oneshwar mahadev || ओणेश्वर महादेव प्रतापनगर || documentary ||

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#ओणेश्वर_महादेव_मंदिर_का_इतिहास
ओणेश्वर महादेव मंदिर जनपद टिहरी गढ़वाल के विकासखंड प्रताप नगर के पट्टी ओण के मध्य स्थित ग्राम पंचायत देवाल में स्थित प्राचीन एवम् धार्मिक मंदिर है | ओणेश्वर महादेव भगवान शिव स्वरुप है | ओणेश्वर महादेव मंदिर श्रधा , विश्वास , प्रगति और उन्नति का प्रतीक है | इस मन्दिर में श्रीफल के अतिरिक्त और किसी भी चीज की बली नहीं दी गई और आज भी मात्र एक श्रीफल और चावल अपने ईष्ट को पूजने का काम सभी श्रद्धालू करते आ रहे हैं । ओणेश्वर महादेव मंदिर के पश्वा (जिन पर देवता अवतरित होते हैं) उनमें मुख्य रूप से ओनाल गांव के नागवंशी राणा एवं खोलगढ़ के पंवार वंशज व अन्य कई प्रमुख जाति पर अवतरित होते हैं तथा देवता की पूजा के लिए ग्राम सिलवाल गांव के भट्ट जाति के बाह्मण एवं ग्राम जाखणी, पट्टी भदूरा के सेमवाल जाति के ब्राह्मण हैं। पूजा वैसे तो सभी कर सकते हैं किन्तु देवता के पूजा के लिए सिलवाल गांव के मुण्डयाली वंशज भट्ट ब्राह्मण और ग्राम जाखणी के हरकू पण्डित के वंशज की खास जिम्मेदारी मन्दिर पूजा के लिए रहती है। ओणेश्वर महादेव जी की उत्पत्ति कुज्जू सौड़ ओनालगांव के ऊपर मानी जाती है । लोक मान्यता है कि अल्पायु में मृत्यु होने के कारण उक्त स्थान पर श्री ओणेश्वर महादेव द्वारा ऐसी अलौकिक घटनायें की गई जिसमें गांव वालों की चुगने हेतु भेजी हुई गायों का सम्पूर्ण दूध पी जाना , स्थानीय लोगों को रात को स्वप्न में तरह-तरह की घटनाओं से सकार आदि अनेक उदाहरण आज भी सुनने को मिलते हैं । ओणेश्वर महादेव मंदिर के निकट सूरजकुंड स्थित है | इस कुंड पर स्नान करने का पुण्य हरिद्वार या गंगोत्री के सामान माना जाता है | ओणेश्वर महादेव मंदिर के बारे में यह मान्यता है कि इस मंदिर में आकर पूजा करके निसंतान स्त्री को संतान प्राप्ति का सुख प्राप्त होता है | ओणेश्वर महादेव पौराणिक मंदिर में श्रावण मास में हजारों भक्त महादेव के दर्शन कर उनका जलाभिषेक करते हैं । यहीं नहीं इस स्थान पर महा – शिवरात्रि के दिन मंदिर में विशाल मेला भी लगता है।

ओणेश्वर महादेव मंदिर के निर्माण का रहस्य :-
पौराणिक कथा के अनुसार जब देवल गाँव के लोग अपने देवता के निशान को लेकर देवता के निवास स्थान की ओर जा रहे थे , तो गाँव के लोग थोडा-सा आराम करने के लिए भेकल (काटेदार पेड) के पेड के निचे बैठ गए , आराम कर लेने के बाद गाँव के लोग अपने देवता के निशान को उठाने का प्रयास करने लगे लेकिन बहुत जोर अजमाइश के बाद भी लोग देवता के निशान को नहीं उठा पाए | तत्पश्च्यात कुछ लोग भागे-भागे अपने गाँव जाकर अपने बुजुर्गो को बताते है कि उस स्थान से देवता के निशान नहीं उठ रहे है | रात्रि को किसी बड़े बुर्जुग को स्वप्न में साक्षात ओणेश्वर ने जटाधारी बालक के रूप में सफेद मिरजई (एक विशेष प्रकार का लम्बा कुर्ता) पहने हुये स्वप्न में दर्शन देके कहते है कि मैं अब उसी स्थान पर हमेशा के लिए रहूगा और मेरा अब निवास भेकल के पेड़ के नीचे ही रहेगा , यह मेरा अन्तिम निर्णय है। बुर्जुग व्यक्ति ने सुबह उठकर सभी गांव वालों को इस बात से अवगत करवाया तथा सभी लोगों ने यह निर्णय लिया कि वहां पर ही देवता के द्वारा बताये गये स्थान पर देवता का पूजन किया जायेगा। इस प्रकार ग्राम देवल के उक्त स्थान पर मंदिर का निर्माण शुरू किया गया एवम् मंदिर के निर्माण के समय वहां पर एक प्राकर्तिक रूप से विशाल लिंग था | लोगों की भावना के अनुरूप आज वहीं स्थान एक भव्य मन्दिर का रूप ले चुका है।

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