गाजियाबाद स्तिथ प्राचीन तथा चमत्कारी श्री दूधेश्वर नाथ महादेव मंदिर दर्शन | 4K | दर्शन 🙏

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श्रेय:
संगीत एवम रिकॉर्डिंग - सूर्य राजकमल
लेखक - रमन द्विवेदी

भक्तों नमस्कार! प्रणाम और हार्दिक अभिनन्दन! भक्तों हम आपको अपने कार्यक्रम दर्शन के माध्यम से देश के प्रतिष्ठित सुप्रसिद्ध व चमत्कारिक मंदिरों और धामों की निरंतर यात्रा करवाते आए हैं इसी क्रम में हम आपको जिस पवित्र और पौराणिक धाम और मंदिर की यात्रा करवाने जा रहे हैं जो न केवल त्रेता युग में महर्षि पुलस्त्य के सुपुत्र और लंकापति रावण के पिता की तपस्थली रहा बल्कि लंकापति रावण ने भी यहाँ रहकर भगवान् शिव की कठोर साधना की थी। वो पौराणिक दिव्य धाम और मंदिर है श्री दूधेश्वर नाथ महादेव मंदिर!

मंदिर के बारे में:
भक्तों श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मंदिर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के गाजियाबाद जिले के प्रेमनगर माधोपुरा में स्थित है जो कि दिल्ली एनसीआर की सीमा में आता है। पूर्णतः भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर दिल्ली एन सी आर का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर का इतिहास लगभग 5000 वर्ष पुराना है।

गाज़ियाबाद का इतिहास:
भक्तों पुराणों में गाज़ियाबाद का उल्लेख “कोट-कुलजम” नामक एक समृद्ध नगरी के रूप मिलता है। 2500 ईस्वी पूर्व मे कुलजम एक विकसित व् समृद्ध जनपद था। इसे गाज़ियाबाद के हिंडन नदी के तट पर स्थित केसरी टीले की खुदाई से प्रमाणित भी किया जा चूका है। मुग़ल शासक गाज़िउद्दीन ने कालांतर कुलजम का नाम बदलकर गाज़ियाबाद कर दिया था। जबकि गाज़ियाबाद जिले की पूर्वी सीमा पर कोट गाँव आज भी विद्यमान है। पुराणों में गाजियाबाद के पास बहने वाली हिंडन नदी को हरनंदी तथा हिरण्यदा नदी कहा गया है।

पौराणिक इतिहास:
भक्तों पुराणों में हरनंदी या हिरण्यदा नदी के किनारे हिरण्यगर्भ ज्योतिर्लिंग और आस पास कोट कुलजम का वर्णन है। इस स्थान को महर्षि पुलस्त्य के पुत्र एवं रावण के पिता परम तपस्वी विश्रवा की तपस्थली के रूप में रेखांकित किया गया बल्कि यह भी बताया गया कि लंकापति रावण ने भी इस स्थान पर घोर तपस्या की थी। इसके अलावा पुराणों में यह भी जिक्र आता है कि रावण ने स्वयं यहां भगवान शिव की भक्ति और पूजा-अर्चना की थी। भक्तों समय के साथ-साथ हरनंदी या हिरण्यदा नदी का नाम हिंडन नदी हो गया और हिरण्यगर्भ ज्योतिर्लिंग का नाम भी समय और घटनाओं के अनुसार बदला और दूधेश्वर महादेव कहलाने लगा।

