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Скачать или смотреть TATA Trust Rift: रतन टाटा के जाते ही टाटा ग्रुप में कलह, क्या टूटेगा 80 साल पुराना रिश्ता

  • INDIA ADDA
  • 2025-10-08
  • 5
TATA Trust Rift: रतन टाटा के जाते ही टाटा ग्रुप में कलह, क्या टूटेगा 80 साल पुराना रिश्ता
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भारत का सबसे भरोसेमंद औद्योगिक समूह — टाटा ग्रुप — अपने इतिहास के सबसे कठिन संक्रमण दौर से गुजर रहा है। रतन टाटा के निधन के एक साल के भीतर ही टाटा ट्रस्ट के भीतर ऐसा मतभेद उभर आया है कि मामला अब सरकारी गलियारों तक जा पहुंचा है। विवाद इतना बढ़ गया कि गृहमंत्री अमित शाह और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को मध्यस्थता के लिए दखल देना पड़ा। यह न सिर्फ समूह की आंतरिक अस्थिरता को दिखाता है, बल्कि उस संस्थागत भरोसे पर भी सवाल उठाता है जो दशकों से टाटा नाम से जुड़ा रहा है। रतन टाटा के नेतृत्व में टाटा ग्रुप हमेशा एक स्थिर और नैतिक कॉर्पोरेट मॉडल के रूप में देखा गया। लेकिन उनके बाद नेतृत्व का यह संक्रमण एक नई जटिलता लेकर आया है।टाटा ट्रस्ट, जो टाटा संस में 66% हिस्सेदारी रखता है, आज अपने ही भीतर दिशा और नियंत्रण के संघर्ष में उलझा हुआ है।रतन टाटा की मौजूदगी में मतभेद होते हुए भी एक “नैतिक मध्यस्थ” था जो संतुलन बनाए रखता था — अब वह धुरी अनुपस्थित है।

असल में ट्रस्ट के भीतर दो धड़े बन गए हैं. एक धड़ा नोएल टाटा के समर्थन में है, जिन्हें रतन टाटा के निधन के बाद ट्रस्ट का चेयरमैन बनाया गया. दूसरा धड़ा चार ट्रस्टीज का है, जिनकी अगुवाई मेहली मिस्त्री कर रहे हैं. मेहली का ताल्लुक शापूरजी पल्लोनजी परिवार से है, जो टाटा सन्स में करीब 18.37 फीसदी हिस्सा रखता है. मिस्त्री मानते हैं कि उन्हें अहम मामलों में शामिल नहीं किया गया और उन्हें टाटा सन्स बोर्ड के निर्णयों पर पर्याप्त जानकारी नहीं दी जा रही.विवाद का असर दान-नियंत्रित फाउंडेशनों और टाटा समूह की होल्डिंग स्ट्रक्चर तक पहुंच गया है — जिसका देश की अर्थव्यवस्था और CSR ढांचे पर भी प्रभाव पड़ता है। इसी कारण, अमित शाह और निर्मला सीतारमण को इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा.

इसके पहले शापूर पलोनजी ग्रुप के साथ टाटा ग्रुप का विवाद सायरस मिस्त्री विवाद में भी सामने आया था. जब 2016 में उनकी अचानक बर्खास्तगी ने यह दिखाया कि टाटा समूह के भीतर असहमति को कितनी जगह दी जाती है।
उस विवाद ने न सिर्फ टाटा ग्रुप और मिस्त्री परिवार के रिश्तों को तोड़ा, बल्कि “कॉर्पोरेट गवर्नेंस” पर बहस भी छेड़ दी। आज जब ट्रस्ट के अंदर फिर से सत्ता-संघर्ष की खबरें हैं, तो मिस्त्री प्रकरण की छाया फिर लौट आई है —शापूरजी पलोनजी (एसपी) ग्रुप और टाटा संस का रिश्ता एक सदी पुराना है।लेकिन 2016 के बाद से यह साझेदारी लगातार तनावग्रस्त रही है।सुप्रीम कोर्ट के फैसले से भले कानूनी विवाद खत्म हुआ हो, लेकिन आर्थिक और भावनात्मक दूरी बरकरार है।अब जब एसपी ग्रुप अपने टाटा संस के शेयरों से बाहर निकलना चाहता है, तो उसका मूल्यांकन और भुगतान को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है।इस वित्तीय खींचतान का असर सिर्फ बैलेंस शीट पर नहीं, बल्कि समूह की छवि और भरोसे पर भी पड़ा है।

विवाद का सड़क पर आने के बाद अब कॉरपोरेट जगत में रतन टाटा की कमी महसूस की जा रही है.तन टाटा का युग मूल्य-आधारित पूंजीवाद का था — जहाँ लाभ के साथ जिम्मेदारी जुड़ी थी।अब समूह एन. चंद्रशेखरन के नेतृत्व में तकनीक, अधिग्रहण और डिजिटल विस्तार की राह पर है।एयर इंडिया, टाटा डिजिटल, और टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे कदम नई ऊर्जा दिखाते हैं, पर इसी तेजी में समूह की “ट्रस्ट-आधारित पहचान” कहीं धुंधली होती जा रही है। संरचना बदल रही है, लेकिन आत्मा को बचाए रखना ही सबसे कठिन चुनौती बन गया है।

रतन टाटा की मृत्यु के बाद टाटा ग्रुप अब “प्रबंधन” नहीं, “विश्वास” के संकट से गुजर रहा है।और यही सबसे बड़ा खतरा है — क्योंकि टाटा की असली पूंजी उसके स्टील, कार या सॉफ्टवेयर नहीं, बल्कि उसका भरोसा है। अगर इस विरासत को बचाना है, तो समूह को अपने मूल मंत्र पर लौटना होगा — ईमानदारी, पारदर्शिता और विनम्रता। वरना आने वाले समय में “टाटा” नाम सिर्फ एक ब्रांड रह जाएगा, एक आदर्श नहीं।
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