हरि: आश्रय और विश्राम 2(ब) Swami Sharnanandji ka pravachan 2B

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Swami Sri Sharananad Ji Maharaj's Discourse in Hindi.
स्वामी श्रीशरणानन्दजी महाराज जी का प्रवचन।
(1) तन का प्रभाव मोह के, धन का प्रभाव लोभ के, और परिस्थितियों का प्रभाव कामनाओं के रूप में मनुष्य में उत्पन्न हो जाता है।
(2) सत्संग के द्वारा इस प्रभाव का नाश कर देना मानव का सबसे बड़ा पुरुषार्थ है।
(3) साधक के लिए श्रम और विश्राम दोनों ही अनिवार्य हैं। श्रम का अर्थ है आवश्यक कार्य सर्व-हितकारी भाव से पूरा करना और विश्राम का अर्थ है अचाह, अकिंचन और अप्रयत्न होना।
(4) श्रम है संसार के लिए और विश्राम है मानव जीवन की पूर्णता के लिए।

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