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  • MahhaGuru
  • 2020-11-24
  • 19
देवउठनी एकादशी : तुलसी विवाह
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Описание к видео देवउठनी एकादशी : तुलसी विवाह

Dev Uthani Ekadashi:

26 नवंबर 2020 यानी बृहस्पतिवार को देवउठनी एकादशी और तुलसी विवाह का पर्व मनाया जाएगा। यह पर्व हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को धूमधाम से मनाया जाता है। देवउठनी एकादशी को देवोत्थान एकादश और हरिप्रबोधिनी एकादिशी के नाम से भी जाना जाता है।

देवउठनी एकादशी का शुभ मुहूर्त:

इस वर्ष देवोत्थान एकादशी व्रत 25 नवंबर, बुधवार के दिन है। हिंदू पंचांग के अनुसार 25 नवंबर को एकादशी तिथि दोपहर 2 बजकर 42 मिनट से लग जाएगी। वहीं एकादशी तिथि का समापन 26 नवंबर को शाम 5 बजकर 10 मिनट पर समाप्त हो जाएगी।

इस तरह करें पूजा:

इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इस दिन विष्णु जी को जगाने का आह्वान किया जाता है। इस दिन सुबह उठकर साफ कपड़े पहने जाते हैं। फिर विष्णु जी के व्रत का संकल्प लिया जाता है। फिर घर के आंगन में विष्णु जी के चरणों का आकार बनाया जाता है। लेकिन अगर आंगन में धूप हो तो चरणों को ढक दिया जाता है। चरणों की आकृति बनाएं लेकिन धूप में चरणों को ढक दें। फिर ओखली में गेरू से चित्र बनाया जाता है और फल, मिठाई, ऋतुफल और गन्ना रखकर डलिया को ढक दिया जाता है। रात के समय घर के बाहर और जहां पूजा की जाती है वहां दिए जलाए जाते हैं। रात के समय विष्णु जी की पूजा की जाती है। साथ ही अन्य देवी-देवताओं की पूजा भी की जाती है। पूजा के दौरान सुभाषित स्त्रोत पाठ, भगवत कथा और पुराणादि का पाठ किया जाता है। साथ ही भजन भी गाए जाते हैं।

धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक आषाढ़ महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी यानी देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु सो जाते हैं। इसके बाद देव प्रबोधिनी यानी कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष एकादशी को क्षीरसागर में चार महीने की योगनिद्रा के बाद भगवान विष्णु इस दिन उठते हैं। देव उठने के साथ ही खत्म हो जाएगा चातुर्मास और शुरू हो जाएंगे विवाह सहित तमाम मांगलिक कार्य।

देवउठनी  एकादशी को क्या न करें?

1) एकादशी पर किसी भी पेड़-पौधों की पत्तियों को नहीं तोड़ना चाहिए।

2) एकादशी वाले दिन पर बाल और नाखून नहीं कटवाने चाहिए।

3) एकादशी वाले दिन पर संयम और सरल जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। इस दिन कम से कम बोलने की किसी कोशिश करनी चाहिए और भूल से भी किसी को कड़वी बातें नहीं बोलनी चाहिए।

4) हिंदू शास्त्रों में एकादशी के दिन चावल का सेवन नहीं करना चाहिए।

5) एकादशी वाले दिन पर किसी अन्य के द्वारा दिया गया भोजन नहीं करना चाहिए।

6) एकादशी पर मन में किसी के प्रति विकार नहीं उत्पन्न करना चाहिए ।

7) इस तिथि पर गोभी, पालक, शलजम आदि का सेवन न करें।

8) देवउठनी एकादशी का व्रत रखने वाले व्यक्ति को बिस्तर पर नहीं सोना चाहिए। 

तुलसी-शालिग्राम विवाह की परंपरा:

इस पर्व पर वैष्णव मंदिरों में तुलसी-शालिग्राम विवाह किया जाता है। धर्मग्रंथों के जानकारों का कहना है कि इस परंपरा से सुख और समृद्धि बढ़ती है। देव प्रबोधिनी एकादशी पर तुलसी विवाह से अक्षय पुण्य मिलता है और हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं।

कन्यादान का पुण्य:

जिन घरों में कन्या नहीं है और वो कन्यादान का पुण्य पाना चाहते हैं तो वह तुलसी विवाह कर के प्राप्त कर सकते हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण का कहना है कि सुबह तुलसी का दर्शन करने से अक्षय पुण्य फल मिलता है। साथ ही इस दिन सूर्यास्त से पहले तुलसी का पौधा दान करने से भी महा पुण्य मिलता है।

तुलसी विवाह की क​था:

नारद पुराण के अनुसार, एक समय दैत्यराज जलंधर के अत्याचारों से ऋषि-मुनि, देवता और मनुष्य सभी बहुत परेशान थे। वह बड़ा ही पराक्रमी और वीर था। इसके पीछे उसकी पतिव्रता धर्म का पालन करने वाली पत्नी वृंदा के पुण्यों का फल था, जिससे वह पराजित नहीं होता था। उससे परेशान देवता भगवान विष्णु के पास गए और उसे हराने का उपाय पूछा। तब भगवान श्रीहरि ने वृंदा का पतिव्रता धर्म तोड़ने का उपाय सोचा। भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धारण कर वृंदा को स्पर्श कर दिया। जिसके कारण वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग हो गया और जलंधर युद्ध में मारा गया। भगवान विष्णु से छले जाने तथा पति के वियोग से दुखी वृंदा ने श्रीहरि को श्राप दिया कि अपकी पत्नी का भी छल से हरण होगा तथा आपको पत्नी वियोग सहना होगा। इसके लिए आपको पृथ्वी पर जन्म लेना होगा। यह श्राप देने के बाद वृंदा सती हो गई। उस स्थान पर तुलसी का पौधा उग गया। रामावतार में श्राप के कारण सीता हरण होता है और श्रीराम पत्नी वियोग सहन करते हैं। एक अन्य कथा में कहा गया है कि वृंदा ने भगवान विष्णु को निष्ठुर व्यवहार करने के कारण पत्थर होने का श्राप दिया ​था। उसके कारण ही शालिग्राम स्वरुप में भगवान विष्णु की पूजा होती है।

वृंदा का पतिव्रता धर्म तोड़ने से भगवान विष्णु को बहुत ग्लानि हुई। तब उन्होंने वृंदा को आशीष दिया कि वह तुलसी स्वरुप में सदैव उनके साथ रहेगी। उन्होंने कहा कि कार्तिक शुक्ल एकादशी को जो भी शालिग्राम स्वरुप में उनका विवाह तुलसी से कराएगा, उसकी मनोकामना पूर्ण होगी। तब से तुलसी विवाह होने लगा।

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