दीनानाथ मोहिं काहे बिसारे (दैन्य माधुरी कीर्तन) Deenanath! Mohi Kahe Bisare || Braj Parikari Didi Ji

Описание к видео दीनानाथ मोहिं काहे बिसारे (दैन्य माधुरी कीर्तन) Deenanath! Mohi Kahe Bisare || Braj Parikari Didi Ji

A composition by Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj depicting the humble sentiments of a devotee yearning for Shri Krishna's grace.

प्रेम रस मदिरा
दैन्य-माधुरी (पद क्रमांक – 50 )
रचयिता एवं संगीत – जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज

स्वर – सुश्री ब्रज परिकरी देवी जी

दीनानाथ! मोहिं काहे बिसारे।
हमरिहिं बार मौन कस धारे।

नाथ! अगति के गति अनाथ हम,
कहहु कौन गति मोरि विचारे।

गणिका गीध अजामिल आदिक,
सुनत अमित पतितन तुम प्यारे।

इन सम अगनित पतित रोम प्रति,
वारत पतित विरद रखवारे।

दंभ कोटि शत कालनेमि सम,
कोटिन रावन सम मद धारे।

लाजहुँ जासु लजाति अधम अस,
हैं न हुये न तु हैहैं भारे।

कौने मुख 'कृपालु' प्रभु सन कछु,
कहिय नाथ अब हाथ तिहारे।।

भावार्थ-
हे दीनानाथ! तुमने मुझे क्यों भुला दिया? हमारी ही बार कैसे मौन धारण कर लिया? हे नाथ! हम अनाथ हैं और तुम अगति-के गति हो। बताओ तो सही, तुमने हमारे लिए क्या सोचा है? गणिका (वेश्या), गीध, अजामिल इत्यादि
अनंत पापियों से तुमने प्यार किया है, ऐसा सुनता हूँ। किन्तु हे पतितों की रक्षा का भार लेने वाले! पतित-पावन विरद को धारण करने वाले! इन सरीखे तो अनंत पापी मेरे प्रत्येक रोम पर न्यौछावर किये जा सकते हैं। फिर मेरा क्या होगा? सैकड़ों करोड़ कालनेमि के समान मेरे अंदर पाखंड भरा हुआ है, एवं करोड़ों रावण के समान अभिमानी भी हूँ। कहाँ तक कहूँ, जिसके पापों को देखकर लज्जा भी लज्जित है। मुझ सरीखा पापी न तो इस समय है, न पहले हुआ था, न तो आगे ही हो सकता है। कृपालु' कहते हैं कि मैं इतना बड़ा अपराधी हूँ कि कौन सा मुँह लेकर आपके सामने कुछ कहने का अधिकार रखू। हे नाथ! अब आप ही के हाथ में सब कुछ है, चाहे अपनाइए, चाहे ठुकराइए।

श्रीमद् सदगुरु सरकार की जय 🙏🌷🌺🌹

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