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Скачать или смотреть धम्म का दर्पण: क्या आप सकदागामी या अनागामी हैं?

  • Understanding Buddha's Teachings
  • 2025-08-20
  • 291
धम्म का दर्पण: क्या आप सकदागामी या अनागामी हैं?
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Описание к видео धम्म का दर्पण: क्या आप सकदागामी या अनागामी हैं?

सकदागामी (Sakadāgāmī – एकबार वापसी करने वाला) और अनागामी (Anāgāmī – कभी वापसी न करने वाला) की स्थिति को समझना केवल पाली सूत्रों से ही नहीं, बल्कि अपने भीतर की मानसिक दशा को प्रत्यक्ष देखने से भी सम्भव है। यद्यपि सूत्रों में सीधा-सीधा "कैसे पहचानें" यह कम बताया गया है, परन्तु गुणों और मानसिक प्रवृत्तियों से इसका संकेत मिल जाता है।

१. सकदागामी की विशेषताएँ

पाली में कहा गया है कि सकदागामी वही होता है जिसने पहले तीन संयोग (saṁyojana) –

sakkāya-diṭṭhi (सक्कायदिट्ठि – आत्मा की स्थायी धारणा)

vicikicchā (विचिकिच्छा – संदेह)

sīlabbataparāmāsa (शीलव्रत परामास – व्यर्थ की बाहरी अनुष्ठान की आसक्ति)

पूरी तरह तोड़ दिए हैं।
साथ ही, उसने कामराग (kāmarāga) और विभवद्वेष/व्यापाद (paṭigha) को बहुत कम कर लिया है, पर पूरी तरह नहीं मिटाया।
👉 इसका अर्थ है कि उसमें अभी भी इच्छा और थोड़ी-बहुत द्वेष भावना रह सकती है, लेकिन बहुत मंद और क्षीण।
इसलिए उसका जीवन संयमित, सौम्य और लगभग स्थिर होता है।

२. अनागामी की विशेषताएँ

अनागामी वह है जिसने केवल पहले तीन संयोग ही नहीं, बल्कि आगे के दो भी पूरी तरह तोड़ दिए हैं:

kāmarāga (कामवासना)

paṭigha (द्वेष या विरोध भाव)

👉 इसका मतलब है कि उसके मन में इन्द्रिय-विषयों की कोई खींचतान नहीं रहती और किसी भी प्राणी या परिस्थिति से द्वेष नहीं उठता।
वह शान्त, समभाव से युक्त और स्थायी करुणा-मैत्री में स्थापित रहता है।

३. आत्मपरीक्षण (स्वयं देखना)

हालाँकि सुत्तों में यह प्रश्न सीधे नहीं मिलता कि “कैसे जाने कि मैं सकदागामी हूँ या अनागामी”, परन्तु बुद्ध ने यह कहा है कि धम्मादास (धम्म का दर्पण) से स्वयं देख सकते हैं।
यह दर्पण यह पूछता है:

क्या मेरे भीतर अभी भी इन्द्रिय विषयों की तीव्र तृष्णा है?

क्या परिस्थितियों में द्वेष या चिड़चिड़ापन उभरता है?

क्या मैं किसी भी अवस्था में आत्मा को स्थायी मानता हूँ?

क्या संदेह और शील-व्रत पर आसक्ति है?

यदि ये जड़ से हट चुके हैं, तो यह सोतापन्न/सकदागामी/अनागामी की ओर प्रगति का संकेत है।

४. व्यावहारिक दृष्टि

सकदागामी की पहचान: कामवासना और द्वेष की आवृत्ति बहुत कम, मन शीघ्र शान्त होता है।

अनागामी की पहचान: न कामवासना बची है, न ही किसी के प्रति द्वेष। केवल शुद्ध ध्यान, समता और करुणा शेष।

🔎 निष्कर्ष:
यह बाहरी प्रमाणपत्र की तरह नहीं है। किसी गुरु या समुदाय से मान्यता की आवश्यकता नहीं। यह अपनी ही चित्त-वृत्तियों को निरन्तर देखने पर स्पष्ट होता है। जब मन पूरी तरह काम-द्वेष से मुक्त और स्थिर करुणा-समता में रहता है, तब अनागामी की स्थिति प्रत्यक्ष दिखाई देती है।

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