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विक्रम-बेताल की कहानियां बच्चे बच्चे तक ने सुने हैं । इन्ही बेताल में एक सबसे उग्र शक्ति अगिया बेताल की होती है । यह पुरुषात्मक शक्ति है जो खुद कहीं हस्तक्षेप नहीं करती । इसके सिद्ध होने पर यह बहुत उच्च स्तर के साधक को भी पराजित कर सकता है और चूंकि यह उच्च शक्ति होती है अतः मंदिर आदि तक में साधक के साथ आती-जाती है । यह प्रकृति की स्थायी शक्तियों में से एक है और इसे नष्ट नहीं किया जा सकता । या तो यह साधक के वशीभूत हो उसके मनोरथ पूर्ण करता है या निर्लिप्त रहता है प्रकृति में । इससे उच्च साधक या शक्ति के इसके विरुद्ध क्रिया करने पर यह हट जाता है या अदृश्य हो जाता है किन्तु यह नष्ट नहीं होता ,स्थान बदल देता है और अपने मूल रूप में आ जाता है ।
पूर्व के अगिया बेताल साधना की तरह नीचे दिए जा रहे मंत्र की साधना अकेले नहीं की जा सकती ,क्योंकि यह एक उग्र मंत्र है । यह अत्यंत विस्फोटक मंत्र है अतः इसकी साधना किसी तांत्रिक की देखरेख में ही की जानी चाहिए । इस मंत्र की साधना में एक तिकोना हवन कुण्ड बनाना होता है और मंत्र जप के साथ हवन करना होता है ।
मंत्र — “ॐ अगिया बेताल वीरवर बेताल ,महाबेताल इहागच्छ इहतिष्ठ अग्निमुख अग्निभक्षी अग्निवासी महाविकराल फट स्वाहा । । ”
इस मंत्र की साधना पूर्ण एकांत स्थान ,पुराना शिव मंदिर ,खुले मैदान ,श्मशान आदि में की जाती है । साधना काल रात्री का होता है और साधना योग्य तांत्रिक की देख रेख में की जाती है । बिन गुरु अनुमति और गुरु द्वारा प्रदत्त सुरक्षा कवच के साधना नहीं की जा सकती । गुरु भी इतना सक्षम होना चाहिए की उसे कम से कम बेताल सिद्ध होना चाहिए । बेहतर हो वह महाविद्या सिद्ध हो ,इसलिए वास्तविक साधक गुरु ही बनाना चाहिए
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