प्रयोगवाद अर्थ परिभाषा व प्रवृत्तियां प्रमुख कवि उनकी रचनाऐं। प्रगतिवाद व प्रयोगवाद में मुख्य अंतर।

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प्रयोगवाद-

प्रयोगवाद हिंदी कविता की वह धारा थी जिसमें प्रयोग को केंद्रीय महत्व दिया गया।
प्रयोगवाद के कवियों में हम सर्वप्रथम तारसप्तक के कवियों को गिनते हैं और इसके प्रवर्तक कवि सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय हैं।
तारसप्तक 1943 ई. में प्रकाशित हुआ। इसमें सात कवियों को शामिल किए जाने के कारण इसका नाम तारसप्तक रखा गया।
अज्ञेय ने इन कवियों को नए राहों का अन्वेशी कहा था। ये किसी मंजिल पर पहुंचे हुए नहीं हैं,बल्कि अभी पथ के अन्वेषक हैं। इसी संदर्भ में अज्ञेय ने प्रयोग शब्द का प्रयोग किया, जहां से प्रयोगवाद की उत्पत्ति स्वीकार की जाती है।
प्रयोगवादी काव्यधारा की प्रमुख विशेषताएँ

1 अतियथार्थवादिता
2 बौद्धिकता की अतिशयता
3 घोर वैयक्तिकता
4 वाद व विचारधारा का विरोध
5 नवीन उपमानों का प्रयोग
6 निराशावाद
7 साहस और जोखिम
8 व्यापक अनास्था की भावना
9 क्षणवाद
10 सामजिक यथार्थवाद की भावना


प्रगतिवाद व प्रयोगवाद में मुख्य अंतर

1 ‘प्रगतिवादी कविता’ में शोषित वर्ग / निम्न वर्ग को केंद्र में रखा गया है, जबकि ‘प्रयोगवादी कविता’ में स्वयं के जीये हुए यथार्थ जीवन का चित्रण होता है |
2 प्रगतिवादी कविता ‘विचारधारा को महत्त्व’ देती है , जबकि प्रयोगवादी कविता ‘अनुभव को महत्त्व’ देती है |
3 प्रगतिवादी कविता में सामाजिक भावना की प्रधानता दिखाई देती है, जबकि प्रयोगवादी कविता में व्यक्तिगत भावना की प्रधानता दिखाई देती है |
4 प्रगतिवादी कविता में ‘विषयवस्तु को अधिक महत्त्व’ दिया गया है, जबकि प्रयोगवादी कविता में ‘कलात्मकता को अधिक महत्त्व’ दिया गया है |

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