||संपूर्ण अष्टावक्र गीता|| Ashtavakra Geeta_All Chapters|| HindiAudioBook 📚📚📚

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पहला प्रकरण
राजा जनक की जिज्ञासा
राजा जनक के ३ प्रश्न

'अष्टावक्र गीता’ का आरंभ मुमुक्षु राजा जनक द्वारा पूछे गए तीन प्रश्नों से होता है-
१. ज्ञान कैसे प्राप्त होता है?
२. मुक्ति कैसे प्राप्त होती है?
३. वैराग्य कैसे प्राप्त होता है?

भारत ने अध्यात्म के सर्वोच्च शिखर को छुआ है। यह शिखर है अद्वैत, जो इस सृष्टि को ईश्वर की कृति नहीं, अभिव्यक्ति मानता है। ज्ञान-शिरोमणि अष्टावक्रजी ने अद्वैत को ही प्रतिष्ठित किया है। मुमुक्षु राजा जनक ने अष्टावक्रजी से तीन प्रश्न पूछे, जो वास्तव में संपूर्ण अध्यात्म का सार हैं। ये प्रश्न हैं-‘ज्ञान कैसे प्राप्त होता है, मुक्ति कैसे होती है तथा वैराग्य कैसे प्राप्त होता है?’ उपर्युक्त तीन प्रश्नों के उत्तर में जो अमृतरूपी ज्ञान निहित है, उसी का मूर्तरूप है ‘श्री अष्टावक्र गीता’। इसमें अध्यात्म-जगत् की बड़ी ही अद्भुत घोषणाएँ हैं। अतः ‘अष्टावक्र गीता’ को भारतीय अध्यात्म का शिरोमणि ग्रंथ कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। ‘अष्टावक्र गीता’ में राजा जनक और ज्ञान-शिरोमणि अष्टावक्र के ज्ञान-संवाद में अध्यात्म की गहराइयों का ही वर्णन है, जिसके अध्ययन एवं अनुकरण से आत्मज्ञान के मुमुक्षु व्यक्ति सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर जीव की उच्चतम स्थिति अर्थात् मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। प्रस्तुत पुस्तक में ज्ञान-शिरोमणि श्री अष्टावक्र के श्रीमुख से निःसृत ज्ञानामृत के सारतत्त्व को बहुत ही सरल भाषा में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। अध्यात्म में थोड़ी सी भी रुचि रखनेवाला साधारण व्यक्ति भी आसानी से इसका लाभ उठा सकता है, क्योंकि अष्टावक्रजी के सभी वक्तव्य बड़े अनूठे हैं, जो सीधे बोध को जाग्रत् करते हैं और बोध से ही आध्यात्मिक क्रांति आती है। ज्ञान-प्राप्ति की जिज्ञासा भी पूर्वजन्मों के संस्कारों के बिना नहीं होती। जब संस्कार तीव्र हो जाते हैं तब वह व्यक्ति अनायास ही सत् साहित्य की प्राप्ति एवं सद्गुरु की कृपा का प्रसाद पाने का अधिकारी हो जाता है।

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