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Скачать или смотреть सावन संकष्ठी गणेश चतुर्थी व्रत कथा सुनने से सभी कष्ट व संकट होंगे समाप्त,जो चाहोगे मिलेगा सबकुछ

  • Aacharya Guruji
  • 2023-07-05
  • 10110
सावन संकष्ठी गणेश चतुर्थी व्रत कथा सुनने से सभी कष्ट व संकट होंगे समाप्त,जो चाहोगे मिलेगा सबकुछ
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सावन संकष्ठी गणेश चतुर्थी व्रत कथा सुनने से सभी कष्ट व संकट होंगे समाप्त,जो चाहोगे मिलेगा सबकुछ
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Chaturthi kab hai | July sankashti chaturthi 2023 | संकष्टी चतुर्थी कब है । Sawan chaturthi 2023
प्रत्येक महीने में दो बार चतुर्थी पड़ती है। एक शुक्ल पक्ष में और दूसरी कृष्ण पक्ष में। शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है जबकि कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा से सभी प्रकार के विघ्न दूर होते हैं।
गजानन संकष्टी चतुर्थी तिथि
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6 जुलाई 2023 गुरुवार
संकष्टी के दिन चंद्रोदय का समय 
चंद्रोदय का समय रात्रि 10:26 PM
चतुर्थी तिथि प्रारंभ 
6 जुलाई 2023 को 10:19 AM
चतुर्थी तिथि समाप्त 
7 जुलाई 2023 को 7:50 AM

पूजा विधि =
संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रती को सुबह जल्दी उठकर नित्यकर्म और स्नान आदि से निवृत्त हो जाना चाहिए। उसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें और हाथ में जल लेकर गणेश जी के सामने व्रत का संकल्प लें।इसके बाद आप सूर्यदेव को जल अर्पित करें। पूजास्थल पर भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करें। इसके बाद उनका गंगाजल से अभिषेक करें। चंदन लगाएं और गणपति जी को वस्त्र पहनाएं।

