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Скачать или смотреть चातुर्मास आषाढ़ शुक्लपक्ष एकादशी से कार्तिक शुक्लपक्ष एकादशी तक चलता है, 6 जुलाई से 1 नवंबर तक रहेगा

  • Melody_n_Motivation
  • 2025-07-05
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चातुर्मास आषाढ़ शुक्लपक्ष एकादशी से कार्तिक शुक्लपक्ष एकादशी तक चलता है, 6 जुलाई से 1 नवंबर तक रहेगा
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Описание к видео चातुर्मास आषाढ़ शुक्लपक्ष एकादशी से कार्तिक शुक्लपक्ष एकादशी तक चलता है, 6 जुलाई से 1 नवंबर तक रहेगा

हिंदू धर्म में चातुर्मास का बहुत ज्यादा महत्व है, जो आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से शुरू होकर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तक चलता है। वैदिक पंचांग के अनुसार, इस साल चातुर्मास 6 जुलाई से शुरू होकर 1 नवंबर तक रहेगा। इन चार महीनों में भगवान विष्णु पाताल लोक में योग निद्रा में चले जाते हैं और इस दौरान सभी मांगलिक काम बंद हो जाते हैं।

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवशयनी एकादशी का पर्व मनाया जाता है. यह दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु की योग निद्रा के आरंभ का प्रतीक है. इस दिन से चातुर्मास की शुरुआत होती है, यानी वह चार महीने की अवधि जब भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी विश्राम (योग निद्रा) में रहते हैं; देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठनी एकादशी तक का समय चातुर्मास कहलाता है.

चातुर्मास का अर्थ है वर्षा ऋतु के 4 महीने, इसकी शुरुआत प्रसिद्ध जगन्नाथ रथयात्रा के बाद आषाढ़ शुक्ल पक्ष एकादशी से होती है। इसे आत्म संयम का काल माना जाता है और प्रबोधिनी एकादशी तक 4 महीने तक चलता है। मान्यता है कि इसी तिथि से भगवान विष्णु का शयनकाल शुरू हो जाता है। इसी कारण इस एकादशी को देवशयनी एकादशी, पद्मा एकादशी, आषाढ़ी एकादशी और हरिशयनी के नाम से जानते हैं। इस अवधि में सृष्टि संचालन का कार्य भगवान विष्णु के स्थान पर भगवान शिव (महाकाल) करते हैं.

मान्यता है कि शुभ कार्यों के लिए सभी देवताओं का जागृत होना और शुक्र, गुरु जैसे शुभ ग्रहों का उदित होना आवश्यक है, ताकि इन मांगलिक कार्यों का शुभ फल मिले। इसके अलावा वर्षा ऋतु में प्रकृति में जीवों के जन्म का समय भी होता है और इसमें कोई बाधा न पहुंचे, इसके लिए जैन समुदाय के संत भी भ्रमण छोड़कर एक जगह तक रूककर सिर्फ संत्संग करते हैं। इसी कारण चातुर्मास में विवाह मुंडन जैसे मांगलिक कार्य बंद हो जाते हैं।

उदयातिथि में देवशयनी एकादशी रविवार 6 जुलाई 2025 को मानी जाएगी। इस दिन व्रत रखा जाएगा।

देव शयन के चलते विवाह व मांगलिक कार्य नहीं होंगे।इस कारण विवाह समेत सभी संस्कार सहित नई दुकान खोलना या अन्य नए काम की शुरुआत जैसे मांगलिक आयोजनों पर अस्थायी रोक रहेगी।

प्रचलित हिंदू कथा के अनुसार, राजा बलि बड़े पराक्रमी और दानी थे। उनके दान की वजह से उनकी चर्जा चारों दिशाओं में थी। राजा बलि ने अपनी दानवीरता के चलते स्वर्गलोक पर भी अपना अधिकार कर लिया था। इस वजह से इंद्रदेव समेत सभी देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और राजा बलि के पास भिक्षा मांगने पहुंचे।

वामन रूप में भगवान विष्णु ने राजा बलि से तीन पग भूमि का दान मांगा। राजा बलि ने दान देने का वचन दिया। तब वामन जी ने विशाल रूप धारण किया और एक पग में पृथ्वी, दूसरे पग में स्वर्गलोक को नाप लिया।तीसरे पग के लिए कोई स्थान न होने पर राजा बलि ने अपना सिर भगवान के सामने झुका दिया। भगवान ने तीसरा पग राजा बलि के सिर पर रखा और उन्हें पाताल लोक में निवास करने का आदेश दिया।

राजा बलि की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान मांगने को कहा। इसपर राजा बलि ने भगवान से वरदान मांगा कि ''वे उनके साथ ही पाताल लोक में रहना चाहते हैं।'' श्री हरि ने राजा बलि का वचन स्वीकार कर लिया।

ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु राजा बलि को दिए गए वचन का पालन करने के लिए देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठनी एकादशी तक चार महीने के लिए पाताल लोक में निवास करते हैं। इस दौरान वे योग निद्रा में रहते हैं।

जब भगवान विष्णु योग निद्रा में होते हैं, तब सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं। कारण है कि चातुर्मास के दौरान भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। इन चार महीने में ज्यादा से ज्यादा धार्मिक काम करने चाहिए। इससे अक्षय फलों की प्राप्ति होती है। साथ ही दोगुना पुण्य फल मिलता है।

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