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Скачать или смотреть साक्षी भाव: दुःख से निब्बान तक की यात्रा

  • Understanding Buddha's Teachings
  • 2025-08-23
  • 219
साक्षी भाव: दुःख से निब्बान तक की यात्रा
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Скачать साक्षी भाव: दुःख से निब्बान तक की यात्रा бесплатно в качестве 4к (2к / 1080p)

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Описание к видео साक्षी भाव: दुःख से निब्बान तक की यात्रा

१. साक्षी भाव (Sākṣī Bhāva)
साक्षी भाव का अर्थ है—अपने अनुभवों, विचारों, संवेदनाओं और भावनाओं को देखना मात्र, बिना उनसे जुड़ना या उनमें बह जाना।
यह द्रष्टा या साक्षी का दृष्टिकोण है, जिसमें साधक केवल देखता है कि

विचार उठते हैं और मिट जाते हैं,

भावनाएँ आती हैं और चली जाती हैं,

सुख-दुःख के अनुभव उत्पन्न होकर बदल जाते हैं।

साक्षी भाव का अभ्यास हमें यह समझाता है कि “मैं” कहे जाने वाली कोई स्थायी सत्ता नहीं है, बल्कि यह केवल निरंतर बदलते अनुभवों की एक धारा है।

२. बुद्धधम्म और साक्षी भाव
बुद्ध ने प्रत्यक्ष रूप से “साक्षी भाव” शब्द का प्रयोग नहीं किया, परन्तु सति (स्मृति, mindfulness) और संपजञ्ञ (सचेत समझ) की साधना यही कार्य करती है।

कायानुपस्सना: शरीर को देखना।

वेदनानुपस्सना: भावनाओं को देखना।

चित्तानुपस्सना: मन की अवस्था को देखना।

धम्मानुपस्सना: नियमों/धम्मों को देखना।

इस प्रकार, साधक अपने सम्पूर्ण अनुभव को केवल देखता है, पकड़ता नहीं है। यही है साक्षी भाव।

३. निब्बान (Nibbāna)
निब्बान का अर्थ है—लोभ (लालसा), द्वेष (घृणा) और मोह (अज्ञान) की पूर्ण शांति।
यह कोई बाहरी स्थान नहीं, बल्कि आन्तरिक अवस्था है जहाँ

आग जैसी जलती तृष्णा शांत हो जाती है,

चिपकाव (उपादान) समाप्त हो जाता है,

“मैं” की भ्रांति लुप्त हो जाती है।

बुद्ध ने इसे असंखत धम्म कहा—जो जन्म-मरण के चक्र से परे है।

४. साक्षी भाव और निब्बान का सम्बन्ध
साक्षी भाव साधना का आरम्भिक साधन है, और निब्बान उसका परम फल है।

जब साधक साक्षी भाव से निरन्तर देखता है, तो उसे अनुभव होता है कि सब कुछ अनिच्च (अनित्य), दुक्ख (असंतोषजनक) और अनत्ता (स्वत्वहीन) है।

इस दृष्टि से धीरे-धीरे तृष्णा (लालसा) कमजोर होती है।

जब तृष्णा का पूर्ण शमन हो जाता है, तब वही अवस्था निब्बान कहलाती है।

५. सरल उदाहरण
मान लीजिए मन में क्रोध उत्पन्न होता है।

यदि साधक क्रोध में बह जाता है, तो दुःख बढ़ता है।

यदि साधक उसे दबाता है, तो वह भीतर जम जाता है।

पर यदि साधक केवल साक्षी भाव से देखता है—“यह क्रोध है, यह उठ रहा है, यह बदल रहा है, यह मिट रहा है”—तो उससे अनासक्ति उत्पन्न होती है।
यही अनासक्ति, धीरे-धीरे निब्बान की ओर ले जाती है।

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