भारतीय कृषि की विशेषताएं एवं महत्व indian agriculture features and impotance

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consumer surplus economics
भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्व:

फसल या सस्य किसी समय-चक्र के अनुसार वनस्पतियों या वृक्षों पर मानवों व पालतू पशुओं के उपभोग के लिए उगाकर काटी या तोड़ी जाने वाली पैदावार को कहते हैं। जब से कृषि का आविष्कार हुआ है बहुत से मानवों के जीवनक्रम में फ़सलों का बड़ा महत्व रहा है।

कृषि भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती है। विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों एवं प्रयासों से कृषि को राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में गरिमापूर्ण दर्जा मिला है। कृषि क्षेत्रों में लगभग 64% श्रमिकों को रोज़गार मिला हुआ है। 1950-51 में कुल घरेलू उत्पाद में कृषि का हिस्सा 59.2% था जो घटकर 1982-83 में 36.4% और 1990-91 में 34.9% तथा 2001-2002 में 25% रह गया। यह 2006-07 की अवधि के दौरान औसत आधार पर घटकर 18.5% रह गया।

उत्तर भारत, पाकिस्तान व नेपाल में रबी की फ़सल और ख़रीफ़ की फ़सल दो बड़ी घटनाएँ हैं जो बड़ी हद तक इन क्षेत्रों के ग्रामीण जीवन को निर्धारित करती हैं। इसी तरह अन्य जगहों के स्थानीय मौसम, धरती, वनस्पति व जल पर आधारित फ़सलें वहाँ के जीवन-क्रमों पर गहरा प्रभाव रखती हैं।

भारतीय कृषि की विशेषताएँ:

भारतीय कृषि की प्रमुख विशेषतायें इस प्रकार हैं:-

भारतीय कृषि का अधिकांश भाग सिचाई के लिए मानसून पर निर्भर करता है।
भारतीय कृषि की महत्त्वपूर्ण विशेषता जोत इकाइयों की अधिकता एवं उनके आकार का कम होना है।
भारतीय कृषि में जोत के अन्तर्गत कुल क्षेत्रफल खण्डों में विभक्त है तथा सभी खण्ड दूरी पर स्थित हैं।
भूमि पर प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से जनसंख्या का अधिक भार है।
कृषि उत्पादन मुख्यतया प्रकृति पर निर्भर रहता है।
भारतीय कृषक ग़रीबी के कारण खेती में पूँजी निवेश कम करता है।
खाद्यान्न उत्पादन को प्राथमिकता दी जाती है।
कृषि जीविकोपार्जन की साधन मानी जाती हें
भारतीय कृषि में अधिकांश कृषि कार्य पशुओं पर निर्भर करता है।

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