लक्ष्मी माता की अमर कथा
देवी लक्ष्मी — धन, सौभाग्य, और समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी हैं।
जहाँ लक्ष्मी होती हैं, वहाँ दरिद्रता कभी नहीं टिकती।
आज हम सुनेंगे — ‘माँ लक्ष्मी की एक अमर कथा’, जो सिखाती है कि सच्चा धन केवल सोना-चाँदी नहीं, बल्कि श्रद्धा, भक्ति और सत्कर्म है।”
“एक समय की बात है… जब देवता और असुरों में युद्ध के बाद, देवता दुर्बल हो गए।
देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की — ‘हे प्रभु, हमें फिर से बल और वैभव प्रदान करें।’
भगवान विष्णु बोले — ‘हे देवगण, अमृत प्राप्त करने के लिए तुम्हें समुद्र मंथन करना होगा।’
फिर देवता और असुर, दोनों ने मिलकर मंदराचल पर्वत को मथनी और वासुकी नाग को रस्सी बनाया।
जब समुद्र मंथन शुरू हुआ, तब अनेक रत्न प्रकट हुए — रत्न, अप्सराएँ, धनवान वस्तुएँ…
और अंत में प्रकट हुईं — श्री लक्ष्मी माता!
उनके प्रकट होते ही चारों दिशाओं में दिव्य प्रकाश फैल गया।”
“माँ के हाथों में कमल था, उनके मुख पर शांति और करुणा की आभा।
वे सीधे भगवान विष्णु के समीप गईं, और उन्हें अपना पति स्वीकार किया।
तब से माँ लक्ष्मी सदैव भगवान विष्णु के साथ विराजती हैं।”
“राजा बलि अत्यंत दानवीर और बलशाली थे। वे भगवान विष्णु के भक्त भी थे।
एक बार भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया — छोटे ब्राह्मण बालक के रूप में, और बलि से तीन पग भूमि माँगी।
राजा बलि ने वचन दिया — ‘हे ब्राह्मण, जो चाहो ले लो।’
तभी भगवान विष्णु ने अपना विराट रूप धारण किया —
पहले पग में आकाश मापा,
दूसरे पग में पृथ्वी,
तीसरे पग के लिए कुछ शेष न बचा।
तब राजा बलि ने कहा — ‘हे प्रभु, तीसरा पग मेरे सिर पर रख दीजिए।’
प्रभु प्रसन्न हुए और बोले — ‘हे बलि, तुम सदा सुखी रहो, मैं तुम्हारे द्वार की रक्षा करूँगा।’
माँ लक्ष्मी ने भी बलि की भक्ति से प्रसन्न होकर वरदान दिया —
‘जहाँ सत्य, दान, और विनम्रता होगी, वहाँ मैं सदा निवास करूँगी।’”
“एक नगर में एक गरीब ब्राह्मण रहता था।
वह रोज़ माँ लक्ष्मी की पूजा करता, परंतु उसके घर में दरिद्रता थी।
एक दिन उसकी पत्नी बोली — ‘तुम रोज़ पूजा करते हो, फिर भी लक्ष्मी हमारे घर क्यों नहीं आती?’
ब्राह्मण बोला — ‘शायद मेरी भक्ति अधूरी है।’
वह तप करने जंगल चला गया और लगातार 21 दिन माँ लक्ष्मी का नाम जपता रहॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः।’
एक रात माँ प्रकट हुईं और बोलीं —
‘वत्स, मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूँ, पर तुम्हारे घर में मैं तभी रहूँगी जब तुम्हारे मन में संतोष होगा।’
ब्राह्मण समझ गया कि धन नहीं, संतोष ही सच्ची लक्ष्मी है।
वह लौटा, और जैसे ही उसने अपनी पत्नी के साथ संतोषपूर्वक जीवन जीना शुरू किया —
माँ लक्ष्मी ने घर में स्थायी निवास किया।”
“दीपावली की रात को माँ लक्ष्मी धरती पर भ्रमण करती हैं।
वे उस घर में प्रवेश करती हैं जहाँ स्वच्छता, भक्ति, और दीपों का प्रकाश होता है।
इसलिए कहा गया है —
‘जहाँ दीप जले, वहाँ अंधकार मिटे;
जहाँ माँ लक्ष्मी की पूजा हो, वहाँ दरिद्रता सदा हटे।’
लोग दीप जलाते हैं, दरवाजे पर रंगोली बनाते हैं,
माँ लक्ष्मी और गणेश की आराधना करते हैं
ताकि घर में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहे।”
“माँ लक्ष्मी केवल धन की देवी नहीं — वे शुभ विचार, शुद्ध मन, और सात्विक जीवन की प्रतीक हैं।
जो व्यक्ति मेहनत करता है, सत्य का मार्ग अपनाता है, और दूसरों की मदद करता है
माँ लक्ष्मी उसी के घर में स्थायी रूप से निवास करती हैं।
इसलिए,
‘केवल धन की इच्छा मत करो — धन के साथ धर्म का साथ रखो।’
जय माँ लक्ष्मी!
सभी भक्तों पर उनकी कृपा बनी रहे।”
“ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः… जय माँ लक्ष्मी… जय माँ लक्ष्मी…”
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