अपनी बच्चियों को रेप से बचाने में नाकाम क्यों है भारत? [India's rape crisis] | DW Documentary हिन्दी

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एक तरफ़ कोलकाता जैसे शहरों में लोग यौन अपराधों के ख़िलाफ़ सड़कों पर उमड़ रहे हैं, वहीं ग्रामीण भारत में होने वाले बलात्कार दबा-छिपा दिए जाते हैं. बलात्कार पीड़ि और उनके परिवारों को न्याय नहीं, बल्कि धमकियां मिलती हैं. क़ानून लागू करने में व्यवस्थागत नाकामी और न्यायिक देरी की वजह से बच्चे और बच्चियां इस क्रूर हिंसा का शिकार बनते हैं. संस्थागत संरक्षण, जाति व्यवस्था और अपनी पहुंच के कारण अपराधी बच जाते हैं. सुरक्षा के लिए बनाया गया क़ानून पीड़ितों को बहुत कम राहत और हमदर्दी देता है. मासूम, चंद्रलेखा और सरिता उन हज़ारों लड़कियों में से हैं, जो रेप के बाद ख़ुद को ही दोषी ठहरा दिए जाने का सदमा लिए जी रही हैं. फिर भी हालात धीरे-धीरे बदल रहे हैं. स्कूल में जागरूकता अभियानों से लेकर नुक्कड़ नाटक तक, ज़मीनी स्तर पर हो रही कोशिशों से चुप्पी टूट रही है. DW संवाददाता आकांक्षा सक्सेना यही समस्याएं उजागर कर रही हैं और न्यायिक लड़ाई के लिए उठती उन आवाज़ों को भी सामने ला रही हैं, जो सुर्ख़ियों से ग़ायब हैं.

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