HUM SE KA BHUL HUI JO YE SAZA HAMKA MILI_JANTA HAWALDAR_1979_ANWAR_RAJESH ROSHAN_MAJROOH SULTAPURI

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“हमसे का भूल हुई, जो ये सज़ा हमका मिली...”
फिल्म : जंता हवालदार ( १९७९ )
गायक : अनवर हुसैन
संगीतकार : राजेश रोशन
गीतकार : मजरूह सुलतानपुरी
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आज २९ दिसंबर २०२१. फिल्म इंडस्ट्री के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना की उन्नासिवी सालगिरह के अवसर पर...
मैंने “जंता हवालदार” फिल्म देखी नहीं थी. मेरे एक मित्र ने मुझे बताया कि उस फिल्म के लिए मजरूह सुलतानपुरीने एक गीत के लिए निहायत ही खूब अर्थपूर्ण बोल किखें थें जिसके बोल थे “हमसे का भूल हुई, जो ये सज़ा हमका मिली” मैंने यूट्यूब पर वह गीत सुना तो मुझे भी गीतरचना काफी दिलचस्प लगी. उसकी पृष्ठभूमि जानने हेतु मैंने पूरी फिल्म देखी. मुझे वह फिल्म बकवास, छिछला, अतिनाटकीय और बचकाना लगी. इसमें अचरज नहीं- फिल्म की कथा और निर्देशन कॉमेडियन महमूद का जो था. यह गीत फिल्म में तीन हिस्सों में आता है. गीत का फिल्मांकन भी मामूलीसा लगा. एक जगह मात्र महमूद ने निर्देशकीय दिमाग़ लढ़ाकर “जैसे सच बोलनेवालों की ज़रूरत ही नहीं” यह पंक्ति राजेश खन्ना महात्मा गांधीजी के बुत के पास आकर गाता दिखाया है. वाकई में जिस कदर हमने गांधीजी के सद्गुण और सदाचार को भुला बैठे है और उनको गालियाँ देनेपर उतारू हुए है(उदाहरणार्थ तथाकथित साधू कालीचरण के रायपुर के धर्मसंसद में वाहियाती बोल.) वह देखकर सचमुच सच बोलनेवाले गांधीजी की क्षति हमें आजकल खलती नहीं हैं. गीत के अर्थपूर्ण बोल पर जोर देनेके लिए मैंने इसे पॉवरपॉईंट में प्रस्तुत करना उचित समझा. साथ-साथ गीत के चलचित्रण वाले दो हिस्से भी पॉवरपॉईंट संस्करण को जोड़ दिए है.

प्रस्तुत गीत गया था अनवर हुसैन- आजतक का महान गायक रफीजी का सबसे करीबी प्रतिरूप- ने. “मेरे गरीब नवाज़(१९७३)” इस फिल्म के लिए अनवरने सबसे प्रथम “कसमें हम अपनी जान की, खाए चले गए, फिर भी वो एतबार, ना लाये चले गये” यह ग़ज़ल गायी और उस ग़ज़ल की मिक्सिंग जिस रेकॉर्डिंग स्टूडियो में हो रही थी वहीँ रफ़ीसाहब भी आ गये और हैरान होते अपने सेक्रेटरी से उन्होंने पूछा कि यह ग़ज़ल मैंने कब गायी थी ? सेक्रेटरी ने बताया कि यह ग़ज़ल आपने कभी गायी नहीं. यह इंडस्ट्री में आया एक नए गायक ने- अनवर ने गायी है. तब रफीजी बोल उठे, “मेरे आवाज़ जैसी ही यह आवाज़ लगती है !” यह अनवर को सबसे बेहतरीन सम्मानित प्रशंसोक्ति मिली थी. लेकिन, इस प्रशंसा से उसके सर में हवा चढ़ गयी. घमंडी बन गया. एक गीत के लिए जहाँ लताजी आठ-दस हज़ार रुपये लेती थी वहाँ यह नवोदित अनवर भी एक गीत के लिए निर्माता से पांच-छह हज़ार रुपये मांगने लगा. जबकि रफ़ी साहब कभी भी गीत का मुआवजा माँगते नहीं थे. निर्माता ने जितने भी पैसे दे दिए उसमें खुश रहते थे. अनवर के इस घमंडी रवैये के कारण वह जितने तेजी से फिल्मी गायन क्षेत्र में उभरकर सामने आया उतनी ही तेजी से उसका पतन भी हुआ. आज वह किसी शो-समारोह में मामूली मुआवजा लेकर गाता है. सुर बदले कैसे कैसे देखो किस्मत की शहनाई ! “जंता हवालदार” में उसके हिस्से में दो बढ़िया गीत आये जिसे उसने खूब अच्छी तरह से गाया था. दूसरा गीत है, “तेरी आँखों की चाहत में तो, मैं सब कुछ लुटा दूँगा” यह गीत फिर और किसी दिन प्रस्तुत करूँगा.

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