स्वर - सारंग प्रभा
श्री अर्जुन कृत श्री दुर्गा स्तुति :
महाभारत के वनपर्व में अर्जुन द्वारा रचित श्री दुर्गा स्तुति एक प्रसिद्ध स्तोत्र है। यह स्तोत्र देवी दुर्गा की वीरता और शक्ति का गुणगान करता है।
स्तोत्र का आरंभ देवी दुर्गा के विभिन्न नामों और रूपों का वर्णन करते हुए होता है। अर्जुन देवी को सिद्धसेनानी, आर्ये, मन्दरवासिनि, भद्रकाली, महाकाली, चंडी, तारिणी, वरवर्णिनी, कात्यायनी, महाभागे, करालि, विजये, जये, अम्बिके, जगदम्बे, इंदिरा, भवानी, शिवदुहिता, विष्णुप्रिया, त्रिपुरा, भवानी, ईश्वरी, शारदा, भवती, खड्गधारिणी, त्रिनेत्री, सिंहवाहनी, दुर्गतिनाशनी, भयनाशनी, सर्वसिद्धिप्रदायिनी, मातृभूत, सर्वमंगला, मंगलकारी आदि नामों से संबोधित करते हैं।
इसके बाद अर्जुन देवी दुर्गा से युद्ध में विजय प्राप्ति और शत्रुओं पर विनाश करने का वरदान मांगते हैं। वे देवी से प्रार्थना करते हैं कि वे उन्हें सदैव रक्षा प्रदान करें और उन्हें सदाचार के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दें।
स्तोत्र का समापन देवी दुर्गा के प्रति पूर्ण समर्पण और भक्तिभाव के भाव के साथ होता है।
श्री अर्जुन कृत श्री दुर्गा स्तुति न केवल एक धार्मिक स्तोत्र है, बल्कि यह वीरता, शक्ति और आत्मविश्वास का भी प्रतीक है। यह स्तोत्र उन लोगों के लिए प्रेरणादायी है जो जीवन में कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं और सफलता प्राप्त करना चाहते हैं।
यह स्तोत्र निम्नलिखित अवसरों पर पढ़ा जाता है:
नवरात्रि के दौरान
युद्ध या संघर्ष से पहले
किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत में
देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त करने के लिए
इस स्तोत्र का पाठ करने से मन में शांति और सकारात्मकता आती है। भय और नकारात्मक विचार दूर होते हैं। व्यक्ति को आत्मबल और आत्मविश्वास प्राप्त होता है।
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