श्री गोरक्ष गायत्री मन्त्र | शून्य को प्राप्त होना बस यही मानव प्राणी का लक्ष्य है | सुन के लाभ लें

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मन्त्र: ॐ गों गोरक्षनाथाय विद्महे, शून्यपुत्राय धीमहि,तन्नो गोरक्ष निरञ्जन प्रचोदयात्

।।चौपाई।।
जय-जय-जय गोरक्ष गुरुज्ञानी, तोग-क्रिया के तुम हो स्वामी ।
बालरुप लघु जटा विराजै, भाल चन्द्रमा भस्म तन साजै ।।
शिवयोगी अवधूत निरञ्जन, सुर-नर-मुनि सब करते वन्दन ।
चारों युग के आपहि योगी, अजर अमर सुधा-रस भोगी ।।
योग-मार्ग का किया प्रचारा, जीव असंख्य अभय कर जारा ।
राजा कोटि निभाने आए, देकर योग सब शिष्य बनाए ।।
तुम शिव गोरख राज अविनाशी, गोरक्षक उत्तरापथ-वासी ।
विश्व-व्यापक योग तुम्हारा, 'नाथ-पन्थ' शिव-मार्ग उदारा ।।
शिव गोरक्ष के शरण जो आएँ, होय अभय अमर-पद पाएँ ।
जो गोरख का ध्यान लगाएँ, जरा-मरण नहिं उसे सताएँ ।।

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