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Скачать или смотреть दो नज़्में - ये वक्त क्या है -और- ये खेल क्या है || Poetry on Time & Chess - by Javed Akhtar

  • PoeYtic
  • 2022-05-09
  • 855
दो नज़्में - ये वक्त क्या है -और- ये खेल क्या है || Poetry on Time & Chess - by Javed Akhtar
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Описание к видео दो नज़्में - ये वक्त क्या है -और- ये खेल क्या है || Poetry on Time & Chess - by Javed Akhtar

Ye Khel Kya Hai - Nazm || Poetry by Javed Akhtar || #KaavyBhav

.
मिरे मुख़ालिफ़ ने चाल चल दी है
और अब
मेरी चाल के इंतिज़ार में है
मगर मैं कब से
सफ़ेद-ख़ानों
सियाह-ख़ानों में रक्खे
काले सफ़ेद मोहरों को देखता हूँ
मैं सोचता हूँ
ये मोहरे क्या हैं

अगर मैं समझूँ
के ये जो मोहरे हैं
सिर्फ़ लकड़ी के हैं खिलौने
तो जीतना क्या है हारना क्या
न ये ज़रूरी
न वो अहम है
अगर ख़ुशी है न जीतने की
न हारने का ही कोई ग़म है
तो खेल क्या है
मैं सोचता हूँ
जो खेलना है
तो अपने दिल में यक़ीन कर लूँ
ये मोहरे सच-मुच के बादशाह ओ वज़ीर
सच-मुच के हैं प्यादे
और इन के आगे है
दुश्मनों की वो फ़ौज
रखती है जो कि मुझ को तबाह करने के
सारे मंसूबे
सब इरादे
मगर ऐसा जो मान भी लूँ
तो सोचता हूँ
ये खेल कब है
ये जंग है जिस को जीतना है
ये जंग है जिस में सब है जाएज़
कोई ये कहता है जैसे मुझ से
ये जंग भी है
ये खेल भी है
ये जंग है पर खिलाड़ियों की
ये खेल है जंग की तरह का
मैं सोचता हूँ
जो खेल है
इस में इस तरह का उसूल क्यूँ है
कि कोई मोहरा रहे कि जाए
मगर जो है बादशाह
उस पर कभी कोई आँच भी न आए
वज़ीर ही को है बस इजाज़त
कि जिस तरफ़ भी वो चाहे जाए

मैं सोचता हूँ
जो खेल है
इस में इस तरह उसूल क्यूँ है
पियादा जो अपने घर से निकले
पलट के वापस न जाने पाए
मैं सोचता हूँ
अगर यही है उसूल
तो फिर उसूल क्या है
अगर यही है ये खेल
तो फिर ये खेल क्या है

मैं इन सवालों से जाने कब से उलझ रहा हूँ
मिरे मुख़ालिफ़ ने चाल चल दी है
और अब मेरी चाल के इंतिज़ार में है

—

नज़्म - ये वक़्त क्या है — जावेद अख्तर || Nazm Ye Waqt Kya Hai Javed Akhtar — Poetry by Javed Akhtar

नज़्म - ये वक़्त क्या है — जावेद अख्तर ||

Nazm - Ye Waqt Kya Hai Javed Akhtar — Hindi Poetry

Poetry by Javed Akhtar on Jashn-e-Rekhta

'

Jashn-e-Rekhta Original -    • Ye Waqt Kya Hai | Nazm by Javed Akhtar | J...  

_____________________________________________________

// ये वक़्त क्या है //

ये वक़्त क्या है
ये क्या है आख़िर कि जो मुसलसल गुज़र रहा है
ये जब न गुज़रा था
तब कहाँ था
कहीं तो होगा
गुज़र गया है
तो अब कहाँ है
कहीं तो होगा
कहाँ से आया किधर गया है
ये कब से कब तक का सिलसिला है
ये वक़्त क्या है

ये वाक़िए
हादसे
तसादुम
हर एक ग़म
और हर इक मसर्रत
हर इक अज़िय्यत
हर एक लज़्ज़त
हर इक तबस्सुम
हर एक आँसू
हर एक नग़्मा
हर एक ख़ुशबू
वो ज़ख़्म का दर्द हो
कि वो लम्स का हो जादू
ख़ुद अपनी आवाज़ हो कि माहौल की सदाएँ
ये ज़ेहन में बनती और बिगड़ती हुई फ़ज़ाएँ
वो फ़िक्र में आए ज़लज़ले हों कि दिल की हलचल
तमाम एहसास
सारे जज़्बे
ये जैसे पत्ते हैं
बहते पानी की सतह पर
जैसे तैरते हैं
अभी यहाँ हैं
अभी वहाँ हैं
और अब हैं ओझल
दिखाई देता नहीं है लेकिन
ये कुछ तो है
जो कि बह रहा है
ये कैसा दरिया है
किन पहाड़ों से आ रहा है
ये किस समुंदर को जा रहा है
ये वक़्त क्या है

कभी कभी मैं ये सोचता हूँ
कि चलती गाड़ी से पेड़ देखो
तो ऐसा लगता है
दूसरी सम्त जा रहे हैं
मगर हक़ीक़त में
पेड़ अपनी जगह खड़े हैं
तो क्या ये मुमकिन है
सारी सदियाँ
क़तार-अंदर-क़तार अपनी जगह खड़ी हों
ये वक़्त साकित हो
और हम ही गुज़र रहे हों
इस एक लम्हे में
सारे लम्हे
तमाम सदियाँ छुपी हुई हों
न कोई आइंदा
न गुज़िश्ता
जो हो चुका है
जो हो रहा है
जो होने वाला है
हो रहा है
मैं सोचता हूँ
कि क्या ये मुमकिन है
सच ये हो
कि सफ़र में हम हैं
गुज़रते हम हैं
जिसे समझते हैं हम
गुज़रता है
वो थमा है
गुज़रता है या थमा हुआ है
इकाई है या बटा हुआ है
है मुंजमिद
या पिघल रहा है
किसे ख़बर है
किसे पता है
ये वक़्त क्या है

— जावेद अख्तर //

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#Poetry - #JavedAkhtar - #UrduPoetry
#Nazm - #HindiPoetry - #YeWaqtKyaHai

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