मुगलों का अत्याचार:
भक्तों आक्रान्ताओं ने अपनी संकीर्ण मानसिकता, कुत्सित सोच और क्रूरता के कारण भारत और भारतीयता को मिटाने का बहुत प्रयास किया। हजारों मंदिर तोड़े, गुरुकुल और विद्यालय तोड़े, लाखों पुस्तकालय जलाया और लाखों निर्दोष हिन्दुओं का नरसंहार किया। इसी क्रम में गाजियाबाद का दुग्धेश्वर अर्थात दूधेश्वर नाथ मंदिर भी क्रूर आक्रान्ताओं के अत्याचार से न बच पाया। अन्य मंदिरों की तरह ही के इस दूधेश्वरनाथ शिव मंदिर में भी भारी लूटपाट की और इस मंदिर को भी नष्ट कर दिया गया था। विरोध करने वाले हजारों हिन्दुओं को कत्ल कर दिया गया और मंदिर का अस्तित्व ही मिटा दिया गया था। मंदिर के साक्ष्यों को दबा दिया गया था, ताकि हिन्दू अनुयायी यहां धर्म और भक्ति के नाम पर विद्रोह न कर सकें। और इसका परिणाम यह हुआ कि कई वर्षों तक यह पवित्र स्थान गुमनाम रहा।

गाय ने की थी शिवलिंग की खोज:
भक्तों सैकड़ों वर्ष के बाद इतिहास ने करवट ली, देवाधिदेव महादेव भगवान् शिव का एक चमत्कार हुआ। जिसके बारे में माना जाता है कि प्राचीन समय में इस स्थान पर घना जंगल था आस पास के लोग यहाँ अपने गायों को चराने लाया करते थे। मंदिर के पास ही के कैला नामक गांव की गायें भी यहां चरने के लिए आती थीं उन्ही गायों में एक लम्बो प्रजाति की गाय थी। संवत 1511 की बात है जब लंबो गाय एक टीले के ऊपर पहुँची तो उसके स्तन से स्वतः दूध गिरने लगा। और ये क्रम निरंतर चलने लगा। जैसे ही लंबो टीले पर पहुँचती उसके स्तन से स्वतः ही दूध गिरने लगता था और गाय का सारा दूध खाली हो जाता था। बहुत दिनों तक ऐसा होने के बाद गाय के मालिक ने गाय चरानेवाले ग्वाले से इस बात की शिकायत की तब ग्वाले ने गाय का पीछा करना उस गाय का पीछा करना शुरू किया। पीछा करने के बाद उसने देखा कि एक विशेष स्थान में गायों के पहुंचते ही दूध की धार बंध जाती है। यह पूरा किस्सा ग्वाले ने गांव वालों को आकर बताया। जिसके बाद गांव के सभी लोग एक एक कर उस स्थान पर पहुंचने लगे थे। वहीं दूसरी ओर कोट नामक गांव में दसनामी जूना अखाड़े से सम्बद्ध एक सन्यासी थे। जो उच्चकोटि के सिद्ध महात्मा थे। उनको भगवान शिव ने स्वप्न में दर्शन दिए और उस स्थान पर पहुंचने का आदेश दिया। प्रातः इधर गाँव वाले लोग पहुंचे और दूसरी तरफ से महात्मा अपने शिष्यों के साथ इस पावन स्थल पर पहुंच गए। इसके बाद खुदाई शुरू की गई।

शिवलिंग का प्राकट्य:
भक्तों संवत 1511 के कार्तिक मास की शुक्ल त्रयोदशी शुभ तिथि थी जब खुदाई के बाद वहां शिवलिंग का प्राकट्य हुआ। जिनकी विधिपत प्रतिस्थापित कर करके पूजा की जाने लगी।

भक्त को भगवान से और जिज्ञासु को ज्ञान से जोड़ने वाला एक अनोखा अनुभव। तिलक प्रस्तुत करते हैं दिव्य भूमि भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों के अलौकिक दर्शन। दिव्य स्थलों की तीर्थ यात्रा और संपूर्ण भागवत दर्शन का आनंद। दर्शन ! 🙏

इस कार्यक्रम के प्रत्येक एपिसोड में हम भक्तों को भारत के प्रसिद्ध एवं प्राचीन मंदिर, धाम या देवी-देवता के दर्शन तो करायेंगे ही, साथ ही उस मंदिर की महिमा उसके इतिहास और उसकी मान्यताओं से भी सन्मुख करायेंगे। तो देखना ना भूलें ज्ञान और भक्ति का अनोखा दिव्य दर्शन। 🙏

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

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