@savita jain poetry, उमड़ घुमड़ कर बदरा छाए

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‪@savitaJainPoetry‬
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उमड़़ घुमड़ कर बदरा छाए
मनभावन सावन लहराये
सावन में बरखा रानी कैसे
सब का मन सखी री हरषाए
उमड़

अंबुआ की डाल झूला डलवाएं
सखियां सारी आनंदित हो गाएं
सावन का पावन महीना सखी
चूड़ी मेहंदी संग हम मन बहलाएं
उमड़

रिमझिम की पड़े मदमस्त फुहार
प्राकृतिक सौंदर्य की छाई बहार
सावन भी बन जाये री अंगार
मन विरहन सखी पी को बुलाएं
उमड़ घुमड़ कर बदरा छाए

काली घटा जब नभ पर छाएं
बैरन बिजुरिया मोहे डराएं
बदरा भी जब गरजत बरसत
मन मेरो सखी डर डर जाए
उमड़

साजन बिन सूना सावन तरसाए
मेरे मन की डोर तेरी ओर ही आए
करती पुकार करो मत अब बार
बिन तेरे मन मेरा घबराए
उमड़

सविता जैन मनस्वी स्वरचित मौलिक

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