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  • Taj Agro Products
  • 2020-09-05
  • 197864
Vijayanagara Empire (विजयनगर साम्राज्य) - Deccan Plateau region in South India *Hindi Exclusive
विजयनगरबेनगोण्जा तथा चंदगिरि। हम्पीविजयनगर साम्राज्य का इतिहासविजय नगर साम्राज्यविजयनगर साम्राज्यविजयनगर साम्राज्य मराठीविजयनगर साम्राज्य प्रश्नोत्तरीविजयनगर साम्राज्य के मंदिरविजयनगर साम्राज्य के पतन के कारणविजयनगर साम्राज्य की स्थापनाविजयनगर साम्राज्य की स्थापत्यविजयनगर साम्राज्य की सामाजिक स्थितिVijayanagara Empireइतिहास_ विजयनगर साम्राज्यविजयनगर साम्राज्य के राजवंशहिन्दू साम्राज्य 'विजयनगर'कृष्णदेवRulers of Vijayanagar EmpireइतिहासHistoryhd
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Vijayanagara Empire (विजयनगर साम्राज्य) - Deccan Plateau region in South India *Hindi Exclusive

पुर्तगाली इस साम्राज्य को बिसनागा राज्य के नाम से जानते थे। लगभग सवा दो सौ वर्ष के उत्कर्ष के बाद सन 1565 में इस राज्य की भारी पराजय हुई और राजधानी विजयनगर को जला दिया गया।

जब मुहम्‍मद तुगलक दक्षिण में अपनी शक्ति खो रहा था तब दो हिन्‍दु राजकुमार हरिहर और बूक्‍का ने कृष्‍णा और तुंगभद्रा नदियों के बीच 1336 में एक स्‍वतंत्र राज्‍य की स्‍थापना की। जल्‍दी ही उन्‍होंने उत्तर दिशा में कृष्‍णा नदी तथा दक्षिण में कावेरी नदी के बीच इस पूरे क्षेत्र पर अपना राज्‍य स्‍थापित कर लिया। विजयनगर साम्राज्‍य की बढ़ती ताकत से इन कई शक्तियों के बीच टकराव हुआ और उन्‍होंने बहमनी साम्राज्‍य के साथ बार बार लड़ाइयां लड़ी।

कृष्‍ण देव राय ने पश्चिमी देशों के साथ व्‍यापार को प्रोत्‍साहन दिया। उनके पुर्तगालियों के साथ अच्‍छे संबंध थे, जिनका व्‍यापार उन दिनों भारत के पश्चिमी तट पर व्‍यापारिक केन्‍द्रों के रूप में स्‍थापित हो चुका था। वे न केवल एक महान योद्धा थे बल्कि वे कला के पारखी और अधिगम्‍यता के महान संरक्षक रहे। उनके कार्यकाल में तेलगु साहित्‍य काफी फला फुला। उनके तथा उनके उत्तरवर्तियों द्वारा चित्रकला, शिल्‍पकला, नृत्‍य और संगीत को काफी बढ़ावा दिया गया। उन्‍होंने अपने व्‍यक्तिगत आकर्षण, दयालुता और आदर्श प्रशासन द्वारा लोगों को प्रश्रय दिया।

विजयनगर साम्राज्‍य का पतन 1529 में कृष्‍ण देव राय की मृत्‍यु के साथ शुरू हुआ। यह साम्राज्‍य 1565 में पूरी तरह समाप्‍त हो गया जब आदिलशाही, निजामशाही, कुतुब शाही और बरीद शाही के संयुक्‍त प्रयासों द्वारा तालीकोटा में रामराय को पराजित किया गया। इसके बाद यह साम्राज्‍य छोटे छोटे राज्‍यों में टूट गया।

बहमनी राज्‍य
बहमनी का मुस्लिम राज्‍य दक्षिण के महान व्‍यक्तियों द्वारा स्‍थापित किया गया, जिन्‍होंने सुल्‍तान मुहम्‍मद तुगलक की दमनकारी नीतियों के विरुद्ध बकावत की। वर्ष 1347 में हसन अब्‍दुल मुजफ्फर अल उद्दीन बहमन शाह के नाम से राजा बना और उसने बहमनी राजवंश की स्‍थापना की। यह राजवंश लगभग 175 वर्ष तक चला और इसमें 18 शासक हुए। अपनी भव्‍यता की ऊंचाई पर बहमनी राज्‍य उत्तर में कृष्‍णा सें लेकर नर्मदा तक विस्‍तारित हुआ और बंगाल की खाड़ी के तट से लेकर पूर्व - पश्चिम दिशा में अरब सागर तक फैला। बहमनी के शासक कभी कभार पड़ोसी हिन्‍दू राज्‍य विजयनगर से युद्ध करते थे।

