एक भारतीय उपनाम। इसका प्रयोग मैथिल ब्राह्मण करते हैं। मैथिल ब्राह्मण पंचगौड़ ब्राह्मणों के अंतर्गत आते हैं और मूलतः मिथिला के निवासी होने के कारण मैथिल कहे जाते हैं। प्राचीन काल में मिथिला अलग राज्य था पर अब यह बिहार (उत्तरी) के अंतर्गत आता है। 'झा' शब्द संस्कृत भाषा के शब्द उपाध्याय का अपभ्रंश है। वैदिक काल में वैदिक शिक्षकों को उपाध्याय कहा जाता था। जिसे पालि में 'उवज्झा' कहा जाता था। यही 'उवज्झा' काल के उत्तरोत्तर प्रवाह में 'ओझा' से होते हुए घटकर केवल 'झा' रह गया।दोस्तो भारत के सम्पूर्ण ब्राह्मण 24 ऋषियों की सन्तान है, जिनमें अकेले 15 ऋषियों की सन्तान (ब्राह्मण) मिथिला में रहते थे, यही मैथिल ब्राह्मण कहलाए। मैथिल ब्राह्मण वंशों के 6 कुल भेद होते हैं, जो हैं श्रोत्रीय, जोग्य, पाँच, गृहस्थ, वेश व गरीब। समस्त मैथिल ब्राह्मणों की आस्पद होती है, - झा, ओझा, मिश्र, पाठक, ठक्कुर, चैधरी, उपाध्याय, सरस्वती, आचार्य, राय, कुवर, बक्शी (त्रिपाठी) व खाँ (शुक्ल) मैथिल ब्राह्मण दो ही वेद मानने वाले होते हैं। सामवेद व यजुर्वेद, उसमें भी सामवेदी मैथिल ब्राह्मण कौथुमी शाखा के व यजुर्वेदीयों की माध्यान्दिनी शाखा तथा यह दोनों छान्दोग व वाजसनेयी कहलाते हैं।
मैथिल ब्राह्मणों का नाम मिथिला के नाम पर पड़ा है। मिथिला प्राचीन काल में भारत का एक राज्य था। मिथिला वर्तमान में एक सांस्कृतिक क्षेत्र है जिसमे बिहार के तिरहुत, दरभंगा, मुंगेर, कोसी, पूर्णिया और भागलपुर प्रमंडल तथा झारखंड के संथाल परगना प्रमंडल[1]के साथ-साथ नेपाल के प्रदेश संख्या २, प्रदेश संख्या १ के कुछ जिले और प्रदेश संख्या ३ का चितवन जिला भी शामिल हैं। जनकपुर , दरभंगा और मधुबनी मैथिल ब्राह्मणो का प्रमुख सांस्कृतिक केंन्द्र है। मैथिल ब्राह्मण बिहार , नेपाल , उत्तर प्रदेश के ब्रज , झारखण्ड के देवघर व देवघर के आस-पास के क्षेत्रों में अधिक हैं। मैथिल ब्राह्मण पंच गौड़ ब्राह्मणों में से एक हैं। पंच गौड़ ब्राह्मणो के अंतर्गत मैथिल ब्राह्मण , कान्यकुब्ज ब्राह्मण , सारस्वत ब्राह्मण , गौड़ ब्राह्मण , उत्कल ब्राह्मण हैं[2][3][4] | मैथिल ब्राह्मण मध्यप्रदेश के भिंड ,मुरैना, गुना, ग्वालियर, शिवपुरी ,दतिया,राजगढ़ आदि जिलों में भी हैं।
मिथिला क्षेत्र के कुछ राजवंश परिवार, जैसे ओइनवार वंश, दरभंगा राज ( खण्डवाल ) मैथिल ब्राह्मण थें और मैथिल संस्कृति के संरक्षण के लिए प्रसिद्ध थे।[5]
1960 और 1970 के दशक में बिहार में मैथिल ब्राह्मण राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बन गए। पं. बिनोदानंद झा और ललित नारायण मिश्र समुदाय के प्रमुख राजनीतिक नेताओं के रूप में उभरे। डॉ. जगन्नाथ मिश्र के मुख्यमंत्री के समय कई मैथिल ब्राह्मणों ने बिहार में महत्वपूर्ण राजनीतिक पदों पर विचार किया।[6]
