श्री कृष्ण लीला | महासंग्राम महाभारत | द्रोणाचार्य और कर्ण वध (भाग - 2)

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   • बजरंग बाण | पाठ करै बजरंग बाण की हनुम...  
बजरंग बाण | पाठ करै बजरंग बाण की हनुमत रक्षा करै प्राण की | जय श्री हनुमान | तिलक प्रस्तुति 🙏 भक्त को भगवान से और जिज्ञासु को ज्ञान से जोड़ने वाला एक अनोखा अनुभव। तिलक प्रस्तुत करते हैं दिव्य भूमि भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों के अलौकिक दर्शन। दिव्य स्थलों की तीर्थ यात्रा और संपूर्ण भागवत दर्शन का आनंद।

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अगले दिन का युद्ध शुरू हो जाता है कर्ण पांडवों की सेना पर टूट पड़ता है और उन पर अपने बाणों की वर्षा कर देता है। दूसरी ओर अर्जुन कौरवों की सेना पर हमला करता है। कर्ण अपने रथ को अर्जुन की ओर ले जाने के लिए कहता है। अर्जुन तक जाने से पहले उसे भीम रोक लेता है और उसे युद्ध के लिए ललकारता है। भीम कर्ण पर प्रहार करता है कर्ण भीम को निरस्त्र कर देता है और उसे हरा देता है तो भीम अपने रथ से उतर कर कर्ण की ओर तलवार लेकर बढ़ता है तो कर्ण उसे फिर से निरस्त्र कर देता है भीम बहुत कोशिश करता है लेकिन कर्ण को हरा नहीं पाता। कर्ण भीम को अपने बाण से घायल कर देता है। भीम के सैनिक इसे उठा कर रथ में बैठाते हैं और वापस ले जाते हैं। अर्जुन और कर्ण एक दूसरे के आमने सामने आ जाते हैं। अर्जुन अपने धनुष की टंकार से अपनी शक्ति का प्रदर्शन करता है और उसके जवाब में कर्ण भी अपने धनुष की टंकार से आसमान को दहला देता है। अर्जुन कर्ण को अपमानित करता है कर्ण अर्जुन को कहता है की तुम अपनी जिह्वा को ना चला कर अपने बाण चलाओ। दोनों में युद्ध शुरू हो जाता है। अर्जुन कर्ण पर वार करता तो कर्ण का रथ पीछे की ओर खिसक जाता। लेकिन जब कर्ण अर्जुन पर वार करता तो अर्जुन का रथ भी पीछे की ओर जाता जिस पर श्री कृष्ण कर्ण की वार की प्रशंसा करते हैं।

कर्ण का एक बाण श्री कृष्ण को जा लगता है श्री कृष्ण को बाँ लगने से अर्जुन क्रोधित होता है कर्ण अर्जुन को कहता है की तुम कैसे धनुर धर हो तुमसे अपने सारथी की रक्षा तो हो नहीं रही तो तुम अपनी रक्षा कैसे करोगे। अर्जुन कर्ण पर दिव्य अस्त्र से वार करता है जिसका उत्तर कर्ण भी दिव्य अस्त्र से देता है। दोनों में भीषण युद्ध होता है। कर्ण अर्जुन पर हमला करने के लिए वैष्णों अस्त्र से हमला करता है लेकिन श्री कृष्ण कर्ण के अस्त्र के सामने आकार खड़े हो जाते है जो एक फूलों के हार बदल कर उनके गले में डल जाता है। कर्ण के वैष्णों अस्त्र से जैसे ही श्री कृष्ण अर्जुन को बचाते हैं सूर्यास्त हो जाता है और युद्ध रुक जाता है। श्री कृष्ण की वजह से धृतराष्ट्र को दुर्योधन की हर वार के विफल होने से दुःख होता है। अर्जुन कर्ण से बदला लेने के लिए युद्ध में आता है। दोनों में युद्ध शुरू हो जाता है। दोनों एक दूसरे के अस्त्रों का उचित अस्त्रों से जवाब देते हैं। कर्ण अर्जुन पर भारी पड़ता है और अर्जुन को घायल कर देता है। कर्ण के बहुत से बाँ अर्जुन की ओर जाते और अर्जुन के रथ पर लगी हनुमान जी की मूर्ति में जा समा जाते हैं। अर्जुन पर कर्ण नाग अस्त्र का प्रयोग करता है।

जिस पर अश्वसेन नाग बैठ कर अर्जुन की ओर वार करने चल पड़ता है। श्री कृष्ण कर्ण के बाण से अर्जुन को बचाने के लिए रथ को ज़मीन में धँसा देते हैं और कर्ण का बाण अर्जुन के मुकुट से टकरा जाता है। श्री कृष्ण अर्जुन को अश्वसेन सर्प के बारे मीन बताते हैं और उसे मारने के लिए कहते हैं। अर्जुन सर्प को मार देता है। अर्जुन और कर्ण में दुबारा युद्ध शुरू हो जाता है। कर्ण अर्जुन से लड़ने के लिए जैसे ही अपने सारथी को रथ अर्जुन के ओर नज़दीक ले जाने के लिए कहता है तो उसका रथ का पहिया धँस जाता है। और उसे एक ऋषि द्वारा दिए गए श्राप की याद आ जाती है की जब उसने गलती से एक ऋषि की गाय को मार दिया था तो उस ऋषि ने कर्ण को श्राप दिया था की जब तू अपने परम शत्रु से युद्ध करेगा तो युद्ध करते समय तेरे रथ का पहिया ज़मीन में धँस जाएगा। कर्ण अर्जुन को अपने मायावी बाण की शक्ति से उलझा कर अपने रथ का पहिया निकलने के लिए रथ से उतर जाता है और अपना धनुष रख कर रथ का पहिया निकलने की कोशिश करता है।

अर्जुन कर्ण के दिव्य बाण को नष्ट कर देता है और कर्ण उसे देख जैसे ही उसपे बाण चलाने की कोशिश करता है उसके दिव्य अस्त्र प्रकट नहीं होते क्योंकि उसे परशुराम जी का श्राप था की उसे समय पड़ने पर उसकी शक्ति काम नहीं करेगी। कर्ण फिर से अपना धनुष रख कर पहिया निकलता है तभी अर्जुन उस पर वार कर देता है। कर्ण अर्जुन को धुतकारता है की तुमने निहत्थे शत्रु पर वार किया। श्री कृष्ण को भी वह बर कहता है की तुमने अपने शिष्य को अधर्म से युद्ध करने की शिक्षा क्यों दी। श्री कृष्ण कर्ण को उसकी गलती के बर में बताते हैं। श्री कृष्ण अर्जुन को कर्ण पर हमला कर उसे मारने के लिए कहते हैं। अर्जुन श्री कृष्ण के आदेश से कर्ण पर हमला कर देता है और निहत्था कर्ण मारा जाता है।

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