काकी के ज्वाइर काका के टोटमा

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वुजुर्ग मैथिल दंपतिक जीवन के, वर्तमान युगक् धारा मे बहैत, हुनक मनोवैज्ञानिक अवस्था के चित्रण करत "इहो काका काकी अलबत्ते" के लघु फ़िल्मक शृंखला।
ऐ श्रृंखला के केंद्रीय पात्र डाक विभाग के सरकारी नौकरी बाराबाबू पद स अवकाश प्राप्त भोला झा आ बी ए पास गृहिणी शैल पुत्री देवी छैथ । हिनका एक पुत्री MBBS डॉक्टर छथिन्ह जे डॉक्टर लड़का स विवाह क दुनु चेन्नई मे त पुत्र बेंगलोर मे MBA क कोनो नीक MNC के नोकरी छैन आ ओही कंपनी मे कार्यरत इंजीनियर लड़की संग विवाहोपरांत सेट्ल छथि। भोला बाबू आ शैल देवी दिल्ली के जमुना पार मे पच्चास गज के सामान्य पुरान मकान मे साधारण पेंसन पर रहै छथि। माता पिता के मरणोपरांत भैयारी स भेटल अंश के रूप मे बचल खुचल चास, कलम गाछी बांस आ घरारी के संरक्षण के जिम्मेबारी छैन। तें गाम आवागमन बढ़ि गेल छैन।
केंद्र बिंदु मे ई दुनु पात्र जरूर छइथ परंच हिनक सरोकार मानव जीवन के विभिन्न चरित्र स रहने बहुत रास मनोभावना के मनोरंजक स्वरूप मे पटल पर आनक प्रयास करब।
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