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आल्हा और उदल दो सगे भाई थे,जिनकेवीरता की गाथा समूचे उत्तरभारत में गाई जाती है। आल्हा उदल का जन्म जन्म बारहवीं शताब्दी में उत्तरप्रदेश के महोबा कस्बे में हुआ था। आल्हा के पिता का नाम जक्षराज था, जिनकी ह्त्या मांड़वगढ़ के राजा कालिंगराय ने कर दी थी, जिसके बाद आल्हा और उदल का पालन पोषण महोबा के राजा परमालदेव ने किया, लेकिन आल्हा और उदल का पराक्रम उनके मामा माहिल को रास नहीं आया और आल्हा के सगे मामा महिल ने राजा परमालदेव को गुमराह कर आल्हा और उदल को महोबा सल्तनत से बेदखल करवा दिया।और यहीं से सबकुछ त्यागकर आल्हा और छोटे भाई उदल ने हाथो में तलवार और भाला के साथ अपने घोड़े में सवार होकर मैहर पहुंच गए और यहीं उन्होंने माता शारदा की खोज की और 12 साल माता शारदा की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न कर लिया। अब आगे जानिये कि आल्हा और उदल ने अब तक कितनी लड़ाईया लड़ी और अब भी सबसे पहले आल्हा किस रूप में पहुंचते है माता शारदा के दरबार। आल्हा का नाम किसने नहीं सुना। पुराने जमाने के चन्देल राजपूतों में वीरता और जान पर खेलकर स्वामी की सेवा करने के लिए किसी राजा महाराजा को भी यह अमर कीर्ति नहीं मिली। राजपूतों के नैतिक नियमों में केवल वीरता ही नहीं थी बल्कि अपने स्वामी और अपने राजा के लिए जान देना भी उसका एक अंग था। आल्हा और ऊदल की जिन्दगी इसकी सबसे अच्छी मिसाल है। सच्चा राजपूत क्या होता था और उसे क्या होना चाहिये इसे लिस खूबसूरती से इन दोनों भाइयों ने दिखा दिया है, उसकी मिसाल हिन्दोस्ता- न के किसी दूसरे हिस्से में मुश्किल से मिल सकेगी। आल्हा और ऊदल के मार्के और उसको कारनामे एक चन्देली कवि ने शायद उन्हीं के जमाने में गाये, और उसको इस सूबे में जो लोकप्रियता- प्राप्त है वह शायद रामायण को भी न हो। यह कविता आल्हा ही के नाम से प्रसिद्ध है और आठ-नौ शताब्दियॉँ- गुजर जाने के बावजूद उसकी दिलचस्पी और सर्वप्रियत- ा में अन्तर नहीं आया। आल्हा गाने का इस प्रदेश मे बड़ा रिवाज है। देहात में लोग हजारों की संख्या में आल्हा सुनने के लिए जमा होते हैं। शहरों में भी कभी-कभी यह मण्डलियॉँ दिखाई दे जाती हैं। बड़े लोगों की अपेक्षा सर्वसाधारण- में यह किस्सा अधिक लोकप्रिय है।



Alha and Udal were two brothers, whose saga of heroism is sung throughout Uttarabharata. Alha Udal was born in the twelfth century in the town of Mahoba in Uttar Pradesh. Alha's father's name was Jaksharaj, who was killed by King Kalingrai of Mandavgarh, after which Alha and Udal were brought up by King Paramaldev of Mahoba, but the valor of Alha and Udal did not go well with his maternal uncle Mahil and Alha's The maternal uncle, Mahil, misled King Paramaldev and ousted Alha and Udal from the Mahoba Sultanate, and from there, Alha and younger brother Udal, riding in their horse with sword and spear in hand, reached Maihar and here they mother Discovered Sharada and pleased him by meditating for 12 years. Now know further that how many battles Alha and Udal have fought till now and how Alha is the first to reach the court of Mother Sharda.Who did not hear Alha's name. No King Maharaja even got this immortal fame to serve Swami by playing heroism and life in the old-fashioned Chandel Rajputs. There was not only valor in the moral rules of the Rajputs, but it was also a part of his life for his master and his king. The life of Alha and Udal is the best example of this. These two brothers have beautifully shown what a true Rajput used to be and what it should be; their example will be barely found in any other part of India. The marquess and exploits of Alha and Udal were sung by a Chandeli poet in his era, and the popularity of the state in this province may not even be in the Ramayana. This poem is famous by the name of Alha itself and despite the passing of eight-nine centuries - his interest and popularity did not change. Alha songs have a big custom in this state. Thousands of people gather in the countryside to hear Alha. Sometimes these congregations are also seen in cities.

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