प्राचीन शिव मंदिर, बैजनाथ धाम के दर्शन और रहस्यमयी कथायें। क्या है रावण का इस मंदिर से नाता? दर्शन 🙏

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भक्तों नमस्कार! प्रणाम! सादर नमन, वंदन और अभिनन्दन....जैसा की आप सब जानते हैं कि हमारे देश में हजारों तीर्थस्थान और लाखों प्राचीन मंदिर हैं... सभी की न केवल अपनी अपनी कहानियाँ हैं, इतिहास हैं और मान्यताएँ हैं...बल्कि सभी से जुड़े कुछ घटनाएँ, कुछ चमत्कार और कुछ रहस्य हैं... जो आज वैज्ञानिक युग के तार्किक लोगों में श्रद्धा, आस्था और विश्वास का बीजारोपण कर, नास्तिक को आस्तिक बना देते हैं... ऐसा ही एक मंदिर है पुण्यभूमि हिमांचल प्रदेश के कांगड़ा जिले का ऐतिहासिक प्राचीन बैजनाथ शिव मंदिर...यह मंदिर हिमाच्छादित धौलाधार पर्वत श्रृंखला में धर्मशाला स्टेशन से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी स्थित है..... जो अपनी प्राचीन भव्यता और दिव्यता के कारण शिवभक्तों और श्रद्धालुओं के विशेष आकर्षण का केंद्र है।

बैजनाथ मंदिर की पौराणिक कथा:
भक्तों पुराणों के अनुसार त्रेतायुग में रावण ने हिमाचल के कैलाश पर्वत पर शिवजी को प्रसन्न करने के निमित्त तपस्या की... किन्तु मनवांछित फल न मिलने के कारण घोर तपस्या प्रारंभ की... अंत में उसने अपना एक-एक सिर काटकर हवनकुंड में आहुति देने लगा... वो अपना दसवां और अंतिम सिर काटने ही वाला था कि भगवान शिव प्रसन्न हो गए, और प्रकट होकर रावण का हाथ पकड लिए, उसके सभी सिरों को जोड़कर वर मांगने को कहा।
रावण ने कहा मैं आपके शिवलिंग स्वरूप को लंका में स्थापित करना चाहता हूं। आप दो भागों में अपना स्वरूप दें और मुझे अत्यंत बलशाली बना दें। शिवजी ने तथास्तु कह, अपने दो शिवलिंगस्वरूप देते हुये रावण से पहले कहा कि इन्हें जमीन पर न रखना और अंतर्ध्यान हो गए।
रावण दो शिवलिंगस्वरूप लेके लंका जा रहा था...जब वो गौकर्ण क्षेत्र (बैजनाथ क्षेत्र) में पहुंचा तो उसे लघुशंका लगी। उसने बैजू नाम के ग्वाले को सब बात समझाकर शिवलिंग पकडा दिए और लघुशंका निवारण के लिए चला गया। शिवजी की माया के कारण बैजू उन शिवलिंगों के वजन को ज्यादा देर न सह सका और उन्हें धरती पर रख कर अपने पशु चराने चला गया। इस तरह दोनों शिवलिंग वहीं स्थापित होकर चन्द्रभाल और बैजनाथ नाम से प्रसिद्ध हैं।

