कबीर साहब के दोहे

Описание к видео कबीर साहब के दोहे

0:00 विषय वासना उरझि कर, जनम गंवाया बाद। अब पछितावा क्या करै, निज करनी कर याद ।।

1:17 सोना सज्जन साधुजन, टूट जुड़े सौ बार। दुर्जन कुंभ कुम्हार के, एके धक्का दरार ।।

2:34 मरण भला तब जानिए, छूट जाए हंकार । जग की मरनी क्यों मरें, दिन में सौसौ बार।।

3:55 साधो रण में मिट रहा, टूटन दे हंकार। जग की मरनी क्यों मरें, दिन में सौसौ बार।।

5:10 बहता पानी निर्मला, बंधे सो गंदा होए। साधु जन रमता भला, दाग न लागे कोये ।।

6:29 आग आंच सहना सुगम, सुगम खड़ग की धार। नेह निबाहन एक रस, महा-कठिन व्यवहार ।।

7:45 कबीरा यह संसार है, जैसा सेमल फूल। दिन दस के व्यवहार में, झूठे रंग ना भूल।।

9:00 गगन दमामा बाजिया, पड़े निसाने घाव। खेत बुहारे सूरमा, मोहे मरण का चाव।।

10:13 सूरा सोई सराहिये, लड़े मुक्ति के हेत। पुर्जा पुर्जा कट पड़े, तो भी ना छाड़े खेत।।

11:27 मोटी माया सब तजै, झीनी तजी न जाय। पीर पैगम्बर औलिया, झीनी सबको खाय ।।

12:49 माया तो ठगनी भई, ठगत फिरै सब देस। जा ठग ने ठगनी ठगी, ता ठग को आदेश ।।

13:53 भीतर तो भेदा नहीं, बाहिर कथै अनेक। जो पाई भीतर लखि परै,भीतर बाहर एक।।

14:32 माया दोय प्रकार की, जो कोय जाने खाय। एक मिलावे राम से, एक नरक ले जाय।।

15:50 माया छोड़न सब कहे, माया छोड़ी न जाय । छोड़न की जो बात करूं, बहुत तमाचा खाय ।।

17:07 माया मन की मोहिनी, सुर नर रहे 'लुभाय । इन माया सब खाइया, माया कोय न खाय ॥

18:22 माया तो ठगनी भई, ठगत फिरै सब देस। जा ठग ने ठगनी ठगी, ता ठग को आदेश ।।

19:36 दौड़त दौड़त दौड़िया, जेती मन की दौड़ । दौड़ि थके मन थिर भया, वस्तु ठौर की ठौर।।

20:48 ज्ञानी भूले ज्ञान कथि, निकट रहा निज रूप। बाहिर खोजै बापुरै, भीतर वस्तु अनूप ।।

22:07 राम नाम कड़वा लगे, मीठा लागे दाम। दुविधा में दोनों गए माया मिली ना राम ।।

23:20 जिहि घट प्रीति न प्रेम रस, पुनि रसना नहीं राम। ते नर इस संसार में, उपजि भए बेकाम।।

24:38 कबीरा रेख सिंदूर की, काजर किया न जाय। तन मन में प्रीतम बसा, दूजा

25:42 जल में बसे कुमुदनी, चंदा बसे अकास। जैसी जिसकी भावना, सो ताही के पास ।।

26:19 मनुवा तो पंछी भया, उड़ि के चला अकास। ऊपर ही ते गिर पड़ा, मन माया के पास।।

27:32 बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोए। जो मन खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोए।।

28:44 सुख के संगी स्वारथी, दुःख में रहते दूर। कहैं कबीर परमारथी, दुःख सुख सदा हजूर ।।

29:21 मनुवा तो पंछी भया, उड़ि के चला अकास। ऊपर ही ते गिर पड़ा, मन माया के पास।।

30:41 दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार । तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार ।।

32:02 जहाँ काम तहाँ नाम नहीं, जहाँ नाम नहि काम। दोनो कबहू ना मिलै, रवि रजनी एक ठाम ।।

33:23 दौड़त दौड़त दौड़िया, जेती मन की दौड़ । दौड़ि थके मन थिर भया, वस्तु ठौर की ठौर ।।

34:45 ज्ञानी भूले ज्ञान कथि, निकट रहा निज रूप। बाहिर खोजै बापुरै, भीतर वस्तु अनूप ।।

36:03 साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय । सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाए ।।

37:22 प्रेम पियाला जो पिये, शीश दच्छिना देय । लोभी शीश न दे सके, नाम प्रेम का लेय

38:41 आपा मेटे हरि मिले, हरि मेटे सब जाई। अकथ कहानी प्रेम की, कोई नहीं पतियाय।।

39:58 राम नाम कड़वा लगे, मीठा लागे दाम । दुविधा में दोनों गए माया मिली ना राम ।।

41:19 जिहि घट प्रीति न प्रेम रस, पुनि रसना नहीं राम। ते नर इस संसार में, उपजि भए बेकाम ।।

42:40 राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय।जो सुख साधू संग में, सो बैकुंठ ना होय।

44:09 कबीरा यह संसार है, जैसा सेमल फूल। दिन दस के व्यवहार में, झूठे रंग ना भूल।।

45:36 प्रीति बहुत संसार में, नाना विधि की सोय । उत्तम प्रीति सो जानिये, सतगुरु से जो होय ।।

47:06 जहाँ काम तहाँ नाम नहीं, जहाँ नाम नहि काम। दोनो कबहू ना मिलै, रवि रजनी एक ठाम ।।

48:31 राम नाम कड़वा लगे, मीठा लागे दाम । दुविधा में दोनों गए माया मिली ना राम ।।

50:00 सुरति करो मेरे सांइया, हम है भवजल मांहि। आपे ही बहि जाएंगे, जो नहीं पकड़ो बांहि ।।


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