढ़ाने के लिए आवाज और डायलॉग्स का सहारा लिया गया है। राकेश बेदी, मुश्ताक खान, एहसान कुरैशी, राजू श्रेष्ठा, राज कुमार कनौजिया, सिमरन आहुजा, सोहेल फिदाई, समेत कई बॉलीवुड कलाकारों ने अपनी आवाज दी है। आवाज और डायलॉग के जरिए फिल्म में एक अलग ही रोमांच पैदा होता है और दर्शक आनन्द सोलंकी को आनन्द लेते हुए देखता रहता है।

इस फिल्म में जो हुआ अगर उसे तकनीक के लिहाज से देखें तो ये इससे पहले नाटक और रंगमंच में होता रहा है बल्कि थियेटर में ये और मुश्किल होता है, क्योंकि ऑडियंस वहां मौजूद होती है और अकेले आपको सब संभालना है और कोई रीटेक नहीं है। अदाकारी के मामले में सुनील पाल बधाई के पात्र हैं। उनकी लिखी स्क्रिप्ट भी दमदार है। फिल्म बन चुकी है और अब सिनेमाघरों में आ चुकी है। इस फिल्म की तुलना सुनील दत्त की 'यादें' से जरूर की जाएगी। 1964 में रिलीज़ हुई 'यादें' एक ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म थी। उस फिल्म को बेस्ट फीचर फिल्म का नेशनल अवार्ड, बेस्ट सिनेमेटोग्राफी के लिए एस रामचन्द्र को फिल्मफेयर अवार्ड और बेस्ट साउंड डिजाइन के लिए ईसा एम सूरतवाला को फिल्मफेयर अवार्ड मिला था। मगर हम सुनील पाल की फिल्म से ऐसी उम्मीद बिल्कुल नहीं कर सकते। फिल्म की सिनेमेटोग्राफी देखकर डीओपी पर दया आती है, उस कैमरामैन को डीओपी कहना इस शब्द की महत्ता कम करना है। निर्देशक आजाद हुसैन भी अपना काम सही ढंग से नहीं कर पाये। संपादन भी काम चलाऊ है। गीत-संगीत बिल्कुल साधारण है। यह कहना गलत न होगा कि, इससे अच्छा फिल्मांकन और संपादन मोबाइल से यूट्यूबर भी आजकल कर लेते हैं।

इस फिल्म को एक बात और खास बनाती है। ये फिल्म जहां सच में आपका ध्यान खींचेगी वो यह है कि फिल्म बनाकर निर्माता ने सिनेमाघर में पहुंचा दी है और बॉलीवुड का हर स्ट्रगलर खुद को कहीं न कहीं इससे कनेक्ट पाएगा। बाक्स ऑफिस पर इस फिल्म की रिपोर्ट पहले से सबको पता है। पाॅपकार्न, समोसा और कोल्ड ड्रिंक के साथ टिकट भी मुफ्त मिलने पर जब प्रीमियर में थिएटर दर्शकों से नहीं भरा तो टिकट खरीद कर कितने लोग फिल्म देखने जाएंगे? काॅफी विद अलोन का मजा तो अकेले अकेले लेने में है। फिल्म का आनन्द लेते रहिए। अगर आपने अभी तक हमारे चैनल को सब्स्क्राइब नहीं किया है तो कर लीजिए। फिर मिलते हैं,,,, जयहिंद।

शामी एम इरफ़ान

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