मंदिर का इतिहास:
भक्तों! अगर हम इस मंदिर के इतिहास की बात करें तो इसका इतिहास अपने भाग्य और दुर्भाग्य से जूझता हुआ प्रतीत होता है... क्योंकि ये कई बार टूटा और बना है... इस मंदिर में लगे 8वीं सदी के कुछ शिलालेखों के अनुसार- शिलालेख लगने से लाभग 2500-3000 वर्ष पहले भी यह शिवमंदिर था। कुछ शिलालेखों अनुसार-यह मंदिर पांडव युग में भी था... जो ढाई-तीन हज़ार वर्ष पहले किसी प्राकृतिक आपदा के कारण नष्ट भस्ट होकर...तत्कालीन लोगों के द्वारा पुनर्स्थापित किया गया...भक्तों छठीं शताब्दी में फिर इस मंदिर में अधर्मियों ने हमला किया... इसके पश्चात आठवीं सदी में मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ। उस समय यहाँ के राजा लक्ष्मणचन्द्र थे... उन्ही के राज्य के दो व्यापारी भाई मन्युक व आहुक ने इन दोनों शिवलिंगों के लिए मण्डप और ऊंचा मंदिर बनवाया। राजा और दोनों भाइयों ने मंदिर के लिए भूमिदान किया और धन दिया.... आक्रांता महमूद गजनवी ने भारत के अन्य मंदिरों के साथ बैजनाथ मंदिर को भी लूटा और क्षतिग्रस्त किया... फिर सन 1540 ई. में शेरशाह सूरी की सेना ने भी इस मंदिर को तोडा।
क्षतिग्रस्त मंदिर का जीर्णोद्धार 1783-86 ई. में महाराजा संसारचंद द्वितीय ने करवाया था। मंदिर की परिक्रमा के साथ किलेनुमा छह फुट चौडी चारदीवारी बनी हुई है जिसे मंदिर और बैजनाथ के ग्रामवासियों की सुरक्षा के लिए बनवाया गया था। यहां के कटोच वंश के राजाओं ने समय-समय पर मंदिर की सुरक्षा का ध्यान रखा। वर्ष 1905 में आए कांगडा के विनाशकारी भूकंप ने फिर से इस मंदिर को क्षति पहुंचाई थी जिसे पुरातत्व विभाग ने समय रहते संभालकर मरम्मत करवा दी थी। इस मंदिर के कई अवशेष आज भी धरती में धंसे हुए हैं।

प्राकृतिक सौन्दर्य व आकर्षण :
भक्तों! समुद्रतल से लगभग चार हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर के निर्माण आश्चर्यचकित करनेवाला है कि हजारों वर्ष से पहले इस दुर्गम स्थान में ऐसे भव्य और दिव्य मंदिर का निर्माण दैवीय कृपा के बिन असंभव था। मंदिर के पीछे चंद्राकार पहाड़ियाँ, घने जंगल बर्फ से आच्छादित धौलाधार पर्वत श्रृंखला की स्वर्गिक सुंदरता नैसर्गिक श्रृंगार की भांति प्रतीत होता है। यहाँ बहती कन्दुका-बिन्दुका (बिनवा) नदियों की कलकल-छलछल स्वर लहरियाँ मन मुग्ध कर लेती हैं
भक्तों! बैजनाथ का यह क्षेत्र भारत वर्ष में ही नहीं अपितु विश्व भर में हैंग ग्लाइडिंग के लिए सबसे उत्तम स्थान माना जाता है। इसलिए समूचे विश्व से हैंग ग्लाइडिंग के शौकीन लोग निरंतर यहाँ आते रहते हैं। भव्य प्राचीन शिव मंदिर बैजनाथ। वर्ष भर यहां आने वाले श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।

विशेष उत्सव का आयोजन :
भक्तों! महाशिवरात्रि, श्रावण मास, पुरुषोत्तम मास और वर्षा ऋतु में मंदिर में शिवभक्तों की भीड देखते ही बनती है। लेकिन प्रतिवर्ष बैकुंठ चौदस यानि माघ मास के कृष्णपक्ष की चदुर्दशी को यहां विशाल उत्सव का आयोजन होता है... जिसे तारा रात्रि के नाम से जाना जाता है। इस दिन यहाँ पुजारियों द्वारा भक्तों पर अखरोट की वर्षा की जाती है बताया जाता है कि 180 साल से यह पंरपरा चल रही है। भक्तों! भारतवर्ष में यह त्योहार सिर्फ बैजनाथ के इसी शिवमंदिर में मनाया जाता है।

आयोजन का पौराणिक महत्व :
भक्तों! बैकुंठ चौदस के इस आयोजन का पौराणिक महत्व है जिसके अनुसार- शंखासुर नामक राक्षस इंद्र को पराजित कर स्वर्ग का राजा बन बैठा और देवताओं पर शासन करने लगा था।

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