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Скачать или смотреть महाभारत में कुंती, धृतराष्ट्र और गांधारी को इस तरह मिली थी दर्दनाक मौत

  • Xpose News
  • 2019-08-16
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महाभारत में कुंती, धृतराष्ट्र और गांधारी को इस तरह मिली थी दर्दनाक मौत
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Описание к видео महाभारत में कुंती, धृतराष्ट्र और गांधारी को इस तरह मिली थी दर्दनाक मौत

महाभारत में कुंती, धृतराष्ट्र और गांधारी को इस तरह मिली थी दर्दनाक मौत

महाभारत युद्ध के तत्पश्चात जब युधिष्ठिर हस्तिनापुर के महाराज बनाए गए तब कौरवों के पिता धृतराष्ट्र अपनी पत्नी गांधारी और पांडवों की मां कुंती के साथ वन के लिए रवाना हो गए। और जब यह तीनों युधिष्ठिर के पास वन की ओर जाने के लिए आज्ञा लेने पहुंचे तो युधिष्ठिर व सभी भाइयों ने उन्हें जाने से रोक लिया।

लेकिन भीम कौरवों के प्रति अपनी ईर्ष्या को अधिक दिनों तक दबाकर नहीं रख पाए और जब तब धृतराष्ट्र को ताना मारने लगे। एक दिन भीम के मुंह से कुछ ऐसी बात निकल गई जो धृतराष्ट्र के हृदय में चुभ गई और उन्होंने तय कर लिया कि अब वह राजमहल में नहीं रहेंगे। धृतराष्ट्र गंधारी को लेकर वन जाने लगे तो कुंती भी साथ में वन जाने की जिद्द करने लगी।

युधिष्ठिर ने इस बार भी इन्हें मनाने की खूब कोशिश की लेकिन तीनों नहीं माने। इसी समय वेदव्यास जी भी राजमहल में पधारे और युधिष्ठिर को तीनों को वन जाने की आज्ञा देने के लिए मना लिया। वेदव्यास जी अपने साथ ही धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती को साथ लेकर वन में चले गए। कई वर्षों तक तीनों वानप्रस्थ आश्रम यानी साधु संयासी की तरह जीवन यापन करते हुए वन में रहे। राजसी जीवन से वनवासी की तरह जीवन यापन करने से इनका बुढ़ा शरीर कमजोर होने लगा।

एक दिन संयोगवश वन में आग लग गई। सभी लोग अपनी-अपनी जान बचाकर भागने लगे। धृतराष्ट्र भी गांधारी और कुंती के साथ भागे लेकिन कमजोर शरीर के कारण यह अधिक भाग नहीं सके और वन की आग में घिर गए।
जब बचने से सारे रास्ते बंद नजर आने लगे तब तीनों ध्यान मुद्रा में बैठ गए और इसी अवस्था में वन की आग में जलकर मृत्यु को प्राप्त हो गए।

एक अन्य कथा है कि वानप्रस्थ आश्रम का नियम था कि जब तक शरीर में ताकत है और आपको लगता है कि आप इस आश्रम का पालन कर सकते हैं तब तक इनका पालन करें। अगर समय से पहले शरीर कमजोर पड़ जाए और आप आश्रम के नियम का पालन नहीं कर पाएं तो ध्यान करते हुए अपने प्राण ईश्वर को सौंप दें।धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती भी समय से पहले कमजोर हो गए थे और उन्हें लगने लगा था कि अब वह और इस आश्रम के नियम को नहीं निभा सकते इसलिए उन्होंने ध्यान करते हुए अपने प्राण त्याग दिए।

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