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Скачать или смотреть यशोदा माता की कथा - Story of Yashoda Mata : Mahabharata - महाभारत : Dharmik Gyan

  • Dharmik Gyan
  • 2024-06-02
  • 48
यशोदा माता की कथा - Story of Yashoda Mata : Mahabharata - महाभारत : Dharmik Gyan
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Описание к видео यशोदा माता की कथा - Story of Yashoda Mata : Mahabharata - महाभारत : Dharmik Gyan

माता यशोदा के सौभाग्य की तुलना किसी से भी नहीं हो सकती क्योंकि भगवान् श्रीकृष्ण ने स्वयं उनका पुत्र बनकर उनके पवित्र स्तनोंका पान किया तथा उन्हें वात्सल्यसुख का अनुपम सौभाग्य प्रदान किया| नन्दबाबा और यशोदा मैया को कोई संतान न थी| वृद्धावस्था में भगवान् ने स्वयं पुत्र बनकर नन्दरानी को पुत्रसुख दिया| भगवान् भक्त की भावना के अनुसार उसे सिद्धि प्रदान करते हैं| यशोदा जी ने पूर्वजन्म में धरारूप में तपस्या करके भगवान् को पुत्ररूप में प्राप्त करने का वरदान प्राप्त किया था, जिसके परिणामस्वरूप श्री कृष्ण देवकी और वसुदेव के माध्यम से जन्म लेने के बाद सोती हुई यशोदाजी की गोदमें पहुँच गये| नन्दभवन में पुत्रोत्सव से सम्पूर्ण व्रजवासी आनन्द से थिरक उठे| एक बार भी जो नन्दरानी के नीलमणि को देख लेता उसका मन उसी चितचोर में अटका रह जाता था| नन्दरानी आँखों की पुतली की भाँति अपने श्यामसुन्दर की सुरक्षा में लगी रहतीं|

नन्दरानी यशोदाका यह बालक अद्भुत था| एक दिन कंसप्रेरित पूतनाने स्तनपान कराकर इसे मारना चाहा तो यह दूध के साथ उसके प्राणों को भी पी गया| यशोदा मैया के वात्सल्य के साथ श्रीकृष्ण भी धीरे-धीरे बढ़ने लगे| माता यशोदा ने अपने नीलमणि का श्रृंगार करके उन्हें शकट से नीचे पालने में पौढ़ा दिया तो शकटासुरका अन्त हुआ| व्योमासुर ने जाल रचा तो वह भी यमलोक सिधारा| एक दिन यशोदाजी श्रीकृष्ण को दूध पिला रही थीं, तब तक आग पर रखे हुए पद्मगन्धा गाय के दूध में उफान आया| यशोदाजी अपने नीलमणि को बैठाकर दूध को देखने गयीं| श्रीकृष्ण को चञ्चलता सूझी, उन्होंने दहीकी मटकी ही फोड़ डाली| माखन बिखर गया, माता बड़ी कठिनाई से अपने श्याम को मना पायी|

श्रीकृष्ण ने मिट्टी खायी, यह सुनकर यशोदा जी उनका मुख खुलवाकर देखने लगीं| सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड ही उन्हें अपने लालच के मुख में दिखायी दिया| यशोदा जी विस्मृत हो गयीं| श्रीकृष्ण ने वैष्णवीमाया का विस्तार किया और वह माता के विश्वदर्शन की स्मृति को बहा ले गयी| यशोदाजी के हृदय में वात्सल्य का संचार हुआ और वे पुन: अपने सलोने श्याम को गोद में लेकर दूध पिलाने लगीं| गोपियों के यहाँ माखन-चोरी के उलाहनों से तो वे तंग ही आ चुकी थीं| एक दिन श्रीकृष्ण ने उनका भी दही-भाँड फोड़ दिया| जननीने श्रीकृष्ण को डराने के लिये उन्हें ऊखल में बाँधा और यमलार्जुन का उद्धार हुआ| गोचारण, वत्सासुर और वकासुर का वध, कालिय-दमन, धेनुक-उद्धार, गोवर्धन-धारण आदि श्रीकृष्ण की अनेक लीलाओं को सुनकर यशोदा जी श्रीकृष्ण की दिव्य स्मृति में डूबी रहती थीं| अक्रूर के आगमन के साथ यशोदाजी के हृदय पर क्रूर वज्रका प्रहार हुआ और श्रीकृष्ण गोकुल से मथुरा चले गये| श्रीकृष्ण-विरह में जननी यशोदाजी की जो दशा हुई उसका यथार्थ वर्णन करनेका साहस कोई नहीं कर सकता| जहाँ से श्रीकृष्ण रथपर बैठकर गये थे यशोदा जी वहाँ प्रतिदिन जातीं| उन्हें लगता कि अक्रूर अभी-अभी मेरे श्रीकृष्ण को लेकर जा रहे हैं| वे चीत्कार कर उठतीं - 'अरे! कोई मेरे श्रीकृष्ण को रोक लो; अक्रूर उसे लिये जा रहे हैं|' पशु-पक्षी और मनुष्य जो भी उनकी दृष्टि में आता उसी से वे देवकी को कृष्ण की सही देख-रेखके लिये संदेश भेजती थीं| माता को सान्त्वना देने के लिये श्रीकृष्ण ने उद्धव को भेजा, लेकिन वे भी जननी के आँसू नहीं पोंछ पाये| कुरुक्षेत्र में जब श्रीकृष्ण यशोदाजी से मिले, तब राम-श्याम को हृदय से लगाकर उनमें नव-जीवनका संचार हुआ| भगवान् श्रीकृष्णने अपनी लीला-संवरणके पूर्व ही जननी यशोदा को गोलोक भेज दिया| वात्सल्यप्रेम की अनुपम उपासि का श्रीयशोदाजी धन्य हैं|


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