मैथिल ब्राह्मण मुख्य रूप से शाक्त हैं, हालांकि वैष्णव और शैव भी हैं।[7] मैथिल ब्राह्मण जो शाक्त हैं, भगवती (शक्ति) की पूजा करते हैं।[8]
वैदिक संहिता के अनुसार, मैथिल ब्राह्मणों को छान्दोग्य(सामवेद) और बाजसनेयी(यजुर्वेद) में विभाजित किया गया है और प्रत्येक समूह सख्ती से अतिरंजित है। उन्हें आगे भी चार मुख्य श्रेणियों श्रोत्रिय, योग्य, पंजी और जयवार द्वारा वर्गीकृत किया गया है [9]।
ब्रजस्थ मैथिल ब्राह्मण वे ब्राह्मण हैं जो गयासुद्दीन तुग़लक़ से लेकर अकबर के शासन काल तक तिरहुत (मिथिला) से भारत की तत्कालीन राजधानी आगरा में बसे तथा समयोपरान्त केन्द्रीय ब्रज के तीन जिलो मे औरंजेब के कुशासन से प्रताड़ित होकर बस गये। ब्रज मे पाये जाने वाले मैथिल ब्राह्मण उसी समय से ब्रज मे प्रवास कर रहे हैं। जो कि मिथिला के गणमान्य विद्वानो द्वारा शोधोपरान्त ब्रजस्थ मैथिल ब्राह्मणो के नाम से ज्ञात हुए। ये ब्राह्मण ब्रज के आगरा, अलीगढ़, मथुरा और हाथरस मे प्रमुख रूप से रहते हैं। यहा से भी प्रवासित होकर यह दिल्ली, अजमेर, जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, बड़ोदा, दाहौद, लख्ननऊ, कानपुर आदि स्थानो पर रह रहे हैं। मुग़ल शासक औरंगज़ेब ने मिथिला सहित सम्पूर्ण भारत पर अपने शासन काल में अत्याचार किया इसके अत्याचार से पीड़ित होकर बहुत से मिथिलावासी ब्राह्मण मिथिला से पलायन कर अन्य प्रदेशों में बस गए। ब्रज प्रदेश में रहने वाले मैथिलों का मिथिलावासी मैथिलों से आवागमन भी बंद हो गया। ऐसा १६५८ ई० से लेकर १८५७ की क्रान्ति तक चलता रहा . १८५७ ई० के बाद भारतीय समाज सुधारकों ने एक आजाद भारत का सपना देखा था। मिथिला का ब्राह्मण समाज भी आजाद भारत का सपना देखने लगा। 'स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती ने ठीक इसी समय जाती उत्थान की आवाज को बुलंद किया। उन्होंने जाती उत्थान के लिए सम्पूर्ण भारत में बसे मिथिला वासियों से संपर्क किया जिसका परिणाम यह हुआ की औरंगज़ेब के समय में मिथिलावासी और प्रवासी मैथिल ब्राह्मणों के जो सम्बन्ध टूट गए थे वह फिर से चालू हो गए। उन्हीं के प्रयासों से अलीगढ़ के मैथिल ब्राह्मणों का मिथिला जाना और मिथिलावासियों का अलीगढ़ आना संभव हुआ। इसी समय स्वामी जी ने मिथिला से लौटकर अलीगढ़ में मैथिल सिद्धांत सभा का आयोजन किया। सिद्धांत सभा के कार्यकर्ताओं और मिथिलावासी रुना झा द्वारा १८८२ से १८८६ के बीच पत्र व्यवहार आरम्भ हुआ।
मैथिल ब्राह्मणो में पंजी (मिथिला) पंजी व्यवस्था है जो मैथिल ब्राह्मणो और मैथिल कायस्थो की वंशावली लिखित रूप से रखती है। आज कल यह प्रथा समाप्त हो रही है।
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