बहमनी राज्‍य के सर्वाधिक विशिष्ट व्‍यक्तित्‍व महमूद गवन थे, जो दो दशक से अधिक समय के लिए अमीर उल अलमारा के प्रधान राज्‍यमंत्री रहे। उन्‍होंने कई लड़ाइयां लड़ी, अनेक राजाओं को पराजित किया तथा कई क्षेत्रों को बहमनी राज्‍य में जोड़ा। राज्‍य के अंदर उन्‍होंने प्रशासन में सुधार किया, वित्तीय व्‍यवस्‍था को संगठित किया, जनशिक्षा को प्रोत्‍साहन दिया, राजस्‍व प्रणाली में सुधार किया, सेना को अनुशासित किया एवं भ्रष्‍टाचार को समाप्‍त कर दिया। चरित और ईमानदारी के धनी उन्‍होंने अपनी उच्‍च प्रतिष्‍ठा को विशिष्‍ट व्‍यक्तियों के दक्षिणी समूह से ऊंचा बनाए रखा, विशेष रूप से निज़ाम उल मुल, और उनकी प्रणा‍ली से उनका निष्‍पादन हुआ। इसके साथ बहमनी साम्राज्‍य का पतन आरंभ हो गया जो उसके अंतिम राजा कली मुल्‍लाह की मृत्‍यु से 1527 में समाप्‍त हो गया। इसके साथ बहमनी साम्राज्‍य पांच क्षेत्रीय स्‍वतंत्र भागों में टूट गया - अहमद नगर, बीजापुर, बरार, बिदार और गोलकोंडा।

1336ई. में विजयनगर साम्राज्य की स्थापना विशेषत: दक्षिण भारत की तथा सामान्यत: भारत के इतिहास की एक महान घटना है। दक्षिण भारत में तुगलक सत्ता के विरुद्ध होने वाले राजनीतिक तथा सांस्कृतिक आंदोलन के परिणामस्वरूप इसकी स्थापना हुई। संगम के पांच पुत्रों में से हरिहर एवं बुक्का ने इस साम्राज्य की स्थापना 1336ई. में की, जो वारंगल में काकतीयों के सामंत थे और बाद में काम्पिली राज्य में मंत्री बने । जब एक मुसलमान (बहाउद्दीन गुर्शस्प) विद्रोही को शरण देने पर मुहम्मद बिन तुगलक ने काम्पिली को रौंद डाला, तो इन दोनों भाइयों (हरिहर, बुक्का) को भी बंदी बना लिया गया। इन्होंने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया। बाद में उन्हें दक्षिण तट पर स्थित शांत करने के लिए भेजा गया जहाँ उनके गुरु विद्यारण्य तथा वेदों के प्रसिद्ध भाष्यकार सायण से प्रेरणा मिली। 1336ई. में स्थापित इस साम्राज्य के प्रथम वंश का नाम पिता के नाम पर संगम वंश पङा। इस साम्राज्य के चार राजवंशों ने लगभग तीन सौ वर्षों तक शासन किया। विजयनगर साम्राज्य की राजधानियां क्रमश: अनेगोण्डी, विजयनगर, बेनगोण्जा तथा चंदगिरि। हम्पी (हस्तिनावती) विजयनगर की पुरानी राजधानी का प्रतिनिधित्व करता है। विजयनगर का वर्तमान नाम हम्पी (हस्तिनावती) है।

संगम वंश के शासक निम्नलिखित हैं-

हरिहर प्रथम ( 1336-1356ई.)- यह विजयनगर साम्राज्य का संस्थापक था। उसने अपनी राजधानी अनेगोण्डी को बनाई बाद में विजयनगर को अपनी राजधानी बनाया।
बुक्का प्रथम ( 1356-1377ई.)- हरिहर का उत्तराधिकारी उसका भाई बुक्का प्रथम हुआ। यह 1346ई. से ही संयुक्त शासक के रूप में शासन कर रहा था।
हरिहर द्वितीय ( 1377-1404ई.) – हरिहर द्वितीय ने महाधिराजाधिराज की उपाधि धारण की। उसने कनारा, मैसूर, त्रिचनापल्ली, कांची आदि प्रदेशों को जीता और श्रीलंका के राजा से राजस्व वसूल किया।
देवराय प्रथम ( 1406-1422ई.) – अपने राज्यारोहण के तुरंत बाद उसे फिरोजशाह बहमनी के आक्रमण का सामना करना पङा था। बहमनी शासक के हाथों उसकी हार हुई और उसे हूणों, मोतियों तथा हाथियों के रूप में दस लाख का हर्जाना देना पङा।
देवराय द्वितीय ( 1422-1446ई.)- यह इस वंश का महानतम शासक था।
मल्लिकार्जुन (1446-1465ई.)- उसके समय में उङीसा और बहमनी राज्यों ने विजयनगर पर आक्रमण किया।

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