इसके बाद उन्हें फूल-माला, 21 दूर्वा, फल, अक्षत, धूप-दीप, गंध आदि अर्पित करें और मोदक का भोग लगाएं। अब आप गणेश चालीसा का पाठ करें और संकष्टी चतुर्थी व्रत की कथा पढ़ें और सुनें। अंत में भगवान गणेश की आरती करें। दिनभर फलाहार रहें और रात के समय चंद्रमा को जल अर्पित करें। इसके बाद व्रत का पारण करें। इसके बाद रात्रि में जागरण करें और भजन-पूजा करने के बाद प्रसाद का वितरण करें।
श्रावण मास की चतुर्थी कथा- 
===================
ऋषिगण पूछते हैं कि हे स्कंद कुमार! दरिद्रता, शोक, कुष्ठ आदि से विकलांग, शत्रुओं से संतप्त, राज्य से निष्कासित राज, सदैव दुखी रहने वाले, धनहीन, समस्त उपद्रवों से पीड़ित, विद्याहीन, संतानहीन, घर से निष्कासित लोगों, रोगियों एवं अपने कल्याण की कामना करने वाले लोगों को क्या उपाय करना चाहिए जिससे उनका कल्याण हो और उनके उपरोक्त कष्टों का निवारण हो। यदि आप कोई उपाय जानते हो तो उसे बतलाइए।
स्वामी कार्तिकेय जी ने कहा- हे ऋषियों! आपने जो प्रश्न किया हैं, उसके निवारणार्थ मैं आप लोगों को एक शुभदायक फल बतलाता हूं, उसे सुनिए। इस व्रत के करने से पृथ्वी के समस्त प्राणी सभी संकटों से मुक्त हो जाते हैं। यह व्रतराज महापुण्यकारी एवं मानवों को सभी कार्यों में सफलता प्रदान करने वाला है।
इस व्रत को धर्मराज युधिष्ठिर ने किया था। पूर्वकाल में राजच्युत होकर अपने भाइयों के साथ जब धर्मराज वन में चले गए थे, तो उस वनवास काल में भगवान श्रीकृष्ण ने उनसे कहा था। युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से अपने कष्टों के शमनार्थ जो प्रश्न किया था, उस कथा को आप श्रवण कीजिए।
युधिष्ठिर पूछते हैं कि, हे पुरुषोत्तम! ऐसा कौनसा उपाय हैं जिससे हम वर्तमान संकटों से मुक्त हो सके। हे गदाधर! आप सर्वज्ञ हैं। हम लोगों को आगे अब किसी प्रकार का कष्ट न भुगतना पड़े, ऐसा उपाय बतलाइए।
स्कंदकुमार जी कहते है कि जब धैर्यवान युधिष्ठिर विनम्र भाव से हाथ जोड़कर, बारंबार अपने कष्टों के निवारण का उपाय पूछने लगे तो भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा कि हे राजन! संपूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला एक बहुत बड़ा गुप्त व्रत हैं। हे युधिष्ठिर! इस व्रत के संबंध में मैंने आज तक किसी को नहीं बतलाया हैं।
हे राजन! प्राचीनकाल में सतयुग की बात हैं कि पर्वतराज हिमाचल की सुंदर कन्या पार्वती ने शंकर जी को पति रूप में प्राप्त करने के लिए गहन वन में जाकर कठोर तपस्या की। परंतु भगवान शिव प्रसन्न होकर प्रकट नहीं हुए तब शैलतनया पार्वती जी ने अनादि काल से विधमान गणेश जी का स्मरण किया। गणेश जी को उसी क्षण प्रकट देखकर पार्वती जी ने पूछा कि मैंने कठोर, दुर्लभ एवं लोमहर्षक तपस्या की, किंतु अपने प्रिय भगवान् शिव को प्राप्त न कर सकी। वह कष्ट विनाशक दिव्य व्रत जिसे नारद जी ने कहा है और जो आपका ही व्रत हैं, उस प्राचीन व्रत के तत्व को आप मुझसे कहिए। पार्वती जी की बात सुनकर तत्कालीन सिद्धि दाता गणेश जी उस कष्टनाशक, शुभदायक व्रत का प्रेम से वर्णन करने लगे।गणेश जी ने कहा- हे अचलसुते! अत्यंत पुण्यकारी एवं समस्त कष्टनाशक व्रत को कीजिए। इसके करने से आपकी सभी आकांक्षाएं पूर्ण होगी और जो व्यक्ति इस व्रत को करेंगे उन्हें भी सफलता मिलेगी। श्रावण के कृष्ण चतुर्थी की रात्रि में चंद्रोदय होने पर पूजन करना चाहिए। उस दिन मन में संकल्प करें कि जब तक चंद्रोदय नहीं होगा, मैं निराहार रहूंगी। पहले गणेश पूजन कर ही भोजन करूंगी। मन में ऐसा निश्चय करना चाहिए। इसके बाद सफेद तिल के जल से स्नान करें। मेरा पूजन करें। यदि सामर्थ्य हो तो प्रतिमास स्वर्ण की मूर्ति का पूजन करें। (अभाव में चांदी, अष्ट धातु अथवा मिट्टी की मूर्ति की ही पूजा करें।) अपनी शक्ति के अनुसार सोने, चांदी, तांबे अथवा मिट्टी के कलश में जल भरकर उस पर गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करें। मूर्ति कलश पर वस्त्राच्छादन करके अष्टदल कमल की आकृति बनाएं और उसी मूर्ति की स्थापना करें। तत्पश्चात षोडशोपचार विधि से भक्तिपूर्वक पूजन करें।
मूर्ति का ध्यान निम्न प्रकार से करें- हे लम्बोदर! चार भुजा वाले! तीन नेत्र वाले! लाल रंग वाले! हे नीलवर्ण वाले! शोभा के भंडार! प्रसन्न मुख वाले गणेश जी! मैं आपका ध्यान करता या करती हूं। हे गजानन! मैं आपका आवाहन करता या करती हूं। हे विघ्नराज! आपको प्रणाम करता हूं, यह आसन है।
हे

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