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Скачать или смотреть अयोध्या के राजा दशरथ के जन्म की कथा जानिये | Raja Dashrath | वाल्मीकि रामायण | Ramayan | Yogi

  • Yogi Motivational
  • 2022-05-17
  • 45
अयोध्या के राजा दशरथ के जन्म की कथा जानिये | Raja Dashrath | वाल्मीकि रामायण | Ramayan | Yogi
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Описание к видео अयोध्या के राजा दशरथ के जन्म की कथा जानिये | Raja Dashrath | वाल्मीकि रामायण | Ramayan | Yogi

हरि अनंत हरि कथा अनंता।
कहहिं सुनहिं बहु विधि सब संता।।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार दशरथअयोध्या के रघुवंशी (सूर्यवंशी) राजा थे। वे राजा अज व इन्वदुमतीके के पुत्र थेे और उनका जन्म इक्ष्वाकु कुल में हुआ था। आगे चलकर वे प्रभु श्रीराम, जो कि विष्णु का अवतार थे, के पिता बने । राजा दशरथ के चरित्र में आदर्श महाराजा, पुत्रों को प्रेम करने वाले पिता और अपने वचनों के प्रति पूर्ण समर्पित व्यक्ति दर्शाया गया है। उनकी तीन पत्नियाँ थीं – कौशल्या, सुमित्रा तथा कैकेयी। अंगदेश के राजा रोमपाद या चित्ररथ की दत्तक पुत्री शान्ता महर्षि ऋष्यशृंग की पत्नी थीं। एक प्रसंग के अनुसार शान्ता दशरथ की पुत्री थीं तथा रोमपाद को गोद दी गयीं थीं। यह सब कहानी तो ज्यादातर लोग जानते होंगे लेकिन महाराजा दशरथ का जन्म कैसे हुआ था इस बारे में कम लोगो को पता होगा। आज के इस एपिसोड में हम आपको राजा दशरथ के जन्म की कथा आपको बताएँगे।
पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार महाराज दशरथ का जन्म बहुत ही एक अद्भुत घटना थी। बताया जाता है कि एक बार राजा अज दोपहर की वंदना कर रहे थे। उसी समय लंकापति रावण उनसे युद्ध करने के लिए आया। अज को वंदना करता देख रावण दूर ही ठहर गया और उनकी वंदना करना देखने लगा। राजा अज ने भगवान शिव की वंदना की और जल आगे अर्पित करने की बजाय पीछे फेंक दिया। यह देखकर रावण को बड़ा आश्चर्य हुआ और वह राजा अज के सामने पहुंचा तथा पूछने लगा कि हमेशा वंदना करने के पश्चात जल का अभिषेक आगे किया जाता है,ना कि पीछे। राजन आपने जल पीछे फेका है इसके पीछे क्या कारण है। राजा अज ने कहा जब मैं आंखें बंद करके ध्यान मुद्रा में भगवान शिव की अर्चना कर रहा था। तभी मुझे यहां से एक योजन दूर जंगल में एक गाय घास चरती हुई दिखी और मैंने देखा कि एक सिंह उस पर आक्रमण करने वाला है तभी मैंने जल का अभिषेक पीछे की तरफ किया और मेरे जल ने तीर का रूप धारण कर लिया और उस सिंह को भेद दिया जिससे उस सिंह की मृत्यु हुई।
रावण को यह बात सुनकर बड़ा ही आश्चर्य हुआ किंतु राजा अज ने कहा तुम यहां से पीछे एक योजन दूर जाकर यह दृश्य देख सकते हो।
रावण वहाँ गया और उसने देखा कि एक गाय हरी घास चर रही है जबकि शेर के पेट में कई वाण लगे हैं अब रावण को विश्वास हो गया कि जिस महापुरुष के जल से ही बाण बन जाते हैं और बिना किसी लक्ष्य साधन के लक्ष्य बेधन हो जाता है ऐसे वीर पुरुष को जीतना बड़ा ही असंभव है और वह उनसे बिना युद्ध किए ही लंका लौट गया।
