#कुम्हार

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कुम्हार की उत्पत्ति के बारे में प्रजापत समाज के राव जी श्री नरसिंह जी निवासी कुंवारिया से जानकारी प्राप्त की जिसमें उन्होंने बताया की राजा दक्ष प्रजापति के 7 कन्या हुई जिनकी शादी के समय यज्ञ किया गया राजा के लड़का नहीं था अतः शिव जी ने अपने शरीर के मेल से पुतला बनाकर उसको सर जीवन किया जिसका नाम कुंभ रखा गया एवं राजा दक्ष के गोद रखा बाद में उनके 12 पुत्र हुए उन सभी 12 राजाओं से 12 प्रकार के कुम्हार जातियां हुई जो आज इस दुनिया मैं प्रचलित है इस प्रकार 12 जातियों की एक लाख 80हजार गोत्र हुई राजा पेमसी से मेवाड़ा कुम्हार बने जिसमें 14 हजार 81 गोत्र आज मेवाड़ा कुम्हार समाज मैं प्रचलित है कुम्हार को मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए जैसे चाक चुगलाटी चकुण्डा पीण्डा थापा पीण्डी कुन्द जेला इन चीजों की जरूरत पड़ी तो भगवान शिव भगवान ब्रह्मा भगवान विष्णु ने स्वयं ने यह चीजें कुम्हार को दी जैसे चाक के लिए विष्णु का चक्र चुगलाटी के लिए चन्टीया डोरे के लिए ब्रह्मा की जनेऊ इस प्रकार सभी चीजें भगवान ने स्वयं दी इसलिए यह सभी वस्तुएं पूजनीय है एवं आज भी समाज में कोई भी मांगलिक कार्य से पहले इनकी पूजा की जाती है जिससे कुमार ने अपनी कला दिखाते हुए प्रथम साथ दिए बनाएं जो सोने के हो गए जिसमें से 6 दीपक माताजी का देवताओं के लगाए एक दीपक घर पर लगाया इस प्रकार राव जी से प्राप्त जानकारी हम आपको दे रहे हैं इसके अलावा आपके पास कोई जानकारी हो तो कृपया शेयर करें बताएं धन्यवाद
जय श्री यादे मां की
जय प्रजापति समाज
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