भरी राज दरबार में एक राजकुमारी का स्वयंमबर! अर्जुन का विवाह एक राजकुमारी से! Real Mahabharat Story!

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राजकुमारी द्रौपदी का स्वयंवर और अर्जुन से विवाह

प्राचीन भारत के इतिहास में महाभारत एक महान महाकाव्य है, जिसमें कई असाधारण पात्रों और घटनाओं का वर्णन है। महाभारत की सबसे रोचक घटनाओं में से एक है राजकुमारी द्रौपदी का स्वयंवर, जिसमें अर्जुन ने अपनी वीरता और कौशल से द्रौपदी का हाथ जीता। यह कहानी न केवल एक राजकुमारी के विवाह की है, बल्कि इसमें छिपी हुई नीतियाँ, युद्ध कौशल, और वीरता की पराकाष्ठा भी है।

प्रारंभिक परिस्थिति
यह कथा शुरू होती है प्राचीन भारत के एक शक्तिशाली राज्य पांचाल से, जहाँ राजा द्रुपद राज्य करते थे। राजा द्रुपद की एकमात्र पुत्री, द्रौपदी, अपार सौंदर्य और अद्वितीय गुणों वाली थी। उनकी इच्छा थी कि उनकी पुत्री का विवाह किसी ऐसे वीर से हो, जो साहस, धैर्य, और वीरता का प्रतीक हो। इसलिए, उन्होंने द्रौपदी के विवाह के लिए एक भव्य स्वयंवर का आयोजन किया, जिसमें भारत के सभी महान राजकुमारों, योद्धाओं, और राजाओं को आमंत्रित किया गया।

स्वयंवर की घोषणा
द्रुपद ने स्वयंवर के लिए एक विशेष प्रतियोगिता की योजना बनाई, जिसमें सबसे कुशल धनुर्धर को एक विशाल धनुष उठाकर, एक घूमती हुई मछली की आँख को ऊपर लगे दर्पण में देखकर लक्ष्य भेदना था। यह कार्य असंभव के समान था, और केवल वही योद्धा यह कार्य कर सकता था, जो असीम शक्ति और धैर्य रखता हो। इस प्रकार स्वयंवर की शर्तें अत्यंत कठिन थी, ताकि केवल सच्चा वीर ही द्रौपदी का हाथ जीत सके।

पांच पांडवों का आगमन
उसी समय, पांच पांडव - युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, और सहदेव - अपने वनवास के समय गुप्त रूप से भिक्षुओं के रूप में स्वयंवर में पहुंचे। हस्तिनापुर के राजकुमार होने के बावजूद, वे राज्य से निर्वासित थे और जनता में अपनी पहचान छिपा रहे थे। अर्जुन, जो अपने धनुर्विद्या कौशल के लिए प्रसिद्ध थे, इस चुनौती को स्वीकार करने के लिए तैयार थे।

स्वयंवर का शुभारंभ
स्वयंवर के दिन, पांचाल की राजधानी में राजा द्रुपद के दरबार को अत्यंत भव्य रूप से सजाया गया। दूर-दूर से राजा और योद्धा इस स्वयंवर में भाग लेने के लिए आए थे। सभा में हस्तिनापुर के कौरव भाई - दुर्योधन, दु:शासन और कर्ण भी उपस्थित थे। सभी की निगाहें उस विशाल धनुष और घूमती हुई मछली पर टिकी थीं, जो आकाश में एक ऊंचे स्थान पर टंगी थी।

राजकुमारी द्रौपदी अपने भव्य वस्त्रों में प्रकट हुईं। उनका सौंदर्य देखकर सभी राजकुमार और योद्धा मोहित हो गए। द्रौपदी ने सभा को नमन करते हुए घोषणा की कि जो भी योद्धा इस प्रतियोगिता को सफलतापूर्वक पूरा करेगा, वही उनका पति बनेगा।

प्रतियोगिता का आरंभ
स्वयंवर की प्रतियोगिता शुरू हुई, और एक-एक कर विभिन्न राजकुमार और योद्धा धनुष उठाने के लिए आगे बढ़े। कौरवों में से दुर्योधन और दु:शासन ने भी प्रयास किया, लेकिन वे उस विशाल धनुष को उठा भी न सके। कर्ण, जो अपने अद्वितीय युद्ध कौशल के लिए जाना जाता था, ने भी यह कार्य करने का प्रयास किया। उसने धनुष को उठाया और उसे ताना, लेकिन जैसे ही वह लक्ष्य पर निशाना साधने के लिए तैयार हुआ, द्रौपदी ने यह कहते हुए उसका अपमान किया कि वह एक सारथी का पुत्र है, और वह उससे विवाह नहीं कर सकती।

कर्ण के अपमान के बाद, सभा में एक सन्नाटा छा गया। कोई भी योद्धा इस कठिन चुनौती को पूरा नहीं कर पा रहा था। तब अचानक, अर्जुन भिक्षु के वेश में सभा के बीच से उठे और धनुष के पास गए। सभी राजकुमार और दर्शक उन्हें अविश्वास की दृष्टि से देख रहे थे, क्योंकि कोई नहीं जानता था कि वह वास्तव में अर्जुन थे।

अर्जुन की वीरता
अर्जुन ने धैर्यपूर्वक धनुष को उठाया और सहजता से उसे तान दिया। उन्होंने ऊपर लगे दर्पण में देखकर घूमती हुई मछली की आँख पर सटीक निशाना साधा। मछली की आँख भेदने के साथ ही सभा में जयकारों की गूंज उठी। अर्जुन ने यह अद्वितीय कार्य सफलता पूर्वक पूरा कर लिया था, और सभी को उनकी वीरता और कौशल पर गर्व हो रहा था।

द्रौपदी का विवाह अर्जुन से
द्रौपदी ने अर्जुन को विजेता के रूप में स्वीकार किया और उन्हें वरमाला पहनाई। इस क्षण ने अर्जुन की वीरता को प्रमाणित कर दिया, और द्रुपद ने अपनी पुत्री का विवाह अर्जुन के साथ करने की घोषणा की। यद्यपि अर्जुन और उनके भाइयों की पहचान गुप्त थी, परंतु द्रुपद ने अर्जुन के धनुर्विद्या कौशल से उनकी असली पहचान को भांप लिया।

दुर्योधन और कर्ण की प्रतिक्रिया
इस घटना ने दुर्योधन और कर्ण को अत्यधिक क्रोधित कर दिया, क्योंकि वे दोनों भी द्रौपदी का हाथ जीतना चाहते थे। कर्ण विशेष रूप से अपमानित महसूस कर रहा था, क्योंकि द्रौपदी ने सार्वजनिक रूप से उसे नीचा दिखाया था। दुर्योधन ने अर्जुन से बदला लेने का निश्चय किया, और यह घटना भविष्य में कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध का एक और कारण बनी।

पांच पांडव और द्रौपदी
जब अर्जुन और उनके भाई द्रौपदी के साथ अपने घर लौटे, तो उन्होंने अपनी माँ कुंती को कहा, "माँ, देखो हम क्या लाए हैं!" कुंती ने बिना देखे कहा, "जो भी लाए हो, आपस में बाँट लो।" इस पर सभी पांडव आश्चर्यचकित हो गए, क्योंकि उनकी माँ की आज्ञा का पालन करना उनका धर्म था। परिणामस्वरूप, द्रौपदी सभी पांच पांडवों की पत्नी बनीं। यह महाभारत की एक महत्वपूर्ण घटना थी !

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