इस घटना के कुछ समय बाद राजा अज जंगल में भ्रमण करने के लिए गए थे तो उन्हें एक बहुत ही सुंदर सरोवर दिखाई दिया उस सरोवर में एक कमल का फूल था जो अति सुंदर प्रतीत हो रहा था। उस कमल को प्राप्त करने के लिए राजा अज सरोवर में कूद गए। किंतु राजा अज कितना भी उस कमल के पास जाते वह कमल उनसे उतना ही दूर हो जाता और राजा अज उस कमल को नहीं पकड़ पाए। उसी आकाशवाणी हुई कि हे राजन आप नि:संतान हैं और आप इस कमल के योग्य नहीं है। इस भविष्यवाणी ने राजा अज के हृदय में एक भयंकर घात किया था। राजा अज अपने महल में लौट आए और चिंता ग्रस्त रहने लगे क्योंकि उन्हें संतान नहीं थी जबकि वह भगवान शिव के परम भक्त थे।
भगवान शिव उनकी इस चिंता से व्याकुल हो उठे और उन्होंने धर्मराज को बुलाया और कहा तुम ब्राह्मण के भेष में अयोध्या नगरी जाओ जिससे राजा अज को संतान की प्राप्ति होगी। धर्मराज और उनकी पत्नी ब्राह्मण और ब्राह्मणी की वेश में सरयू नदी के किनारे कुटिया बनाकर रहने लगे। एक दिन घर्मराज ब्राह्मण के भेष में ही राजा अज के दरबार में गए और उनसे भिक्षा मांगने लगे।
राजा अज ने अपने खजाने में से उन्हें सोने की अशर्फियां देनी चाही लेकिन ब्राह्मण नहीं कहते हुए मना कर दिया कि यह प्रजा का है आप अपने पास जो है। उसे दीजिए तब राजा अज ने अपने गले का हार उतारा और ब्राह्मण को देने लगे किंतु ब्राह्मण ने मना कर दिया कि यह भी प्रजा की ही संपत्ति है
यह सुनकर राजा अज को बड़ा दुख हुआ कि आज एक ब्राह्मण उनके दरबार से खाली हाथ जा रहा है। उसके बाद राजा अज शाम को एक मजदूर का बेश बनाते हैं और नगर में किसी काम के लिए निकल जाते हैं। चलते - चलते वह एक लौहार के यहाँ पहुंचते हैं और अपना परिचय बिना बताए ही वहां काम करने लग जाते हैं पूरी रात को हथौड़े से लोहे का काम करते हैं जिसके बदले में उन्हें सुबह एक् टका मिलता है।
राजा एक टका लेकर ब्राह्मण के घर पहुंचते हैं लेकिन वहां ब्राह्मण नहीं था उन्होंने वह एक टका ब्राह्मण की पत्नी को दे दिया और कहा कि इसे ब्राह्मण को दे देना। जब ब्राह्मण वापस आये तो ब्राह्मण की पत्नी ने वह टका उन्हें दे दिया और ब्राह्मण ने उस टका को जमीन पर फेंक दिया तभी एक आश्चर्यजनक घटना हुई। ब्राह्मण ने जहां टका फेंका था वहां गड्ढा हो गया ब्राह्मण ने उस गढ्ढे को और खोदा तो उसमें से सोने का एक रथ निकला जो आसमान में चला गया इसके पश्चात ब्राह्मण ने और खुदाई की तो दूसरा सोने का रथ निकला और आसमान की तरफ चला गया इसी प्रकार से जमीं की खुदाई से नौ सोने के रथ निकले और आसमान की तरफ चले गए और जब दसवाँ रथ निकला तो उस पर एक बालक था और वह रथ जमीन पर आकर ठहर गया।
ब्राह्मण उस बालक को लेकर राजा अज के दरबार में पहुंचे और कहा राजन - इस पुत्र को स्वीकार कीजिए यह आपका ही पुत्र है जो आपके एक टका से उत्पन्न हुआ है। इसके साथ में सोने के नौ रथ निकले जो आसमान में चले गए जबकि यह बालक दसवें रथ पर निकला इसलिए यह रथ तथा पुत्र आपका है जिनका नाम दशरथ पड़ा। महाराज दशरथ का असली नाम मनु था।

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