वीरशैव (लिंगायत) सम्प्रदाय। बसवन्ना। जंगम।

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वीरशैव जिसे लिंगायत भी कहा जाता है, एक शैव संप्रदाय है जिसका उदय कलचुरी राजवंश के शासन के दौरान 12 वीं शताब्दी के मध्य में कर्नाटक में हुआ था। बसवन्ना नामक ब्राह्मण इसके प्रवर्तक थे। अल्लमा प्रभु व अक्कमहा इनके प्रमुख सहयोगी थे।
वीरशैव एकेश्वरवादी संप्रदाय है जो वैदिक देवता रुद्र, जिसे बाद में शिव कहा गया, की पूजा करता है। यह शिव की पूजा मूर्ति के माध्यम से नहीं बल्कि लिंग के माध्यम से करता है। इस तरह यह संप्रदाय मूर्ति पूजा व कर्मकांड का विरोधी है। इस संप्रदाय के पुरुष अपने बाएं कंधे पर चांदी के पिटारे में लिंग धारण करते हैं। लिंग के अतिरिक्त इस संप्रदाय के अनुयायी जंगम (यायावर भिक्षु) व गुरु की पूजा करते हैं।
इनका मानना है कि लिंग की पूजा करने वाले सभी व्यक्तियों को अमरत्व की प्राप्ति होगी। लेकिन अमरत्व की प्राप्ति के लिए सामाजिक बुराइयों का नाश आवश्यक है। यह संप्रदाय वेदों की सत्ता को अस्वीकार करता है जातिभेद लिंग भेद व बाल विवाह का विरोध करता है तथा विधवा विवाह का समर्थन करता है।
यह संप्रदाय मृतक को दफनाता है इनका मानना है कि मृत्यु के पश्चात भक्त शिव में लीन हो जाता है तथा उसका पुनर्जन्म नहीं होता।
वर्तमान कर्नाटक की 18% आबादी वीरशैव संप्रदाय विश्वास करती है।

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