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Скачать или смотреть होलाष्टक क्या है// होलाष्टक में क्या क्या कार्य वर्जित हैं। भक्त प्रहलाद की कथा।।

  • Divine Faith
  • 2021-02-23
  • 49
होलाष्टक क्या है// होलाष्टक में क्या क्या कार्य वर्जित हैं। भक्त प्रहलाद की कथा।।
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Описание к видео होलाष्टक क्या है// होलाष्टक में क्या क्या कार्य वर्जित हैं। भक्त प्रहलाद की कथा।।

ज्योतिष शास्त्र में होली से आठ दिन पूर्व शुभ कार्यों के करने की मनाही होती है। होली से पूर्व के इन आठ दिनों को होलाष्टक कहा जाता है। 

होलाष्टक का अर्थ है होली से पहले के आठ दिन। इन आठ दिनों में विवाह हो या ग्रह प्रवेश या फिर अन्य कोई भी ऐसा शुभ कार्य जिसे करने के लिये शुभ समय देखने की आवश्यकता आपको पड़ती है, नहीं किया जाता। मान्यता है कि हरिण्यकशिपु ने अपने पुत्र भक्त प्रह्लाद को भगवद् भक्ति से हटाने और हरिण्यकशिपु को ही भगवान की तरह पूजने के लिये अनेक यातनाएं दी लेकिन जब किसी भी तरकीब से बात नहीं बनी तो होली से ठीक आठ दिन पहले उसने प्रह्लाद को मारने के प्रयास आरंभ कर दिये थे। लगातार आठ दिनों तक जब भगवान अपने भक्त की रक्षा करते रहे तो होलिका के अंत से यह सिलसिला थमा। इसलिये आज भी भक्त इन आठ दिनों को अशुभ मानते हैं। उनका यकीन है कि इन दिनों में शुभ कार्य करने से उनमें विघ्न बाधाएं आने की संभावनाएं अधिक रहती हैं।

2021 में कब से कब तक होगा होलाष्टक
होलाष्टक का आरंभ - 21 मार्च 2021 को रविवार के दिन से होगा.
होलष्टक समाप्त होगा - 28 मार्च 2021 को रविवार के दिन होगा.
होलाष्टक का समापन होलिका दहन पर होता है. रंग और गुलाल के साथ इस पर्व का समापन हो जाता है

होलाष्टक के समय पर हिंदुओं में बताए गए शुभ कार्यों एवं सोलह संस्कारों में से किसी भी संस्कार को नहीं किया जाने का विधान रहा है. मान्यता है की इस दिन अगर अंतिम संस्कार भी करना हो तो उसके लिए पहले शान्ति कार्य किया जाता है. उसके उपरांत ही बाकी के काम होते हैं. संस्कारों पर रोक होने का कारण इस अवधि को शुभ नहीं माना गया है.

पौराणिक कथाओं के मुताबिक, दैत्यों के राजा हिरयकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को भगवान श्री विष्णु की भक्ति न करने को कहा. लेकिन प्रह्लाद अपने पिता कि बात को नहीं मानते हुए श्री विष्णु भगवान की भक्ति करता रहा. इस कारण पुत्र से नाराज होकर राजा हिरयकश्यप ने प्रह्लाद को कई प्रकार से यातनाएं दी. प्रह्लाद को फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तिथि तक बहुत प्रकार से परेशान किया. उसे मृत्यु तुल्य कष्ट प्रदान किया. प्रह्लाद को मारने का भी कई बार प्रयास किया गया. प्रह्लाद की भक्ति में इतनी शक्ति थी की भगवान श्री विष्णु ने हर बार उसके प्राणों की रक्षा की.

आठवें दिन यानी की फाल्गुन पूर्णिमा के दिन हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के लिए अपनी बहन होलिका को जिम्मा सौंपा. होलिका को वरदान प्राप्त था की वह अग्नि में नहीं जल सकती. होलिका प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाती है. मगर भगवान श्री विष्णु ने अपने भक्त को बचा लिया. उस आग में होलिका जलकर मर गई लेकिन प्रह्लाद को अग्नि छू भी नहीं पायी. इस कारण से होलिका दहन से पहले के आठ दिनों को होलाष्टक कहा जाता हैं और शुभ समय नहीं माना जाता.

ज्योतिषियों के अनुसार होलाष्टक का प्रभाव तीर्थ क्षेत्र में नहीं मान जाता है, लेकिन इन आठ दिनों में मौसम परिवर्तित हो रहा होता है, व्यक्ति रोग की चपेट में आ सकता है और ऐसे में मन की स्थिति भी अवसाद ग्रस्त रहती है। इसलिए शुभकार्य वर्जित माने गए हैं। होलाष्टक के आठ दिनों को व्रत, पूजन और हवन की दृष्टि से अच्छा समय माना गया है।

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